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गरीबों की गिनती में देरी से लटका खाद्य सुरक्षा कानून

गरीबों की गणना में हो रही देरी से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पर अमल खटाई में पड़ गया है। वर्ष 2011 में शुरू हुई सामाजिक आर्थिक व जातिगत जनगणना का काम आज भी पूरा नहीं हो सका है। इसके चलते खाद्य सुरक्षा कानून कोलागू करने में अड़चनें आई हैं। साथ

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Tue, 26 May 2015 08:11 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2015 08:24 AM (IST)
गरीबों की गिनती में देरी से लटका खाद्य सुरक्षा कानून

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गरीबों की गणना में हो रही देरी से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पर अमल खटाई में पड़ गया है। वर्ष 2011 में शुरू हुई सामाजिक आर्थिक व जातिगत जनगणना का काम आज भी पूरा नहीं हो सका है। इसके चलते खाद्य सुरक्षा कानून कोलागू करने में अड़चनें आई हैं। साथ ही कई अन्य सामाजिक कल्याण की योजनाएं भी शुरू नहीं हो पा रही हैं।

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सामाजिक-आर्थिक व जातिगत जनगणना-2011 में शुरू हुई थी। देश के साढ़े छह सौ जिलों में से बमुश्किल सवा सौ जिलों में जनगणना का काम पूरा हो पाया है। इन जनगणना के आंकड़ों से ही देश में गरीबों की वास्तविक संख्या का पता चलेगा। लेकिन, जनगणना के लगातार पिछड़ने से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करना संभव नहीं हो पा रहा है।

खाद्य सुरक्षा कानून कोलागू करने के लिए इसी जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से उपभोक्ताओं के नाम ऑनलाइन दर्ज करना अनिवार्य है। ग्रामीण विकास मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक गरीबों की गणना का काम इतनी धीमी गति से चल रहा है कि 2011 में शुरू हुई जनगणना देश के कुल साढ़े छह सौ जिलों में से केवल 119 जिलों में हो पाई है। इसे देखते हुए मई 2015 तक खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने की संभावना न के बराबर ही है।

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में एक भी ऐसा जिला नहीं है, जहां गरीबों की गणना का काम पूरा हो सका हो। हालांकि, यह सारा काम भी राज्यों को ही पूरा करना है। राज्यों की लापरवाही से हालात बहुत खराब हुए हैं। सामाजिक-आर्थिक व जातिगत जनगणना की अंतिम सूची तैयार होने में हुई लापरवाही से न सिर्फ खाद्य सुरक्षा कानून प्रभावित हो रहा है, बल्कि अन्य कई सामाजिक कल्याण की योजनाएं ठप हैं।

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