अनाज की भारी खरीदारी एफसीआइ पर पड़ेगी भारी
गेहूं व चावल की बड़े स्तर पर सरकारी खरीद भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) पर भारी पड़ सकती है। सरकार की खुली बिक्री योजना में निजी प्रतिष्ठानों व व्यापारियों के लगातार घटते रुझान से एफसीआइ का वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ा सकता है। एफसीआइ का अनाज खुले बाजार से महंगा होने की वजह
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गेहूं व चावल की बड़े स्तर पर सरकारी खरीद भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) पर भारी पड़ सकती है। सरकार की खुली बिक्री योजना में निजी प्रतिष्ठानों व व्यापारियों के लगातार घटते रुझान से एफसीआइ का वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ा सकता है। एफसीआइ का अनाज खुले बाजार से महंगा होने की वजह से बड़े व्यापारियों ने दूरी बना ली है। इससे एफसीआइ का पुराना स्टाक और बढ़ रहा है। जबकि, राजनीतिक वजहों से सरकारी खरीद में कोई कोताही बरतना संभव नहीं है।
गेहूं व चावल बिक्री योजना को बड़े व्यापारियों ने ठेंगा दिखा दिया है। उनके ठंडे उत्साह को देखते हुए योजना से चावल को हटा लिए जाने की संभावना है। एफसीआइ की ओर से कुल 20 लाख टन चावल बेचने की घोषणा के बावजूद केवल 350 टन चावल के ही खरीदार सामने आए। जबकि, सरकार ने बीते साल में कुल 50 लाख टन चावल व एक करोड़ टन गेहूं की बिक्री खुले बाजार (ओएमएसएस) में करने की घोषणा की थी। लेकिन, मुट्ठी भर अनाज ही बिक पाया है, जिससे ओएमएसएस को बड़ा धक्का लगा है। दरअसल, निगम ने चावल की बिक्री के लिए 2300 रुपये प्रति क्विंटल का भाव खोला था, जिसमें स्थानीय व अन्य कर शामिल नहीं हैं। जबकि, खुले बाजार में एफसीआइ के चावल की क्वालिटी वाला चावल इससे कम भाव पर उपलब्ध है। इसकी वजह से एफसीआइ के चावल की मांग नहीं है। वहीं, राज्यों की खरीद एजेंसियों और एफसीआइ के चावल की कीमत धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य, धान से चावल तैयार कराने का खर्च, ढुलाई और भंडारण आदि के साथ स्थानीय कर और अन्य खर्च भी जुड़ जाने से अधिक हो जाती है।
ओएमएसएस के मार्फत निजी व्यापारियों को एफसीआइ अपने ए ग्रेड चावल 2340 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचती है। सूत्रों के मुताबिक एफसीआइ की साप्ताहिक खुली बिक्री 50 टन से लेकर अधिकतम 350 टन तक हो सकी है। खाद्य मंत्रालय इसके लिए सभी राज्यों के व्यापारियों को इस योजना में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करता रहा है। इसी तरह जिन राज्यों में गेहूं का उत्पादन नहीं होता है, उन राज्यों में एफसीआइ से गेहूं की खरीद उत्साहवर्धक नहीं रही है। पिछले छह महीने के भीतर केवल 400 टन गेहूं की खरीद हो सकी है। सरकारी गोदामों में गेहूं व चावल का भारी स्टॉक होने के बावजूद व्यापारियों के निराशाजनक रुझान से सरकार की खुली बिक्री योजना निर्थक साबित हो रही है।