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    खुद को खतरे में डाल बचाई दूसरों की जान

    By Edited By:
    Updated: Fri, 21 Oct 2016 09:55 PM (IST)

    अजय बन्याल, शिमला मौत से तो आम आदमी डरता ही है, लेकिन जहां इंसानियत, जज्बा और हौसला एक साथ हो तो ...और पढ़ें

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    अजय बन्याल, शिमला

    मौत से तो आम आदमी डरता ही है, लेकिन जहां इंसानियत, जज्बा और हौसला एक साथ हो तो मौत को भी मात दी जा सकती है। कैंसर अस्पताल की अल्माइटी ब्लेसिंग संस्था में मौजूद सिलेंडर में आग लगने के बाद कोई भी आग को बुझाने की हिम्मत नहीं कर रहा था।

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    इसी बीच कैंसर अस्पताल के सुरक्षा कर्मी दिनेश ने हिम्मत जुटाई। कुछ लोगों ने उसे रोकने का प्रयास किया, लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी। आसपास मौजूद कंबल उठाकर सिलेंडर पर फेंकना शुरू कर दिए, लेकिन इससे आग नहीं बुझी। आग कंबलों को भी लग गई। इस पर दिनेश ने कंबलों को हटा दिया। इसी बीच डाटा ऑपरेटर पवन कुमार भी सिलेंडर के नजदीक पहुंच गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर सिलेंडर को कैसे कैंटीन के बाहर से हटाया जाए। पवन ने पास पड़ा झाड़ू उठाया और सिलेंडर के नजदीक जा पहुंचा। इन दोनों को इस बात का जरा भी डर नहीं था कि सिलेंडर फट भी सकता था, लेकिन पवन को यह पता था कि कोबाल्ट यूनिट के जलने से पूरे शिमला को खतरा हो सकता है। इसी वजह से उसने सिलेंडर को दूर ले जाने में और तीव्रता दिखाई। पवन ने झाड़ू को सिलेंडर में फंसाया और जलते सिलेंडर को घसीटते ले गया। उसके इस हौसले को देखकर हर कोई दंग था। सब ये दुआ कर रहे थे कि पवन को कुछ न हो। हालांकि सिलेंडर से निकलने वाली गैस श्वास के माध्यम से अंदर चली गई, लेकिन चिकित्सकों ने तुरंत प्राथमिक उपचार देकर पवन का इलाज कर दिया।

    सुरक्षा कर्मी दिनेश

    दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान सुरक्षा कर्मी दिनेश ने बताया कि करीब साढ़े आठ बजे की घटना है। सिलेंडर में आग लगने की सूचना मिली और मैं कैंटीन की ओर भागा। मैंने उस पर कंबल डाले, लेकिन आग काफी तेज हो रही थी। इसी बीच पवन आया और उसने सिलेंडर को घसीटा। लोगों की जान बचाना धर्म है हमारा। सुरक्षा कर्मी होने के नाते अस्पताल की सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है। भगवान ने बड़ा हादसा होने से बचा लिया। यहां हर कोई उस समय सहमा हुआ था। मुझे आग बुझाते समय जरा भी डर नहीं लग रहा था।

    पवन कुमार

    पौने बारह बजे पवन को मां का फोन आया। उस दौरान मम्मी को पवन बता रहा था कि अस्पताल की कैंटीन में आग लग गई थी। मां ने ये बात सुनते ही बैचेनी में फटाफट बेटे से सवाल करना शुरू कर दिए कि तुम्हें तो कुछ नहीं हुआ। आग कैसे लगी। तू तो ठीक है। मां का सवालों का जवाब बेटे ने दिया आपकी कसम मम्मी मुझे कुछ नहीं हुआ है। सिलेंडर में आग लगी थी, जिसें मैंने घसीटते हुए खुले में पहुंचाया। अगर किसी का फोन आए और मेरे बारे में पूछे तो बताना कि कुछ नहीं हुआ है। मा ने तुंरत घर आने को कहा। इसी बीच दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए पवन ने बताया में हर रोज नौ बजे अस्पताल आता था। आज मुझे लिफ्ट मिल गई थी और मैं सवा आठ बजे ही पहुंच गया। करीब साढ़े आठ बजे आग लगने का शोर बाहर सुनाई दिया। मैंने देखा तो सिलेंडर जल रहा था। मैंने तुरंत सिलेंडर को वहां से दूर ले जाने की सोची, क्योंकि मुझे पता था कि अस्पताल के भीतर कोबाल्ट था। मैंने झाड़ू का इस्तेमाल किया और सिलेंडर खुले में पहुंचा दिया। अगर सिलेंडर को वहीं छोड़ देते तो न तो हम बचते और न ही आसपास के लोग। रेडियो तरंगों को भयानक प्रभाव होना था। भगवान ने मुझे हौसला दिया, तभी इस काम को कर पाया।