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हार की जीत

बिना किसी कारोबारी बैकग्राउंड के आज के तमाम युवा एंटरप्रेन्योर जोखिम लेने को तैयार रहते हैं। हार के बारे में वे सोचते ही नहीं। कामयाबी नहीं भी मिली, तो गलतियों से सीख लेते हुए आगे बढ़ने को तत्पर रहते हैं। इतना ही नहीं, शुरुआती नाकामियों के बावजूद वे अपनी अलग

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2015 11:38 PM (IST)Updated: Tue, 15 Sep 2015 03:22 AM (IST)

बिना किसी कारोबारी बैकग्राउंड के आज के तमाम युवा एंटरप्रेन्योर जोखिम लेने को तैयार रहते हैं। हार के बारे में वे सोचते ही नहीं। कामयाबी नहीं भी मिली, तो गलतियों से सीख लेते हुए आगे बढ़ने को तत्पर रहते हैं। इतना ही नहीं, शुरुआती नाकामियों के बावजूद वे अपनी अलग सोच और मेहनत से स्थापित कारोबारियों को अचरज में डाल रहे हैं। इससे साबित होता है कि नाकामी-हार से सबक लेकर आगे बढ़ने वाले एक न एक दिन सफलता की इबारत जरूर लिखते हैं। हार को जीत की सीढ़ी मानने की बात करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा पर जोर दे रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

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‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितनी बार असफल होता है। हालात बदलने के लिए एक सफलता ही काफी होती है।’ -मार्क क्यूबन (बास्केटबॉल टीम डलास मैवेरिक्स के मालिक व अमेरिकी अरबपति)

‘कंपनी के फेल होने का मतलब यह नहीं है कि जिंदगी नाकाम हो गई है। हां, अगर आप रिश्तों में असफल होते हैं, तो आपकी जिंदगी किसी काम की नहीं है।’ -इवान विलियम्स (ट्विटर के को-फाउंडर)

हारने से हर कोई डरता है। कोई नहीं चाहता कि वह हारे। चाहे खेल का मैदान हो या युद्ध का या फिर करियर या जिंदगी का ही क्यों न हो। सभी जीत चाहते हैं। पर जीतता वही है, जो हर मोर्चे पर मानसिक रूप से खुद को लगातार मजबूत रखने में सक्षम होता है।

एक नहीं तो दूसरी राह

आइआइटी दिल्ली से पढ़े राघव वर्मा कुछ साल पहले नोएडा स्थित एक अमेरिकन मैनेजमेंट कंसल्टेंट फर्म में काम करते थे। दो साल काम करने के बाद जब इस काम से उन्हें बोरियत होने लगी, तो उन्होंने जॉब छोड़ दी और अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर स्टार्ट-अप ‘प्रेपस्क्वेयर’ की शुरुआत की। यह उन स्टूडेंट्स के सामने ऑनलाइन विकल्प के रूप में पेश किया गया था, जो कोचिंग पर लाखों रुपये खर्च करते थे। इसके जरिए बेहतरीन टीचर्स के वीडियो लेक्चर्स और टेस्ट पेपर्स की लाइब्रेरी उपलब्ध कराई जा रही थी। शुरुआती बेहतर रिस्पॉन्स के बावजूद ऑनलाइन मीडियम पर स्टूडेंट ज्यादा भरोसा नहीं कर पाये। ऑफलाइन काम शुरू करने के लिए पर्याप्त फंड न होने के कारण इस स्टार्ट-अप को बंद करना पड़ा। हालांकि कुछ ही समय बाद वर्मा ने दिल्ली-एनसीआर में अलग-अलग फ्लेवर वाले चाय बेचने के लिए ‘चायोस’ के नाम से दूसरे स्टार्ट-अप की शुरुआत कर दी। तेजी से आगे बढ़ रही गुड़गांव बेस्ड इस कंपनी को 2 करोड़ रुपये की एंजेल फंडिंग मिल गई है। कई और इनवेस्टर इसमें निवेश कर रहे हैं।

अपनों का साथ

आइआइटी खड़गपुर से ग्रेजुएट पंकज जज द्वारा शुरू किया गया स्टार्ट-अप ‘जियो इंडिया’ तीन साल में ही बंद हो गया था। यह उनके लिए बड़ा झटका था। एंटरप्रेन्योर बनने के लिए आइटी सेक्टर की जॉब छोड़ने वाले पंकज ने इस नाकामी की बात केवल अपनी होने वाली पत्नी को बताई। विवाह के बाद उन्होंने एक दोस्त के साथ मिलकर पत्नी के सहयोग से ‘चायठेला’ नामक कियॉस्क बेस्ड स्टार्ट-अप शुरू किया। यह स्टार्ट-अप भी अलग-अलग फ्लेवर वाले चाय बेचती है। दिल्ली-एनसीआर में इसके कई आउटलेट्स खुल गए हैं और इसे फंडिंग भी मिलनी शुरू हो गई है।

