श्रम क्षेत्र में पारदर्शिता व जवाबदेही मुख्य लक्ष्य: बंडारू
केंद्र में मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर श्रम क्षेत्र में सरकार के प्रयासों, उपलब्धियों व चुनौतियों पर केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से हमारे नेशनल डिप्टी ब्यूरो चीफ संजय सिंह ने लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :
केंद्र में मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर श्रम क्षेत्र में सरकार के प्रयासों, उपलब्धियों व चुनौतियों पर केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से हमारे नेशनल डिप्टी ब्यूरो चीफ संजय सिंह ने लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :
श्रम क्षेत्र में सुधारों को लेकर सरकार का दृष्टिकोण क्या है?
हमारा मुख्य लक्ष्य श्रम क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही सुनिश्चित करना है। यह श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों के लिए आवश्यक है। हम श्रमिकों के शोषण के विरुद्ध हैं। लेकिन साथ ही नियोक्ताओं के उत्पीड़न के भी खिलाफ हैं। हम दोनों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। ताकि देश में विकास और रोजगार के अनुकूल सकारात्मक औद्योगिक वातावरण का निर्माण हो सके और प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया, स्किल डेवलपमेंट, डिजिटल इंडिया आदि मिशनों को गति प्राप्त हो सके। इसके लिए हमने पेचीदा और अप्रासंगिक हो चुके श्रम कानूनों को समाप्त करने की मुहिम छेड़ी है। अभी तक औद्योगिक प्रतिष्ठानों को 44 केंद्रीय श्रम कानूनों का पालन करना पड़ता था। लेकिन अब केवल 16 कानून रहेंगे। इसके लिए हमने एक जैसे और मिलते-जुलते कानूनों को मिलाकर एक करने का काम शुरू किया है। इसके अलावा श्रम कानूनों से जुड़ी प्रक्रियाओं को श्रम सुविधा पोर्टल के मार्फत आनलाइन कर दिया गया है। साढ़े चार करोड़ ईपीएफ खाताधारकों को यूनिवर्सल एकाउंट नंबर (यूएएन), जबकि साढ़े नौ लाख प्रतिष्ठानों को लेबर आइडेंटिफिकेशन नंबर (एलआइएन) जारी किए गए हैं। ईपीएफ से जुड़ी पेंशन स्कीम के तहत न्यूनतम पेंशन राशि को बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया है। इससे 20 लाख पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे।
लेकिन प्रमुख श्रम कानूनों में संशोधन के मोर्चे पर विशेष कामयाबी नहीं मिली है?
हम प्रयास कर रहे हैं। एप्रेन्टिसशिप संशोधन विधेयक को पारित कराने में हम कामयाब रहे हैं जो छोटी उपलब्धि नहीं है। इससे सालाना 20 लाख युवाओं को प्रशिक्षण की सुविधा प्राप्त होगी। अभी तक हमारे देश में सालाना केवल 2.80 लाख युवाओं को ही प्रशिक्षण की सुविधा थी। हमारा इरादा दो साल में इसे जापान के बराबर पहुंचाने का है, जहां साल में एक करोड़ युवा प्रशिक्षित किए जाते हैं। चीन में यह आंकड़ा दो करोड़ का है, जबकि जर्मनी में 30 लाख का। हमने प्रशिक्षण भत्ते (स्टाइपेंड) को भी प्रति प्रशिक्षु 2700-2800 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये कर दिया है। इसमें 50 फीसद योगदान मध्यम, लघु व सूक्ष्म इकाइयों (एमएसएमई) का होगा जबकि, शेष 50 फीसद योगदान सरकार करेगी। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया गया है। अब किताबी पढ़ाई के बजाय व्यावहारिक प्रशिक्षण पर ज्यादा जोर होगा। यही नहीं, हमने अनुभवी उद्यमियों को विभिन्न आइटीआइ का अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया है। यह बिलकुल नई बात है, क्योंकि अभी तक प्राचार्य व शिक्षक ही सारे निर्णय लेते हैं, जबकि उनके पास उद्योगों का व्यावहारिक अनुभव नहीं होता।
अन्य कानूनों में संशोधन को लेकर क्या स्थिति है। मसलन, फैक्ट्रीज एक्ट?
