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सुस्त हुई रफ्तार, 7 फीसद रही देश की आर्थिक विकास दर

आर्थिक सुधारों को लेकर राजनीतिक विरोध झेल रही राजग सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे से भी कोई उत्साहजनक खबर नहीं मिली है। केंद्र ने चालू वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर पेश की है।

By Test1 Test1Edited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 08:55 PM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2015 03:02 AM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आर्थिक सुधारों को लेकर राजनीतिक विरोध झेल रही राजग सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे से भी कोई उत्साहजनक खबर नहीं मिली है। केंद्र ने चालू वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर पेश की है, वह ऐसे संकेत नहीं देती कि अच्छे दिन आ गए हैं। अप्रैल से जून की इस तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सात फीसद रही है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की ओर से जारी यह आंकड़ा सरकार के अनुमान से काफी कम है।

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वैसे यह वृद्धि दर बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही के 6.7 फीसद से ज्यादा है। मगर जनवरी-मार्च, 2015 की तिमाही में हासिल 7.5 फीसद की विकास दर से कम है। जब देश के कई हिस्सों में मानसून की स्थिति खराब रही है। निवेश की रफ्तार भी नहीं बढ़ पा रही है। जानकारों का मानना है कि ऐसे हालात में अगली दो-तीन तिमाहियों में भी आर्थिक विकास दर और नीचे जा सकती है।

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हालांकि, चीन और विकसित देशों की स्थिति को देखते हुए सात फीसद की विकास दर कम नहीं है, लेकिन राजग सरकार मौजूदा वित्त वर्ष के लिए आठ से साढ़े आठ फीसद की रफ्तार की बात करती रही है। साथ ही देश में तेजी से गरीबी को दूर करने और रोजगार के करोड़ों अवसर पैदा करने के लिए सात फीसद की वृद्धि दर नाकाफी है।

ब्याज में कटौती और जीएसटी जरूरी

अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त होने का एक असर यह होगा कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों को घटाने को लेकर अब ज्यादा सोच-विचार नहीं करेगा। साथ ही सरकार को यह संकेत चला गया है कि उसे हर कीमत पर वस्तु एवं सेवा शुल्क (जीएसटी) को लागू करना होगा। माना जाता है कि जीएसटी के लागू होने से अर्थव्यवस्था की रफ्तार में दो फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके साथ ही आर्थिक सुधार के अन्य लंबित मुद्दों पर भी सरकार को तेजी से फैसले करने होंगे।

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गणना के फॉर्मूलों में काफी अंतर

राजग सरकार ने पिछले वर्ष सकल घरेलू उत्पाद की गणना का नया फार्मूला लागू किया था। यह फार्मूला सकल मूल्य व‌र्द्धन (जीवीए) पर आधारित है। सोमवार को जब इस पर आधारित जीडीपी की वृद्धि दर जारी की गई तो इसकी तकनीकी खामियों की कई विशेषज्ञों ने आलोचना भी की। वैसे तो विश्व बैंक ने भी इसे हरी झंडी दिखा दी है, मगर इसकी तुलना खर्च के आधार पर जीडीपी के आकलन से करें तो साफ हो जाता है कि दोनों फॉर्मूलों में काफी अंतर है। दोनों आंकड़े एक दूसरे के विपरीत तस्वीर पेश करते हैं। खर्च व निवेश के हिसाब से जीडीपी की वृद्धि दर अगर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 6.7 से बढ़कर अगर सात फीसद हो गई है। इसके उलट इसी अवधि में ही जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) के आधार पर जीडीपी की वृद्धि दर 7.4 से घटकर 7.1 फीसद रह गई है। खास बात यह है कि अर्थव्यवस्था के सारे क्षेत्रों मसलन, कृषि, मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, सेवा वगैरह की तस्वीर जीवीए के आधार पर ही साफ होती है।

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कृषि व मैन्यूफैक्चरिंग की वृद्धि दर घटी

बहरहाल, इस अवधि में साफ तौर पर कृषि क्षेत्र की स्थिति बेहतर नहीं दिखाई देती। इस दौरान कृषि की वृद्धि दर 1.9 फीसद रही है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा 2.6 फीसद था। अस्थिर मानसून को देखते हुए आने वाले महीनों में यह वृद्धि दर और घट सकती है। मैन्यूफैक्चरिंग की विकास दर 8.4 से घटकर 7.2 फीसद रही है। बिजली, गैस व जलापूर्ति क्षेत्रों में वृद्धि दर 10.1 से लुढ़ककर 3.2 फीसद पर आ गई है। सेवा क्षेत्र की स्थिति ठीक रही है।

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