प्रकृति प्रेमी डार्विन से जुड़ी कुछ बातें
जींव विज्ञानी चार्ल्स डार्विन की खोज से ही दुनिया को जीवों के विकास के बारे में पहली बार यह जानकारी मिली कि कैसे प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया के आधार पर पीढ़ी दर पीढ़ी नस्लों का विकास होता है। इस खोज को उन्होंने अपनी किताब 'द ऑरिजिन ऑफ स्पेशीज' में प्रजातियों की उत्पत्ति और
जींव विज्ञानी चार्ल्स डार्विन की खोज से ही दुनिया को जीवों के विकास के बारे में पहली बार यह जानकारी मिली कि कैसे प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया के आधार पर पीढ़ी दर पीढ़ी नस्लों का विकास होता है। इस खोज को उन्होंने अपनी किताब 'द ऑरिजिन ऑफ स्पेशीज' में प्रजातियों की उत्पत्ति और उनके विकास के सिद्धांत का नाम दिया।
-'द ऑरिजिन ऑफ स्पेशीज' पहली बार जब प्रकाशित हुई थी, तो उसका नाम था- द ऑरिजिन ऑफ स्पेशीज बाई मींस ऑफ नेचुरल सेलेक्शन ऑर द प्रिजर्वेशन ऑफ फेवर्ड रेसेज इन द स्ट्रगल फॉर लाइफ। जब इसका छठा एडीशन बाजार में 1872 में आया, तो इसके टाइटल को छोटा कर 'द ऑरिजिन ऑफ स्पेशीज' रखा गया। -डार्विन ने इस किताब के लिए नेचुरल सेलेक्शन थ्योरी लिखने से पहले कई समुद्री यात्राएं कीं। उन्हें यह अवसर बीगल अनुसंधान जहाज के माध्यम से मिली।
-बचपन में डार्विन आलीशान मकान में रहते थे और समुद्र से डरते थे, लेकिन प्रकृति से खूब प्रेम भी करते थे। इसीलिए उन्होंने पांच साल लगातार समुद्री यात्राएं कीं।
-वे जगह-जगह पत्तियां, पत्थर, लकडि़यां, जानवरों की हड्डियां एकत्रित करते रहते और लुप्त हो चुके जीवों के जीवाश्मों का भी अवलोकन करते थे।
-उस समय फोटोग्राफी की सुविधा नहीं थी, इसलिए उन सारे नमूनों को इकंट्टा कर, उन पर लेबल लगाकर समय-समय पर उन्हें इंग्लैंड भेजना होता था। अपने काम के सिलसिले में वे लगातार दस घंटे घुड़सवारी किया करते और मीलों पैदल चलते।
-डार्विन ने अपनी पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त सारा धन इसी कार्य पर लगा दिया। इसके लिए उन्हें किसी प्रकार का सरकारी सहयोग प्राप्त नहीं हुआ।
-हालांकि 1844 में ही उन्होंने पूरी किताब लिख ली, लेकिन इसे उन्होंने प्रकाशित करने की कोई जल्दी नहीं दिखाई, क्योंकि वे इसमें कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे। वे लगातार प्रयोग कर उसे प्रामाणिक करते गए।
-जब उन्होंने अपने सिद्धांत के जरिये यह बताया कि इंसान ईश्वर की संतान नहीं, बल्कि उनकी उत्पत्ति वानरों से हुई है, तो इस बात पर पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई।
5वे अपने सिद्धांतों की विश्वसनीयता परखने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों, जैसे-कैम्ब्रिज के प्रोफेसर से लेकर पशुपालकों तक से अपने विचारों का आदान-प्रदान किया करते थे।
(जागरण फीचर)
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