फैक्ट्रीज संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है और अब स्थायी समिति के विचाराधीन है। समिति की सिफारिशों के आधार पर इसे पारित करा लेने का हमें पूरा भरोसा है। अभी विद्युत का उपयोग न करने वाले 10 कर्मचारियों तक के उद्यमों तथा विद्युत का उपयोग करने वाले 20 कर्मचारियों तक वाले उद्यमों को कर्मचारियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा व कार्यदशाओं से संबंधित केंद्रीय श्रम कानूनों के अनुपालन से छूट है। संशोधन में इस सीमा को बढ़ाकर 20 और 40 करने का प्रस्ताव किया गया है।
मगर देश के 93 फीसद श्रमिक तो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। उनके लिए क्या हुआ है?
असंगिठत क्षेत्र के कामगारों की सुरक्षा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष जोर है। इसके लिए कई कदम उठाए गए हैं। मसलन, आम आदमी बीमा योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री जन सुरक्षा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा का इतना व्यापक कार्यक्रम इससे पहले कभी शुरू नहीं किया गया। इन योजनाओं के परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में इन मजदूरों के जीवन स्तर में बुनियादी बदलाव देखने को मिलेगा। असंगठित मजदूरों को न्यूनतम वेतन देने व कार्यदशाओं में सुधार के लिए भी कई कदम उठाए रहे हैं। जैसे कि उनके लिए शीघ्र ही स्मार्ट कार्ड की सुविधा शुरू की जाने वाली है। इससे वह कभी भी 30 हजार रुपये तक का लाभ ले सकेंगे। अटल पेंशन योजना में 1000-5000 रुपये तक की पेंशन की व्यवस्था की गई है। निर्माण क्षेत्र से जुड़े कामगारों को भी स्वास्थ्य व पेंशन की बेहतर सुविधाएं देने के इंतजाम किए गए हैं।
हाल में कैबिनेट ने बाल श्रम कानून में संशोधन को हरी झंडी दी है। इसके बारे में कुछ बताएं?
इसके तहत 14 साल तक के बच्चों का काम करना पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। जबकि 14-18 साल तक के किशोरों को खतरनाक उद्योगों में लगाने पर पाबंदी लगा दी गई है। उल्लंघन करने वाले उद्यमों पर कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। पहली बार पकड़े जाने पर छह माह से दो साल की सजा, जबकि दूसरी बार एक साल से तीन साल तक की कैद होगी। बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए 65 हजार रुपये की व्यवस्था भी की गई है। इसमें 50 हजार नियोक्ता देगा, जबकि 15 हजार रुपये सरकार देगी। केवल पारिवारिक पेशों में 14-18 साल तक के बच्चों के काम की छूट होगी। वह भी स्कूली घंटों के अलावा बचे वक्त में। इस फैसले के जरिए हमने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के प्रस्ताव 138 और 182 का अनुपालन सुनिश्वित कर दिया है। आगामी 10-12 जून के दौरान आइएलओ की बैठक में भाग लेने के लिए मैं जिनेवा जा रहा हूं। वहां इस विषय में बताऊंगा।
फिर विपक्षी पार्टियां सरकार पर उद्योग समर्थक होने, जबकि ट्रेड यूनियनें श्रमिक विरोधी होने का आरोप क्यों मढ़ रही हैं?
यह दुष्प्रचार है। सच्चाई यह है कि हम दोनों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं और संप्रग सरकार की गंदगी को साफ करने में जुटे हैं। इसमें कुछ समय अवश्य लगेगा, लेकिन देश को बहुत लाभ होगा। सारे काम ट्रेड यूनियनों को भरोसे में लेकर किए जा रहे हैं और त्रिपक्षीय प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है। अभी 25 मई को ही 11 ट्रेड यूनियनों के साथ हमारी चर्चा हुई है। उनकी 12 सूत्री मांगों में से 5-6 मांगों पर हम काफी आगे बढ़े हैं। जबकि बाकी मांगों पर लंबी चर्चा करनी पड़ेगी। वैसे ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल, पेट्रोलियम राज्य मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा के साथ गत 15 मई को इस मसले पर मेरी बैठक हो चुकी है। इन सारी चर्चाओं से मैंने प्रधानमंत्री को भी अवगत करा दिया है।