एक समय में एक काम

आइआइटी-बीएचयू के बीटेक स्टूडेंट अभिषेक कुमार ने एक साथ दो वेंचर आरंभ किए थे-‘करियर ऐंड मी’ और ‘बनारसी साड़ीज डॉट कॉम’। शुरुआती सफलताओं के बावजूद व्यावहारिक दिक्कतों की वजह से इन दोनों को बंद करना पड़ा। इससे उन्हें झटका जरूर लगा, पर वे बिजनेस की दुनिया से बाहर नहीं निकले। इससे उन्हें यह सबक मिला कि, ‘एक समय में एक ही स्टार्ट-अप पर फोकस करना चाहिए।’ इसके बाद उन्होंने ‘स्कूलमित्र’ नाम से एक एजुकेशन टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप की शुरुआत की, जो स्कूलों को तकनीक पर आधारित सेवाएं देती है। उनका टारगेट 2020 तक पांच हजार से ज्यादा स्कूलों तक अपनी सेवाओं को पहुंचाना है।

कदम क्यों ठिठकें

हाल के वर्षों में स्टार्ट-अप्स के रूप में कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले तमाम एंटरप्रेन्योर्स युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हैं। उन्हें देखकर उत्तर भारत के अधिकतर स्टूडेंट-युवा भी ऊंचे-ऊंचे सपने देखने लगे हैं। उनमें से कई अपने सपनों को हकीकत में तब्दील करने की दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं, लेकिन कई के कदम ठिठके रहते हैं। काउंसलिंग के दौरान मेरे पास कई ऐसे ईमेल और फोन आते हैं, जिनमें उनका कहना होता है कि वे बड़े सपने देखते हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचना चाहते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें डर भी लगता है। इसकी वजह से उनके कदम आगे बढ़ने से पहले ठिठक जाते हैं।

कॉन्फिडेंस बढ़ाना जरूरी

दरअसल, युवाओं के डर के पीछे अपने सपनों को पाने की दिशा में उनकी कोई ठोस तैयारी न होना ही होता है। बैठे-बिठाये सपने देखना तो बेहद आसान है, लेकिन सपनों को पूरा करने के लिए सही दिशा में ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत होती है। इसके लिए अपने भीतर अपेक्षित योग्यताओं को बढ़ाने की भी दरकार होती है। अगर आप प्रयास और मेहनत ही नहीं करेंगे, तो सपने पूरे कैसे होंगे? ऐसे में डर तो लगेगा ही। समुचित तैयारी करने से ही आपके कदम पूरे उत्साह के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकते हैं। इससे आपके भीतर आत्मविश्वास भी उत्पन्न होगा। आपके प्रयासों के साथ आपके कॉन्फिडेंस लेवल में भी लगातार बढ़ोत्तरी होती रहती है।

व्यावहारिक हो सोच

दूसरों की कामयाबी देखकर उस जैसा बनने का सपना देखना ठीक नहीं। आप किसी को आदर्श मानकर उसकी कामयाबी से प्रेरित जरूर हों, पर उसके संघर्षों से सबक सीखने का प्रयास भी अवश्य करें। अपने लिए कोई मंजिल या लक्ष्य तय करते समय यह जरूर देखें कि आपकी क्षमता-योग्यता के हिसाब से वह लक्ष्य उचित है या नहीं? अगर आपको लगता है कि आपने लक्ष्य बहुत ऊंचा चुन लिया है, तो इस पर जरूर पुनर्विचार करें। अच्छी तरह से सोच-विचार करने के बाद जो लक्ष्य चुनें, उस पर अनवरत चलते रहने के लिए उपयुक्त रणनीति अवश्य बनाएं और उसके अनुसार बिना आलस पूरे मन से प्रयास करें।

मन को रमाएं

अगर आप अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं, तो अपने चुने हुए या मन के काम में पूरी तरह से रमना होगा। उसके लिए जरूरी योग्यताओं को खुद में विकसित करें। जहां जरूरत हो, वहां खुद को आज की तकनीक के हिसाब से भी ढालें। रस्मी तरीके से काम करके आप अपनी पहचान कतई नहीं बना सकते। हो सकता है आपको अपने मन का काम चुनने और उसमें करियर बनाने का मौका मिल जाए। अगर ऐसा हो जाता है, तो अवसर का लाभ उठाने से कतई न चूकें। जितना डूब कर जितनी मेहनत से काम कर सकते हैं, करने का प्रयास करें। न तो हार या दूसरे की टिप्पणियों से डरें और न ही शुरुआती सफलताओं से आत्ममुग्ध हों। खुद को जमीन से जोड़कर रखें। विनम्र रहकर ही आप दूसरों से कुछ न कुछ सीखते रह सकते हैं। इससे आप सम्मान भी पाएंगे और दूसरों का भरपूर साथ भी। हो सकता है कि जिस फील्ड में काम कर रहे हैं, उसमें मन न लग रहा हो, लेकिन मजबूरी उस पेशे में बने रहने की है। ऐसे में मन रमाने की कोशिश करनी चाहिए।

* खुद को कामयाब बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले खुद को आज के समय के अनुसार काबिल बनाने का प्रयास करें।

* स्किल सीखने के लिए आज के समय में आपके पास ऑनलाइन जरिया उपलब्ध है।

* पढ़ाई या कोई काम शुरू करने में असफलता या हार मिलती है, तो घबराएं नहीं। अपने कदम रोकें नहीं।

* अपने भीतर कामयाबी की जिद पैदा करें। नाकामी या हार से सबक लेकर कमजोरियों को दूर करें और आगे बढ़ें।

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