इकोनामी क्लास में मांसाहारी भोजन न देने के एयर इंडिया के फैसले का मखौल
इस निर्णय का यात्रियों की ओर से भी विरोध हो रहा है। एयर पैसेंजर्स एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष सुधारक रेड्डी ने कहा, 'यह स्वीकार्य नहीं है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एक विचित्र व आश्चर्यजनक कदम के तहत एयर इंडिया ने अपनी घरेलू उड़ानों में मांसाहारी भोजन न परोसने का निर्णय लिया है। हालांकि बिजनेस क्लास और फर्स्ट क्लास के यात्री पहले की तरह निरामिष भोजन का आनंद लेते रहेंगे। पिछले महीने से लागू इस निर्णय से अंतरराष्ट्रीय उड़ाने भी अछूती रहेंगी। एयर इंडिया प्रबंधन के अनुसार, 'यह कदम बहुत सोच-समझकर लिया गया है। इसका मकसद लागत घटाना, बर्बादी बचाना तथा खानपान सेवाओं में सुधार करना है।'
एयर इंडिया प्रबंधन कुछ भी कहे, मगर अनाधिकारिक सूत्रों की माने तो इस कदम के पीछे भगवा ब्रिगेड है, जिसके कुछ लोगों को पिछले दिनो एयर इंडिया की एक इंटरनेशनल फ्लाइट (शंघाई-दिल्ली-मुंबई), में गलती से मांसाहारी भोजन परोस दिया गया था। बताया जाता है कि ऐसा मांसाहारी खाने के पैक पर गलती से शाकाहारी का स्टिकर चिपकाए जाने की वजह से हुआ था।
बहरहाल, एयर इंडिया की इस चूक के सोशल मीडिया पर बड़े मजे लिए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'वेज और नॉन वेज के स्टिकर के बीच भेद करने में कितने प्रयास की जरूरत होती है?' मधु मेमन नामक एक व्यक्ति ने ट्वीट किया 'अगला निर्णय यह संभव है कि फ्लाइट अटेंडेंट केवल हिंदी बोलेंगे?' सायंतन घोष ने लिखा कि 'अगली बार यदि उड़ान में काक्रोच मिला तो मुझे बिजनेस क्लास में अपग्रेड कर दिया जाएगा।' एक अन्य व्यक्ति ने लिखा, 'कोई यात्री एयर इंडिया का मांसाहारी खाना नहीं खाना चाहता। इसीलिए उन्होंने इसे बंद करने का फैसला लिया है।'
इस निर्णय का यात्रियों की ओर से भी विरोध हो रहा है। एयर पैसेंजर्स एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष सुधारक रेड्डी ने कहा, 'यह स्वीकार्य नहीं है। एयर इंडिया अपने यात्रियों के बीच भेदभाव कैसे कर सकती है। इसे ईकोनॉमी क्लास पर ही क्यों लागू किया गया है। हम इसकी शिकायत ऊपर तक करेंगे।'
शंकाएं इसलिए उठ रही हैं क्योंकि इस कदम से एयर इंडिया को सालाना मात्र दस करोड़ रुपये की बचत होने की संभावना है जो कि नगण्य है। क्योंकि ऑनबोर्ड कैटरिंग पर एयर इंडिया सालाना 350-400 करोड़ रुपये खर्च करती है। वैसे भी जिस एयरलाइन पर 50 हजार करोड़ का कुल कर्ज हो और जो लगभग इतने ही करोड़ के संचित घाटे से जूझ रही हो, तथा जिसका विनिवेश होने वाला हो, वह क्षुद्र बचत के लिए ऐसा अलोकप्रिय कदम उठाएगी, यह बात समझ से परे है।
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