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    मीनू महतो की मेहनत ने बदल दी गांव की तस्वीर

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Thu, 04 May 2017 11:49 AM (IST)

    मीनू की लगातार मेहनत से 200 एकड़ से अधिक बंजर जमीन लहलहा रही है। उनकी मेहनत को पहचान मिली।

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    मीनू महतो की मेहनत ने बदल दी गांव की तस्वीर

    हजारीबाग, विकास कुमार। आदमी अगर ठान ले, सच्ची लगन व निष्ठा के साथ लग जाए तो कोई काम असंभव नहीं है। केरेडारी प्रखंड के लोचर गांव के मीनू महतो ने यह साबित कर दिया है। पथरीली बंजर जमीन थी, पानी का संकट था। लेकिन मीनू की लगातार मेहनत से 200 एकड़ से अधिक बंजर जमीन लहलहा रही है। उनकी मेहनत को पहचान मिली। काम को लेकर वे मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों सम्मानित हो चुके हैं। सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड भी हासिल किया है। प्रेरणा का नतीजा है कि दो सौ ग्रामीण खेती के काम में जुड़े हैं। 

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    केरेडारी का लोचर गांव ऊंचाई पर स्थित है। पानी की घोर किल्लत थी। बारिश का पानी भी नहीं ठहरता था। विकट स्थिति में शायद ही कोई उन्नत कृषि की कल्पना करे। लेकिन, लोचर गांव के मीनू महतो ने इस बंजर भूमि में हरियाली लौटाने का काम कर दिखाया। चार दशक से अधिक पहले की बात है। मीनू ने 1973 में रेडियो पर कृषि संबंधित प्रसारण सुना। इसके बाद उन्होंने पथरीली और बंजर जमीन पर खेती करने की ठानी। बंजर जमीन पर सिंचाई की व्यवस्था के लिए पास से गुजर रही बरसाती नदी को जरिया बनाया। पहली बार यहीं पवन चक्की का इस्तेमाल कर पानी का संचय करना प्रारंभ किया। कई छोटे-छोटे डोभानुमा गड्ढे बनाए गए, जिसमें पानी को जमा किया गया। फिर बंजर जमीन पर सीता धान लगाया गया। इसके बाद गड्ढों में जमा पानी का इस्तेमाल कर उससे फसल की सिंचाई की गई। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह ली गई। परिणाम हुआ कि गांव की 225 एकड़ बंजर जमीन पर खरीफ फसल, 125 एकड़ जमीन पर रबी व 30 एकड़ जमीन पर गरमा फसल लहलहाने लगी। यहीं से गांव के लोग भी कृषि से जुडऩे लगे और फिर सिंचाई की इसी तकनीक का इस्तेमाल कर लोचर गांव में कृषि कार्य कर रहे हैं। दो सौ से अधिक ग्रामीण इससे जुड़े हैं। आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

    रांची ग्रामीण बैंक कर चुका है सम्मानित 

    कृषि क्षेत्र में मीनू महतो को उनके योगदान के लिए कई बार सम्मानित भी किया गया है। वर्ष 1995 में रांची ग्रामीण बैंक ने मीनू महतो को सम्मानित किया। दो बार वे राज्यपाल के हाथों सम्मानित हुए। 15 नवंबर 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने उन्हें बिरसा कृषक पदम व पांच लाख रुपये का चेक देकर सम्मानित किया। वर्ष 2013 में गुजरात के अंतरराष्ट्रीय कृषक मेला में 50 हजार का चेक उन्हें प्राप्त हुआ।

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