सोच बड़ी तो उड़ान भी ऊंची
हर वक्त पढ़ाई या काम में रमे रहने से ही सफलता की गारंटी नहीं मिल जाती। इंपॉर्टेंट यह है कि आप कितने एफिशिएंट हैं, किसी काम में आपका कितना मन लगता है। एंज्वॉय करते हुए हर काम करेंगे, तो तभी सफलता का स्वाद भी चख पाएंगे... अपनी लाइफ स्टोरी के
हर वक्त पढ़ाई या काम में रमे रहने से ही सफलता की गारंटी नहीं मिल जाती। इंपॉर्टेंट यह है कि आप कितने एफिशिएंट हैं, किसी काम में आपका कितना मन लगता है। एंज्वॉय करते हुए हर काम करेंगे, तो तभी सफलता का स्वाद भी चख पाएंगे... अपनी लाइफ स्टोरी के जरिए कामयाबी के कुछ खास मंत्र दे रहे हैं नोएडा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी में पिरामिड फिनिशिंग स्कूल के डायरेक्टर रमन बत्रा...
आज मैं बहुत खुश हूं। इसकी वजह सिर्फ मेरी अपनी नहीं है। मेरी खुशी की वजह हैं एनआइइटी के स्टूडेंट। हर साल यहां सैकड़ों छात्र आते हैं। वे पिरामिड फिनिशिंग स्कूल में ट्रेन किए जाते हैं। कैंपस सलेक्शन में लाखों की नौकरियां पाते हैं और अपना ही नहीं अपने परिवार, समाज और देश का भविष्य संवारने में लग जाते हैं। आज मैं इतना सब कुछ जो कर पा रहा हूं, वह इतना आसान बिल्कुल भी नहीं था। मैं 10+2 तक बहुत ही एवरेज स्टूडेंट था। कभी मंैने इंजीनियरिंग के बारे में सोचा भी नहीं था। मैं हमेशा से शेफ बनना चाहता था, लेकिन आज एनआइइटी जैसे इंजीनियरिंग कॉलेज में डायरेक्टर होना मेरे लिए बेहद गर्व की बात है।
पहले सेमेस्टर में फेल हो गया
1993 की बात है। उसी साल बेंगलुरु में इंजीनियरिंग के लिए सीईटी यानी कॉमन एंट्रेस टेस्ट शुरू हुआ था। मेरी बहन ने मेरा फॉर्म भर दिया। मैं मेरठ जैसे छोटे शहर में पला-बढ़ा हूं। उस समय तक कभी बेंगलुरु गया नहीं था। मुझे लगा, चलो इसी बहाने बेंगलुरु घूम आएंगे। मैं वहां गया। एग्जाम में अपीयर हुआ। ऑब्जेक्टिव टाइप क्वैश्चंस आए थे। मेरा सलेक्शन हो गया। बेंगलुरु के पीइएसआइटी में बीटेक में मेरा एडमिशन हो गया। पहले सेमेस्टर में कॉलेज कें 99.99 परसेंट स्टूडेंट्स पास हुए थे। एक जनरल मीटिंग में सभी स्टूडेंट्स के बीच यह बताया गया कि हमारा रिजल्ट 100 परसेंट होता, लेकिन सिर्फ एक स्टूडेंट के दो सब्जेक्ट में फेल हो जाने के कारण ऐसा नहीं हो सका। वह स्टूडेंट मैं ही था।
फेल्योर ने जिंदगी बदल दी
उसी मीटिंग में चेयरमैन ने मुझे स्टेज पर बुलाया और सबको दिखाया कि यही है वह स्टूडेंट। फिर तो मैं पूरे कॉलेज में मशहूर हो गया। मेरी बहन उसी कॉलेज में फाइनल ईयर में थी। वह टॉपर स्टूडेंट थी। उन्हें बोला गया कि अपने भाई को कुछ समझाओ, ताकि पढ़ाई में वह मन लगा सके और उसका रिजल्ट अच्छा हो सके। फिर चेयरमैन ने मुझे खाने पर बुलाया। दोस्तों ने कहा, भाई तू अब अपना बोरिया-बिस्तर बांध ले, अब तो तू गया इस कॉलेज से। उन्हें लगा कि मुझे अब कॉलेज से निकालने का फरमान बस सुनाया ही जाने वाला है। डिनर के दौरान उन्होंने ऐसा गुरुमंत्र दिया कि मेरे अगले सेमेस्टर में 70 परसेंट मार्क्स आए। वहीं से मेरी जिंदगी बदल गई। बीटेक में मैंने यूनिवर्सिटी में थर्ड रैंक हासिल किया था। फिर गेट क्वालिफाई किया। आइआइटी से एमटेक किया। उसके बाद मैंने इंटरनेशनल ट्रेड ऐंड आइटी में एमबीए भी किया।
