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दिल्ली में ले मजा अमृतसरी चूर-चूर नान का

पहाडग़ंज के देशबंधु गुप्ता रोड पर अमृतसर में परोसे जाने वाले स्वाद से लेकर पुरानी दिल्ली के चटपटे मसालों तक सुस्वाद मिल जाएगा।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 01 Oct 2016 11:09 AM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2016 11:23 AM (IST)

पंजाबी खासकर अमृतसरी जायकों का लुत्फ उठाना हो तो पहाडग़ंज की देशबंधु गुप्ता रोड चले जाइए। यहां अमृतसर में परोसे जाने वाले स्वाद से लेकर पुरानी दिल्ली के चटपटे मसालों तक सुस्वाद मिल जाएगा। इस मार्ग पर कदम-कदम पर चूर-चूर के नान की दुकानें, खोमचे लगे हैं। इन सब में सबसे पुरानी दुकान है चावला की जो कि चूर-चूर नान के लिए काफी मशहूर हो चुकी है।

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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के नजदीक अजमेरी गेट की तरफ जाने वाली देशबंधु गुप्ता रोड अब अमृतसरी जायकों का नया ठिकाना है। दो दशक में यहां कई तरह के नान और दाल मखनी के जायकों का लोग लुत्फ उठा रहे हैं। इस रोड पर छोटी बड़ी करीब आधा दर्जन दुकानें खुल चुकी हैं लेकिन चावला चूर चूर के नान की मशहूरियत दूर दूर तक है।

खासकर पर्यटकों के लिए स्वाद के इस ठिकाने में सात तरह के नान का स्वाद मौजूद है। आलू, गोभी, पनीर, पालक, दाल, मिर्च, मूली के नान की थाली में दाल मखनी, छोले, रायता और चटपटी चटनी के साथ लच्छेदार प्याज। अमृतसरी थाली को लगाने के तरीके और इन जायकों को देखकर ही मुंह में पानी भर आता है। इस दुकान के संचालक मनोहर चावला बताते हैं कि पहले उनके पिताजी स्व.वजीर चंद ने इसी रोड पर कुल्फी, रबड़ी, भल्ले पापड़ी की रेहड़ी लगाई। फिर किसी काम से उन्हें अमृतसर जाना पड़ा। वहां किसी ढाबे में नान को चूर चूर कर परोसते देखा। इसका स्वाद इतना लजीज था कि वहीं से उन्होंने इसे दिल्ली में भी आजमाने की सोची। करीब 35 साल पहले इसी रोड पर आइसक्रीम की ठेली छोड़ उन्होंने चूर-चूर के नान बनाना शुरू किया। शुरुआत से ही यहां सात तरह के नान बनाए जाने लगे। उस समय नान की थाली की कीमत आठ रुपये हुआ करती थी। गर्मागर्म नान के कुरकुरे सुस्वाद ने लोगों को अपना मुरीद बना लिया। आज भी यही स्वाद बरकरार है।

मनोहर बताते हैं कि पिताजी की तरह नान और छोलों में घर पर तैयार मसालों का ही इस्तेमाल किया जाता है। 30 दशक पहले भी इस दुकान पर लोग खाने पर जमा हुआ करते थे, खासकर चुनाव के समय जब नेता की तकरीरों में नान के जायकों का चटपटा और तीखा स्वाद शामिल हो जाया करता था। इतने साल बीतने के बाद भी चूर चूर के नान का नाम आज भी बरकरार है। आज 80-90 रुपये में भी लोग बड़े चाव से नान खाने आते हैं। इसके साथ लोग चाहे तो अमृतसरी लस्सी का स्वाद भी ले सकते हैं। मनोहर बताते हैं कि इस जायके ने उन्हें मशहूरियत दी इसलिए इसके स्वाद से कहीं कोई समझौता नहीं किया गया। इसी वजह से दूसरे लोगों ने भी इस स्वाद

को अपनाने की कोशिश की। पिताजी ने इसके लिए पंजाब में ढाबों वालों से ट्रेनिंग भी ली। एक महीने की ट्रेनिंग के दौरान वहां के जायके के साथ लाहौरी स्वाद भी जुड़ गया।

सरहद पार से...

सन् 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद लाहौर से आए हिंदुओं ने पहाडग़ंज में अपना नया बसेरा बसाया। सरहद पार से आए इन लोगों के पास कुछ सामान और कुछ हुनर ही साथ आ पाया था। बड़ी हिम्मत से लोगों ने अपना बसेरा न केवल बसाया बल्कि लोगों को अपने खाना बनाने के हुनर से भी रूबरू कराया। कुल्फी की ठंडक से गर्मागर्म करारे आलू-गोभी नान तक के जायके को लोगों ने खूब पसंद किया। दिल्ली के लोगों के बेशुमार प्यार के कारण आज चावला चूर-चूर नान एक नया पता बन गया है उस जायके का सफर अमृतसर में कहीं शुरू हुआ था। भट्टी, और बड़े पतीलों में सुबह तड़के ही नान बनाने के आटे माडऩे से लेकर स्टफिंग बनाने तक के अंदाज में कुछ अलग है जो स्वाद में भी झलकता है। मनोहर 65 वर्ष की उम्र में भी नान की थाली खुद लोगों को परोसते हैं, पैसे के साथ लोगों के चेहरे पर आती मुस्कुराहट ही मेहनत का इनाम है।

प्रस्तुति: विजयालक्ष्मी


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