नई दिल्ली। ग्रीस संकट और पूरी दुनिया पर उसके असर की आशंका को देखते हुए सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने पर जोर दे रही है। सबसे पहले सरकारी बैंकों की हालत सुधारी जाएगी, जो फंसे हुए कर्ज यानी एनपीए की समस्या झेल रहे हैं।
वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की मदद के लिए सरकार एक पैकेज पर काम कर रही है। इसकी बदौलत न केवल बैंकों की हालत सुधरेगी, बल्कि इंडस्ट्री को आसानी से ज्यादा कर्ज भी मिल सकेगा।
साल 2008 की मंदी के बाद सरकारी बैंकों के एनपीए में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व बैंक के 'स्ट्रेस टेस्ट' से पता चला है कि इस साल सितंबर तक इन बैंकों के कुल लोन का 4.8 फीसदी फंसा हुआ कर्ज हो सकता है। मार्च तक का एनपीए 4.6 फीसदी था। यही कारण है कि बैंक रेपो रेट में 0.75 फीसदी कटौती का पूरा फायदा कर्ज लेने वालों को नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
बैंकों को दिया जाएगा लक्ष्य
जयंत सिन्हा के मुताबिक एनपीए का मसला हर हाल में सुलझाना होगा। इसके लिए रिजर्व बैंक एक पैकेज पर काम कर रहा है, जिसे जल्द लागू किया जाएगा। सरकार पैकेज के जरिए बैंकों में कॉर्पोरेट गर्वनेंस बढ़ाने और मैनेजमेंट मजबूत करने के लिए कदम उठा सकती है। इसके तहत बैंकों को सालाना लक्ष्य दिया जाएगा, ताकि वे क्षमता बढ़ाएं।
बैंकों को बड़ी पूंजी की दरकार
सरकार इस साल बैंकों में 3 अरब डॉलर (करीब 190 अरब रुपए) की पूंजी डालेगी। एक साल बाद इसे बढ़ाकर दोगुना कर दिया जाएगा। लेकिन, विश्लेषकों का कहना है कि बैंकों को इससे कहीं ज्यादा पूंजी की जरूरत है। रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक भारतीय बैंकों को पर्याप्त पूंजी जरूरत के नए मानकों पर खरा उतरने के लिए अगले 4 वर्षों के दौरान लगभग 200 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी।
बैंकों से पूछी जाएगी जरूरत
बहरहाल, सिन्हा का कहना है, 'अगले 2 दिन के दौरान हम बेंगलुरू में बैंकों से मिलकर उनकी पूंजी से जुड़ी जरूरतों पर चर्चा करेंगे।' वित्त राज्य मंत्री के मुताबिक वे समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बैंकों को अगले 1-3 साल में कितनी पूंजी की जरूरत पड़ेगी। उन्होंने कहा कि सरकार बैंकों का सहयोग करने और उन्हें पूंजी देने के लिए तैयार है।
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