डिग्री नहीं, नौकरी पर फोकस
मेरे गुरु यानी कि उस समय पीइएसआइटी के चेयरमैन ने गुरुमंत्र देते समय कहा था, मेरी बात को लोगों से बताने की बजाय ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच इम्प्लीमेंट करने की कोशिश करना। एमबीए कंपलीट करने के बाद मैं उनके उस आदेश पर अमल करना चाहता था। फिर मुझे एनआइइटी में यह ऑफर मिला। एनआइइटी के फाउंडर डॉक्टर ओपी अग्रवाल ने मुझसे कहा कि पढ़ाई तो सभी कॉलेजों में होती है, लेकिन नौकरी कितनों को मिल पाती है। बस डिग्रियां बांट दी जाती हैं। क्यों न कुछ ऐसा काम किया जाए कि हमारा हर स्टूडेंट यहां से नौकरी लेकर ही जाए।
फिर हमने रिसर्च शुरू किया। देश-विदेश के बड़े-बड़े कॉलेजों का दौरा किया। वहां के एडमिनिस्ट्रेशन और स्टूडेंट्स से मिले। काफी रिसर्च के बाद हमने पिरामिड फिनिशिंग स्कूल की स्थापना की। इसके जरिए ऐसा स्कूल बनाने की कोशिश की गई है, जिससे स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जा सके। 8 साल पहले यह स्कूल दो कमरों से शुरू किया था। आज कई सारे फ्लोर्स पर इनोवेशन सेंटर्स चल रहे हैं। शुरुआत में हमें कंपनीज के पास जाना पड़ा, लेकिन फिनिशिंग स्कूल की बदौलत आज खुद कंपन्निया हम से संपर्क करती हैं और अपनी जरूरत के हिसाब से ह्यूमन रिसोर्सेज की डिमांड करती हैं। हम उन्हें उनके मुताबिक डिलीवर भी करते हैं।
पढ़ाकू नहीं, स्मार्ट बनें
दूर-दराज के पिछड़े इलाकों से आए ज्यादातर स्टूडेंट्स में कम्युनिकेशन और इंग्लिश स्पीकिंग की प्रॉब्लम होती है। वे पढ़ाई-लिखाई में तो अच्छे होते हैं, उनके अच्छे माक्र्स भी आते हैं, लेकिन उनके भीतर ये दोनों स्किल्स डेवलप नहीं हो पातीं। कंपनियां केवल सब्जेक्ट की नॉलेज ही नहीं सर्च करतीं, वे एक स्मार्ट एम्प्लॉयी चाहती हैं। इसके लिए हमने कई सारे कैप्सूल्स बना रखे हैं। मिसाल के तौर पर इंग्लिश इंप्रूव करने के लिए हम किसी स्टूडेंट को आइपैड पर इंग्लिश गाने सुनकर उन्हें दोहराने और लिखने का काम दे देते हैं। अब यह तरीका उसे बोरिंग भी नहीं लगता और एक दिन ऐसा स्टूडेंट जो इंग्लिश में एक लाइन ठीक से नहीं बोल पाता था, वह फॉरेन डिसेंट की इंग्लिश धड़ल्ले से बोलने लग जाता है।
काम के टाइम काम, एंज्वॉय के टाइम एंज्वॉय
इंफोसिस के फाउंडर नारायणमूर्ति ने कंपनी दोबारा ज्वाइन करने के बाद अपने एम्प्लॉयीज को मेल लिखकर कहा कि अगर आप 9 से 6 के टाइम में काम पूरा नहीं कर पा रहे हैं, तो आप इनएफिशिएंट हैं। आप डिनर के टाइम ऑफिस में बैठे हैं। सिर्फ इसलिए रुके हैं कि काम है, तो यह ठीक नहीं है। आपके डिनर पर आपकी फैमिली का हक है। अगर आप सब कुछ छोड़कर सिर्फ पढ़ाई या सिर्फ काम पर ध्यान देंगे, तो फिर आप अपनी लाइफ कब जिएंगे?
