जानिए कैसे हुई आपकी दीवाली में चार चांद लगाने वाली आतिशबाजी की शुरूआत
आज हम अपनी खबर में बताएंगे की आखिर आतिशबाजी की शुरूआत कैसे हुई जाएगा।
हम हर साल दीवाली पर ढ़ेर सारे पटाखे और आतिशबाजी का इस्तेमाल करते हैं पर आपने कभी सोचा है कि अगर आतिशबाजी और पटाखे नहीं होते तो हम दीवाली कैसे मनाते? इसके बिना दीवाली भी सामान्य त्योहारों की तरह ही बनकर नहीं रह जाती? आज हम अपनी खबर में बताएंगे की आखिर आतिशबाजी की शुरूआत कैसे हुई ।
इतिहासकारों का विश्वास है कि आतिशबाजी के प्रमुख तत्व बारूद (ब्लैकपाउडर अथवा गनपाउडर) का आविष्कार वर्ष 1000 में चीन में हुआ था। शुरू में इसे जंगली जानवरों को खदेड़ने के लिए बांस के खोल में भर कर दागा जाता था परंतु बाद में इसका प्रयोग युद्ध में भी होने लगा।
वहीं भारत में आतिशबाजी का प्रचलन वर्ष 1400 के आस-पास दक्षिण भारत के तत्कालीन विजयनगर राज्य से प्रारंभ हुआ। दक्षिण भारत के इस काल के दो ग्रंथों ‘बाणशास्त्रम’ व ‘वोगरसूत्रम’ में आतिशबाजी तैयार करने के नुस्खे बताए गए हैं।
आतिशबाजी निर्माण और संचालन की कला को ‘पायरोटेक्निक’ तथा इससे संबधित पेशेवरों को ‘पायरोटेक्निशियन’ कहा जाता है। पटाखे बनाने वाले ये प्रोफेशनल लोग ऐसी आतिशबाजियां भी बनाते हैं जो आकाश में जाकर किसी कंपनी का नाम लिख कर उसका विज्ञापन कर सकती हैं।
विश्व की सबसे महंगी आतिशबाजी अमेरिका स्थित ‘स्टैच्यू Mऑफ लिबर्टी’ की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर छुड़ाई गई थी। एक घण्टे से भी कम समय तक चली इस आतिशबाजी की लागत 17 लाख डॉलर आई थी।
प्रत्येक वर्ष आतिशबाजी से दुर्घटनाग्रस्त होने वाले व्यक्तियों में 50 प्रतिशत से अधिक 15 वर्ष से कम आयु के होते हैं। आतिशबाजी से होने वाली दुर्घटनाओं में सर्वाधिक मामले आंखों, हाथों, सिर और चेहरा झुलसने के होते हैं!
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