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करवाने ही होंगे नगर निगम शिमला के चुनाव

कोर्ट ने आयोग को यह सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए कि 19 जून से नया नगर निगम सदन कार्य करना प्रारंभ करे।

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 09:13 AM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 09:13 AM (IST)
करवाने ही होंगे नगर निगम शिमला के चुनाव
करवाने ही होंगे नगर निगम शिमला के चुनाव

शिमला, जागरण संवाददाता। प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने नगर निगम शिमला के चुनाव की घोषणा कर दी है। 16 जून को मतदान होगा और मतगणना 17 जून को होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने सोमवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। इस घोषणा के साथ ही नगर निगम शिमला क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है।

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इससे पहले सोमवार सुबह हाईकोर्ट ने राजू ठाकुर की याचिका का निपटारा करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग को 24 घंटों के भीतर नगर शिमला के  चुनाव संबंधी प्रक्रिया आरंभ करने व 18 जून तक नगर निगम शिमला के  चुनाव करवाने के आदेश दिए। कोर्ट ने आयोग को यह सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए कि 19 जून से नया नगर निगम सदन कार्य करना प्रारंभ करे।

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने सोमवार को सुनाए फैसले में स्पष्ट किया कि किसी भी हालत में चार जून के पश्चात मौजूदा सदन व पार्षदों का कार्यकाल न बढ़ाया जाए। पांच मई को जारी निर्वाचन सूची को अंतिम सूची माने और कानून के अनुरूप नामांकन की तिथि से 10 दिन पहले यदि कोई मतदाता अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करवाना चाहे तो उनका नाम अनुपूरक मतदाता सूची में दर्ज करे।

राजू ठाकुर ने नगर निगम शिमला के चुनाव से जुड़ी मतदाता सूची में संशोधन के लिए राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नौ मई को जारी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। राजू ठाकुर के अनुसार

राज्य चुनाव आयोग ने नगर निगम शिमला के चुनाव टालने के इरादे से यह अधिसूचना जारी की थी। प्रार्थी राजू ठाकुर ने राज्य निर्वाचन आयोग

के स्पेशल रीविजन ऑफ इलेक्ट्रोल रोल्स के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। प्रार्थी ने निर्वाचन आयोग के इस आदेश को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया। याचिकाकर्ता ने कहा कि संविधान की धारा 243 यू में स्थानीय

निकायों के चुनाव के एक भी दिन टालने या आगे खिसकाने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग का फैसला तर्कसंगत नहीं है।

कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात पाया कि निर्वाचन आयोग के नौ मई के आदेश को गलत नहीं ठहराया जा सकता। मतदाता सूचियों में खामियों को दुरुस्त करने के लिए आयोग ने यह आदेश जारी किए, ताकि स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव करवाये जा सके। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह अदालत चुनाव आयोग के विवेकपूर्ण निर्णय में दखल नहीं दे सकती। 

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