SC के फैसले से नाखुश जेटली, NJAC खारिज होने से संसद की संप्रभुता को बताया झटका
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुने हुए प्रतिनिधियों की इच्छा पर गैर निर्वाचित लोगों की निरंकुशता बता चुके वित्त मंत्री अरुण जेटली इस मुद्दे पर फिर मुखर दिखे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुने हुए प्रतिनिधियों की इच्छा पर गैर निर्वाचित लोगों की निरंकुशता बता चुके वित्त मंत्री अरुण जेटली इस मुद्दे पर फिर मुखर दिखे। शुक्रवार को एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में जेटली ने कहा कि इससे संसद की संप्रभुता और कार्यपालिका के अधिकारों को झटका लगा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों को उलट दिया है। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता। हालांकि, पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों का वही मतलब है, जो सुप्रीम कोर्ट ने बताया है। अगर कहा जाए कि संसद कानून बनाए और न्यायपालिका उसका अनुसरण करे, तो इसका मतलब है कि न्यायपालिका अपने कर्तव्य का निर्वाहन नहीं कर रही। संसद कानून बना सकती है, लेकिन अगर वह कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, तो निरस्त होगा। एनजेएसी पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर न्यायविदों और सरकार का रुख एक टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान सामने आया।
जेटली ने कहा कि संविधान सभा में बीआर अंबेडकर ने सिर्फ राष्ट्रपति द्वारा या सिर्फ मुख्य न्यायाधीश द्वारा जजों की नियुक्ति पर असहमति जताई थी। संविधान में राष्ट्रपति के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर नियुक्ति करने की बात कही गई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में इसे सिर्फ मुख्य न्यायाधीश के हाथ में दे दिया। 1998 में कहा कि मुख्य न्यायाधीश का मतलब है जजों का कोलेजियम।
उन्होंने कहा कि वास्तव में यह फैसला न्यायपालिका के एकाधिकार की बात करता है। फैसला कहता है कि नियुक्ति सिर्फ मुख्य न्यायाधीश करेंगे। अगर प्रक्रिया में कानून मंत्री या कार्यपालिका का प्रतिनिधि शामिल हुआ तो पूरी प्रक्रिया दूषित हो जाएगी। यह व्याख्या संविधान में दी गई शक्तियों के विभाजन की अवधारणा के खिलाफ है। एनजेसी के समर्थन में पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने जेटली का साथ दिया।
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हालांकि जानेमाने कानूनविद राजीव धवन और पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा ने जेटली के मत का विरोध किया। जस्टिस लोढा ने कहा कि अंबेडकर ने न्यायपालिका को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखने की बात कही थी। कई बार संस्थाओं का भरोसा समय के साथ हुए अनुभवों से आता है। शुरुआती 20 साल में 210 जज नियुक्ति हुए। इनमें से 209 मुख्य न्यायाधीश की सहमति से हुए। 1959 में तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने कहा था कि जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की नाममात्र की भूमिका होनी चाहिए। उसके बाद 1970 से 1975 के बीच क्या हुआ आप जानते हैं।
धवन ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र दुनिया में अनोखा है। संविधान चुनी हुई सरकार और न्यायपालिका की बात करता है। अगर सरकार नागरिकों की नहीं सुनेगी, तो लोग कोर्ट के पास ही जाएंगे। उस दौर को याद कीजिए, जब जजों की नियुक्ति में कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज का प्रभाव था और न्यायपालिका पीछे ढकेल दी गई थी। धवन के तर्को का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि अगर राजनेता खराब होंगे तो क्या न्यायपालिका अधिकार हाईजैक कर लेगी? ऐसे तो कोई यह भी कह सकता है कि अदालतों में तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं। जज अपना काम ठीक से नहीं कर रहे। इसलिए उनका काम हम करेंगे।
हालांकि, लोढा ने कोलेजियम व्यवस्था में सुधार की जरूरत पर बल दिया और नियुक्ति प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाए जाने की बात कही। कोलेजियम में सुधार पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने पर चुटकी लेते हुए जेटली ने कहा कि संसद का काम संसद के बाहर होगा।