बड़े निवेशकों का रुझान शेयर बाजार की ओर अधिक
सोने के भावों में अपेक्षित मंदी के बाद भारतीय निवेशकों का रझान बढ़ सकता है। सोना 20,000 रुपये प्रति 10 ग्राम होगा या नहीं यह कहना कठिन है किंतु वर्षा बाद इसमें मांग बढ़ जाएगी। आम जनता ने बडी़ मात्रा में सोना खरीद लिया तो बाजार से रुपया गायब हो
इंदौर। सोने के भावों में अपेक्षित मंदी के बाद भारतीय निवेशकों का रझान बढ़ सकता है। सोना 20,000 रुपये प्रति 10 ग्राम होगा या नहीं यह कहना कठिन है किंतु वर्षा बाद इसमें मांग बढ़ जाएगी। आम जनता ने बडी़ मात्रा में सोना खरीद लिया तो बाजार से रुपया गायब हो जाएगा। निवेशकों का फिलहाल रुख शेयर बाजार की तरफ है। सोने की वैश्विक मांग 2009 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गई है।
वास्तव में सोने की मिट्टी पलित विशेषज्ञों ने की है, जो लगातार इसमें मंदी की धारणा व्यक्त कर रहे हैं। चीन का शेयर बाजार टूटने के बाद भी यदि निवेशकों ने सोने की खरीदी नहीं की तो उसके पीछे यही वजह है कि यह पीली धातु भी निवेशकों को घाटा ही पहुंचा रही है। किंतु यदि इसके आसपास पर भी आ गया तो भारत जैसे देश की आर्थिक हालत खराब हो जाएगी। यदि गरीब-अमीरों का रुपया सोने में चला गया तो वस्तु बाजार वीरान हो जाएगा। भारतीय अर्थ व्यवस्था एक और नई मुसीबत में फंस जाएगी। भारत सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं।
पिछले 11-12 वर्ष से भारत में सोने के भाव ऊपर की ओर ही जा रहे थे। लगातार तेजी के बाद इस धातु पर सटोरियों की पकड़ बन गई। जोरदार रिटर्न देने के नाम पर इसकी खरीद-बिक्री करते रहे। जिसका परिणाम यह हुआ है सोना 33,000 से ऊपर निकल गया। गरीब वर्ग बेटी के विवाह के लिए मंगलसूत्र खरीदने से मोहताज हो गए। पिछले कुछ वर्ष पूर्व तक सोना सुरक्षा का साधन न होकर सटोरियों के लिए ब्याज कमाने का साधन बन गया था। यह भी तय था कि यह स्थिति अधिक दिन तक बनी रहना संभव भी नहीं थी। अच्छे रिटर्न एवं ऊंचे भावों का लालच देकर अनेक भोले-भाले निवेशकों को फंसा दिया था। अब स्थिति ठीक विपरीत हो गई है। सोने में मंदी की धारणा से छोटे-बडे़ निवेशक बाहर हो गए हैं। विश्व के कई देशों की आर्थिक हालात खराब है। कच्चे तेल के भावों में लगातार गिरावट से भी सोना खरीदी का आकर्षण समाप्त हो गया है। भारत में चौमासा लग गया है। लग्नसरा भी नहीं है। जिससे मांग कमजोर बनी हुई है। यह तय है कि सोने की बड़ी खपत चीन-भारत में होती है। एक निश्चित स्तर पर आने के बाद खरीदी का वह तूफान भी उठ सकता है, जिसकी बाजार को कल्पना भी नहीं है। वैश्विक भाव 2010 से निचले स्तर पर आ गए है। अप्रैल-जून में सोने की मांग कम रही और वर्ष 2013 की दूसरी तिमाही के सर्वोच्च स्तर के करीब 63 फीसद कम रही।
आभूषण में सोने की खपत में 9 फीसद की गिरावट आई है। उत्पादन भी 6 फीसद कम हुआ है। सोने के भावों पर सबसे बड़ी तलवार अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों की लटकी हुई है। भावों के बढ़ने में सबसे बढ़ी रुकावट बनी हुई है। एक बार ब्याज दरों पर निर्णय हो जाए उसके बाद शायद सोना चाल पकड़ ले। पिछले कुछ महीनों से भारतीय शेयर बाजार ने भी निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। इस वजह से भी पीली धातु की हालत खराब है। किंतु जैसे-जैसे भाव घटेंगे, भारतीय निवेशक आकर्षित हो सकते हैं। जनवरी से जून तक सोने की खपत चीन में 394 टन और भारत में 392 टन रही।
[साभार: नई दुनिया]