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पूरी होगी युवाओं की आस ...!

मोदी सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले बजट पर वैसे तो पूरे देश की निगाहें टिकी हैं, पर युवाओं को इससे कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं। दरअसल, डिजिटल होते इंडिया के युवाओं को सबसे ज्यादा जरूरत स्किल डेवलप करने और उपयुक्त नौकरी पाने की है। जब देश के उद्योगों में

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 24 Feb 2015 02:43 AM (IST)Updated: Tue, 24 Feb 2015 03:29 AM (IST)
पूरी होगी युवाओं की आस ...!

मोदी सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले बजट पर वैसे तो पूरे देश की निगाहें टिकी हैं, पर युवाओं को इससे कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं। दरअसल, डिजिटल होते इंडिया के युवाओं को सबसे ज्यादा जरूरत स्किल डेवलप करने और उपयुक्त नौकरी पाने की है। जब देश के उद्योगों में स्किल्ड लोगों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती देश के युवाओं को कुशल बनाने की ही है। इस बार के आम बजट से युवाओं को और क्या-क्या खास उम्मीदें हैं, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

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शरमन मैकेनिकल ट्रेड से पॉलिटेक्निक की पढ़ाई कर रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने काउंसलर से यह जानना चाहा कि वह इस कोर्स के साथ कैसे अपनी स्किल को बढ़ाकर भविष्य में अच्छी जॉब पा सकते हैं। काउंसलर ने उन्हें सलाह दी कि वह पढ़ाई के साथ पार्टटाइम में प्रैक्टिकल नॉलेज हासिल करने का प्रयास करें। शरमन ने कहा कि उनके संस्थान में थ्योरी पर ज्यादा जोर दिया जाता है, प्रैक्टिकल के लिए तो वहां बहुत कम ध्यान दिया जाता है। काउंसलर ने उन्हें रास्ता बताया कि कॉलेज में जो पढ़ाया-बताया जा रहा है, वह उस पर पूरा ध्यान देते हुए सुबह या शाम के खाली वक्त को मैनेज करें। वह अपने शहर के ऑटोमोबाइल शोरूम्स-सर्विस सेंटर्स से संपर्क करें। वहां के इंचार्ज सर्विस इंजीनियर या हेड से परिचय करें और उनसे काम सिखाने का अनुरोध करें। अगर एक जगह बात न बनें, तो दूसरी जगह जाएं।

शरमन ने थोड़ी हिचक के साथ कदम आगे बढ़ाया। उन्हें तब सुखद आश्चर्य हुआ, जब पहली कोशिश में ही उन्हें कामयाबी मिल गई। एक बड़ी कार ऑटोमोबाइल कंपनी के सर्विस सेंटर पर उन्हें काम सीखने की अनुमति मिल गई, इस शर्त के साथ कि उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाएगा। काउंसलर की सलाह के मुताबिक, उन्होंने यह शर्त बिना किसी आनाकानी के स्वीकार कर ली। ज्यादातर सैद्धांतिक बातें तो उन्हें पता थी हीं, कुछ ही दिन में उन्हें वहां मजा आने लगा। काम सिखाने वाले इंजीनियर को भी जिज्ञासु और विनम्र सहयोगी पाकर अच्छा लग रहा था। अगले दो महीने कैसे निकल गए, शरमन को पता ही नहीं चला। इन दो महीनों में उन्होंने कार की खराबी ढूंढ़ने से लेकर उसे दूर करने तक की सारी बारीकियां प्रैक्टिकली सीख लीं। उनकी लगन और कुशलता देखकर वहां के हेड इंजीनियर ने उन्हें जॉब ऑफर कर दिया। हालांकि उन्होंने ज्वाइन नहीं किया है, पर इससे उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ गया। उन्होंने काउंसलर को अपनी उपलब्धियां बताईं और आगे के बारे में पूछा। उनसे कहा गया कि अब वह किसी दूसरी कंपनी के या बसों-ट्रकों के सर्विस सेंटर पर संपर्क करके वहां काम सीखने का प्रयास करें।