जब आप अपने काम और लाइफ को एंज्वॉय नहीं कर पाएंगे, तो आपकी एफिशिएंसी धीरे-धीरे कम होती जाएगी। चेहरे की रौनक कम होती जाएगी। फिर एक दिन आपके पास खुद के इस सवाल का जवाब नहीं होगा कि आपने यह सब किसके लिए किया या किस कीमत पर हासिल किया?
एंटरटेनमेंट के साथ पढ़ाई
कोई भी स्किल डेवलप करने का सबसे आसान तरीका है एंटरटेनमेंट या स्पोट् र्स। कुछ भी सीखना हो, वह इस तरीके से सिखाया जाए कि आप उसे बिल्कुल सहज तरीके से ले सकें। उस दौरान आपका पूरा ध्यान उसी पर फोकस हो, तो फिर उसके लिए कई सारे क्लासेज और लंबे-लंबे उबाऊ लेक्चर्स की जरूरत ही नहीं पड़ती। आप अपने-आप सीखते चले जाते हैं। बस सही दिशा की जरूरत है। यह सही दिशा आपके सामने ही है, बस उसे देखने की जरूरत है।
जी भर के जियो जिंदगी
पहले मैं बहुत डरता था, खास तौर पर ऊंचाई से तो सबसे ज्यादा। मैं अपना डर खत्म करने के लिए मकाऊ गया। वहां मैंने दुनिया की सबसे ऊंची बंजी जंपिंग से जंप किया। उस वक्त डर तो बहुत ज्यादा लगा था, लेकिन कूदने के बाद जैसे जिंदगी का सार समझ में आ गया और वह सार यह था कि जिंदगी पल भर की है, उसे जी भर के जियो। उसके बाद मेरा डर खत्म हो गया। फिर मैंने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर प्लेन से बाहर स्काई जंपिंग भी की। जब भी मौका मिलता है, घूमने निकल जाता हूं।
गाड़ी ही नहीं, सोच भी बड़ी हो
जब हम छोटे थे, हमारे सामने से ऑडी निकल जाती थी, तो ऐसे सोचते थे क्या गाड़ी है यार, काश हमारे पास भी ऐसी ही गाड़ी होती, लेकिन अब ऐसा नहीं है। चीज वही है लेकिन नजरिया पूरी तरह से बदल गया। मतलब एक चीज जो कभी आपके लिए बहुत ज्यादा आश्चर्य की चीज थी, अब नहीं है। इसका मतलब इन सारी चीजों को देखकर आश्चर्य करने या काश मेरे पास यह होता, ऐसा सोच कर अफसोस करने की जरूरत ही नहीं है। असल चीज है आपकी अंतरात्मा। उसे समझने और डेवलप करने की जरूरत है। दुनिया बहुत बड़ी है, उसे देखने, समझने और एनालिसिस करने की जरूरत है। जैसे-जैसे समझ विकसित होती जाएगी, आप भले ही ज्यादा पैसे न कमा सकें, लेकिन आप वाकई सफल होंगे।
सक्सेस के टिप्स
* सबसे पहले आप खुद से प्यार करना सीखें। अपने आप से प्यार करेंगे, दुनिया में सबकुछ अच्छा लगेगा। आपको सभी अच्छे लगेंगे और लोग भी आपको पसंद करेंगे।
* मुझे टहलने और घूमने का शौक है। मैं पहले अपने शौक पूरे करता हूं। बाकी सब बाद में हैं। आप सभी से भी यही कहना चाहता हूं कि पहले अपने शौक पूरे करें।
* काम और इच्छाएं कभी खत्म नहीं होने वाले हैं। एक खत्म हुआ तो दूसरा हाजिर। इसलिए इच्छाओं को कभी भी अपने ऊपर हावी न होनें दें।
* बचाने की प्रवृत्ति बहुत जरूरी है। आपके पास 1 लाख रुपये आ गए, तो इसका मतलब यह नहीं कि पूरा का पूरा खर्च कर दें, 10 हजार बचा भी लें।
* प्रैक्टिस मेक्स अ मैन परफेक्ट का जुमला अब पुराना पड़ गया है। इसमें ‘राइट’ जोड़ें यानी सही दिशा में प्रैक्टिस करें। सही स्ट्रेटेजी से सही दिशा में प्रयास करेंगे, तो कामयाबी की संभावना बढ़ जाती है।
* दुनिया आपके पहले भी थी और आपके बाद भी रहेगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप दुनिया को क्या देकर जाते हैं और कितना एंज्वॉय करते हुए काम करते हैं।
इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव