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सुबह-सुबह जलते हैं पुतले और पटाखे

छोटी दीवाली पर दक्षिण भारत के राज्यों में होता है जमकर धूम-धड़ाका। नरक चतुर्दशी की सुबह यहां तड़के चार बजे से ही फूटने लगते हैं पटाखे...

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 23 Oct 2016 09:41 AM (IST)Updated: Sun, 23 Oct 2016 09:49 AM (IST)
सुबह-सुबह जलते हैं पुतले और पटाखे

अगर नोबिता कोई हिंदुस्तानी बच्चा होता तो यह बात पढ़ने के बाद वो डोरेमॉन से एनी व्हेअर डोर मांगने के लिए अब तक 200 बार फर्श पर लोट चुका होता है। वजह ही ऐसी है भोलूराम, तुम तो अपने पटाखों को दीवाली तक बड़ा संभाल-समेट कर रखोगे, जब रात को पापा मम्मी गणेश-लक्ष्मी जी की पूजा कर लेंगे तब ही छुरछुरिया-अनार- पड़ाका-हंटर छुड़ाने की परमिशन मिलेगी। दीदी-भैय्या के साथ छुप-छुपाकर एक-आध सांप की टिक्की और सीको जला लेओ तो बात अलग है, है कि नहीं? ई तौ हम बच्चन के साथ बहुतै भयंकर वाली नाइंसाफी है भोलूराम! पता है काहे? वो इसलिए कि जब छोटी दीवाली की सुबह मम्मी हमको हिलाहिलाकर जल्दी उठा रही होती हैं, उससे भी दो घण्टा पहिले से इसी भारत देश में जाने कितने लाख बच्चे पटाखे दगा-दगा के सारे के सारे शहर को नींद से उठा रहे होते हैं!

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आ गई न डोरेमॉन और उसके एनी व्हेअर डोर की याद। सच्ची में अगर वो मिल जाए तो छोटी दीवाली की सुबह
इधर से घुसें और निकलें उधर साउथ इंडिया के चार स्टेट्स में। वहां दो पटाखे चलाएं, मुंह में मुरुक्कु दबाएं और फिर तुरंत निकल जाएं गोवा, जहां पटाखे भर के ये बड़े-बड़े पुतले जलाए जा रहे हों। किसके... रावण के... अरे नहीं भोलूराम, उसका काम तो दशहरे में ही तमाम हो गया। उधर उसका मतलब भी नहीं, ये तो ह्यनरकासुरह्ण के जंबो साइज पुतले हैं, जो गोवा के छोटी दीवाली मतलब नरक चतुर्दशी के मशहूर सेलिब्रेशन की शान हैं!

हां भोलूराम, अगर उत्तर भारत में दीपक जलाने और पटाखे फोड़ने का काम दीवाली की शाम को शुरू होता है तो वहीं दक्षिण भारत के चार राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह धूम-धड़ाका छोटी दीवाली पर सुबह सूरज निकलने से बहुत पहले ही (मतलब ब्रह्म मुहूर्त में) प्रारंभ हो जाता है। इस दिन लोग सुबह-सुबह उबटन लगाते हैं, नहा-धोकर नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, चावल से बना नमकीन मुरुक्कु खाते हैं और दीपकों की रोशनी के साथ पटाखे-आतिशबाजी जलाते हैं। कर्नाटक से सटे राज्य गोवा में तो यह धूम और भी बढ़ जाती है, जहां इत्ती सुबह खूब जोर-शोर से नरकासुर के पुतले जलाए जाते हैं।

अरे उधर कहां चले, अपने मतलब की पूरी कहानी सुनने के बाद अब असली कहानी भी तो सुन लो भोलूराम! यह भी तो जान लो कि यह नरकासुर कौन था जिसकी वजह से इन राज्यों में यह उत्सव इतनी सुबह शुरू हो जाता है? दरअसल, नरकासुर नामक दैत्य को यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल सूर्योदय से पूर्व हो सकता है। प्रॉब्लम यह थी कि प्राचीन हिंदू परंपरा में शाम ढलने के बाद और सूरज उगने से पहले किसी से युद्ध करना मना था। इसी कारण से वह देवताओं को जीभर के परेशान करता था और सही टाइम पर छुप जाता था।

सब देवता थक-हार गए और तब सहायता के लिए सामने आए भगवान श्रीकृष्ण। ऐसा इसलिए क्योंकि वो भगवान श्रीकृष्ण ही थे जो गलत चीज के खिलाफ लड़ने में सही-गलत तरीकों का हिसाब-किताब नहींलगाते थे। तो हुआ यह कि छलिया भी कहलाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने छल का सहारा लेकर सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में नरकासुर का वध कर दिया। ऐसा होते ही देवताओं ने दीपक जला कर खुशियां मनाईं। अमावस्या के एक दिन पहले नरकासुर मारा गया था तो इस त्योहार का नाम पड़ा नरक चतुर्दशी। सूर्योदय से पहले ही भगवान श्रीकृष्ण ने उसके आतंक का अंधेरा मिटा दिया था इसीलिए दक्षिण भारत में इस दिन सूरज निकलने से काफी पहले दीये जला दिए जाते हैं और आतिशबाजी- पटाखों से उत्सव प्रारंभ हो जाता है!
मनीष त्रिपाठी

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