कागजी न हों उपाय

शरमन की तरह देश के करोड़ों युवा ऐसी स्किल सीखना सीखना चाहते हैं, जिससे उनका करियर चमकदार हो सके। स्किल डेवलपमेंट की दिशा में कॉलेज-स्कूल और विश्वविद्यालयों में भी कारगर प्रयास किए जाएं, तो इसका भरपूर लाभ हमारे देश के युवा उठा सकते हैं। फिलहाल स्थिति यह है कि पिछले कुछ वर्षों में पूरे देश में तकनीकी शिक्षा संस्थान तो बड़ी तादाद में खुल गए हैं, लेकिन उनमें से गिने-चुने ही हैं, जहां से पासआउट होने वाले स्टूडेंट्स को अपनी काबिलियत के आधार पर वांछित नौकरी मिल जाए। ज्यादातर को उनकी डिग्री के आधार पर कोई नौकरी नहीं मिल पाती। पिछली सरकार में स्किल डेवलपमेंट सेंटर बनाने और चलाने की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन इसका अब तक कोई खास परिणाम नहीं दिखा है। इसका नतीजा यह हुआ कि कागजों पर स्किल डेवलपमेंट का ढिंढोरा पीटे जाने के बावजूद छोटे शहरों और गांवों के युवाओं तक इसका लाभ नहीं पहुंचा।

नई सरकार से उम्मीदें

अब जबकि लोकप्रिय लीडर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में एक मजबूत सरकार है, तो युवाओं को लगता है कि आगामी बजट के जरिए उनके लिए स्किल डेवलपमेंट की कोई ऐसी कारगर योजना आएगी, जिसका उन्हें समुचित लाभ मिल सकेगा। उसके लिए आवंटित धनराशि की बंदर-बांट बिचौलिए टाइप के लोगों के बीच नहीं होगी।

इंडस्ट्री के साथ टाइअप

जब एक्सपट्र्स और इंडस्ट्री के लोग लगातार यह चिंता जता रहे हैं कि देश में स्किल्ड लोगों की भारी कमी है, तो इस दिशा में कारगर प्रयास क्यों नहीं किए जाते? क्यों बेरोजगारी को बढ़ने दिया जा रहा है? होना तो यह चाहिए कि अलग से स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोले जाने के अलावा, स्कूलों-कॉलेजों के लिए यह अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए कि वे इंडस्ट्री के साथ टाइअप करें। इससे दो फायदे होंगे। एक, तो इंडस्ट्री उन्हें यह बता सकेगी कि उसे किस तरह की स्किल वाले कर्मचारियों की जरूरत है, ताकि संस्थान में उसी स्किल के अनुसार पढ़ाई कराई जा सके। दूसरे, इंडस्ट्री के एक्सपट्र्स को संस्थान की रेगुलर फैकल्टी में शामिल किया जाए, ताकि वे बदलते वक्त की जरूरतों के बारे में स्टूडेंट्स को अवगत कराते हुए उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण दे सकें। स्टूडेंट्स और टीचर्स को नियमित रूप से इंडस्ट्री विजिट के लिए भी भेजा जाए। कोर्स के आखिर में इंटर्न के रूप में स्टूडेंट्स से काम कराया जाए। ऐसा होने पर कॉलेज से निकलने के बाद वे पहले दिन से ही इंडस्ट्री के लिए उपयोगी साबित हो सकेंगे।

* 2030 तक भारत में 18 से 25 वर्ष की उम्र के 14 करोड़ स्टूडेंट होंगे।

* 2030 तक 25 करोड़ कुशल कामगारों की जरूरत होगी। फिलहाल देश में सिर्फ 2 प्रतिशत लोग ही कुशल कामगार की श्रेणी में शामिल हैं।

* हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में 33 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली हैं।

* एजुकेशन पर जीडीपी का 4.29 प्रतिशत खर्च होता है। इसमें उच्च शिक्षा पर सिर्फ 0.89 प्रतिशत और तकनीकी शिक्षा पर महज 0.54 प्रतिशत खर्च होता है।

हार नहीं मानूंगा


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