वर्ल्ड हेल्थ डे: बात करें डिप्रेशन के बारे में
क्या आपको पता है कि अवसाद (डिप्रेशन) आत्महत्या के प्रमुख कारणों में एक है। आखिर इस मनोरोग पर कैसे लगाएं लगाम? इस संदर्भ में विवेक शुक्ला ने की कई विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात ...
डिप्रेशन की समस्या देश समेत दुनियाभर में गंभीर रूप अख्तियार कर चुकी है। आम आदमी से लेकर खास आदमी और हर आयुवर्ग व आर्थिक वर्ग से संबंधित व्यक्ति डिप्रेशन की जद में आ चुके हैं और आ रहे हैं। तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बार स्वास्थ्य दिवस की थीम-डिप्रेशन पर केंद्रित की है।
क्या करें
डिप्रेशन को समझने के लिए हमें इस रोग के बुनियादी स्वरूप को समझना जरूरी है। जैसे कुछ समय के लिए होने वाली तनावपूर्ण स्थिति को हम डिप्रेशन नहीं कह सकते। विशेष विपरीत परिस्थितियों में सभी लोगों को दुख या तनाव महसूस होता है, लेकिन डिप्रेशन ऐसा मनोरोग है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति लगातार काफी समय तक अत्यधिक उदासी और नकारात्मक विचारों से घिरा रहता है। यहीं नहीं, वह शारीरिक रूप से भी शिथिल महसूस करता है। यदि आपके किसी जानने वाले को सहायता की आवश्यकता हो, तो क्या करना चाहिए? इस बारे में मरीज को यह आश्वस्त करना चाहिए कि डिप्रेशन एक ठीक होने वाली बीमारी है। यदि कोई व्यक्ति दो सप्ताह से अधिक वक्त तक दुख, चिड़चिड़ापन, निजी और सामाजिक मामलों में दिलचस्पी नहींले रहा रहा है, तो उसे मदद की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में आप सहायता का हाथ बढ़ा सकते हैं। ध्यान रहे कि यह सहायता निर्देशात्मक न हो। डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति के आसपास रहें, उनकी बात सुनें और उनके अनुभवों के लिए उनकी आलोचना न करें। किसी मनोरोग विशेषज्ञ से मदद लेने में उनकी सहायता करें। भारत में 90 प्रतिशत मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग से उपचार की सुविधा की पहुंच से बाहर हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश में मानसिक बीमारी को एक कलंक की तरह देखा जाता है। ‘मैं पागल नहीं हूं,’ तो फिर मैं मनोरोग विशेषज्ञ के पास क्यों जाऊं? रोगी की इस सोच को बदलने की जरूरत है। भारत में हर तीन मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। इससे भी ज्यादा अफसोस इस बात का है कि डिप्रेशन की बीमारी का इलाज होते हुए भी ऐसा होता हैं। यदि आप डिप्रेशन के साथ जी रहे हैं तो याद रखिए की इसमें आपकी कोई गलती नही है। मदद लेना बहादुरी का काम है। आप डिप्रेशन के खिलाफ जंग जीत सकते हैं।
डॉ. अचल भगत, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, नई दिल्ली
कारणों पर नजर
डिप्रेशन के कई कारण हैं। विपरीत स्थितियों के साथ तालमेल स्थापित करने में लगातार कई दिनों तक विफल रहना तो एक कारण है, लेकिन नवीनतम शोध-अध्ययनों के अनुसार इस रोग का एक अन्य प्रमुख कारण सेरोटोनिन नामक न्यूरो-केमिकल की कमी से संबंधित है। यह न्यूरोकेमिकल मस्तिष्क में पाया जाता है, जो भावनाओं को जाग्रत करता है। इस केमिकल की कमी से डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति नकारात्मक सोच महसूस करते हैं। ऐसे व्यक्ति हर बात में नकारात्मक पहलू ही देखते हैं।
नकारात्मकता की प्रवृत्ति तीन तरह की होती है।
1. असहायता। मैं हालात से सामना करने में असहाय हूं।
2. मैं किसी काम का नहीं हूं और मैं सब पर बोझ बन चुका हूं।
3. आशाहीनता। जैसे अब कुछ नहीं हो सकता। भविष्य नहीं बन सकता, चाहे कुछ भी प्रयास किया जाए। इसके अलावा अन्य कारणों में आनुवांशिक कारण से भी व्यक्ति में सेरोटोनिन की कमी हो सकती है। इसी तरह महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान प्रोजेस्ट्रॉन नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, लेकिन गर्भावस्था के बाद प्रोजेस्ट्रान नामक हार्मोन कम होने लगता है। इस स्थिति में 100 में से 20 महिलाएं अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान इस स्थिति को ‘मदर ब्लूज’ कहते हैं।
डॉ. उन्नति कुमार, मनोरोग विशेषज्ञ
डिप्रेशन का दिल पर असर
दिल और दिमाग में एक करीबी रिश्ता होता है। यही कारण है कि दिमाग की परेशानी का सबसे ज्यादा असर हमारे दिल पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के शरीर में एक सिंपथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है, जिससे शरीर में नॉरपिनेफ्राइन नामक हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जो शरीर का सामान्य ब्लड प्रेशर बढ़ाने में सबसे ज्यादा जिम्मेदार होता है।
हृदय रोगों का जोखिम
ब्लड प्रेशर बढ़ने पर दिल तेजी से धड़कने लगता है। इस कारण खून का प्रवाह भी तेज हो जाता है और हृदय की धमनियां (आर्टरीज) सिकुड़ने लगती हैं। इसके परिणामस्वरूप पसीना आता है या चक्कर आने लगते हैं। परेशानी बढ़ने पर या लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने वाले लोगों में हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है। डिप्रेशन से हार्ट बीट अनियमित हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि डिप्रेशन के दौरान प्लेटलेट्स की आपस में जुड़ने की संभावना बढ़ जाती है। इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्लड क्लॉटस प्लेटलेट्स के जुड़ने से बनते हैं। इससे हार्ट अटैक होने का जोखिम बढ़ जाता है। जिन लोगों को हार्ट की परेशानी नहीं होती और वे डिप्रेशन का शिकार हों, तो उन्हें हार्ट की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यहां तक कि हार्ट अटैक के बाद अगर डिप्रेशन लंबे समय
तक रहे, तो मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
बाईपास वालों पर प्रभाव
बाईपास सर्जरी करवा चुके लोगों में डिप्रेशन के चलते बहुत ज्यादा थकावट महसूस होने लगती है। कुछ अध्ययनों के अनुसार जिन लोगों का हार्ट कमजोर होता है, उन्हें डिप्रेशन ज्यादा होता है, जिसके लिए उन्हें ज्यादातर अस्पताल में दाखिल होना पड़ सकता है। जिन मरीजों को हार्ट अटैक हुआ हो और अगर वे उसके बाद डिप्रेशन में चले जाएं, तो भविष्य के बारे में निश्चितता की भावना कम हो जाती है और एक डर मन में बैठ जाता है कि अब क्या होगा ? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय दुनिया भर में 35 करोड़ लोग डिप्रेशन (अवसाद) से प्रभावित हैं। जर्मनी की म्यूनिख यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्ल हैंज लेडविग के अनुसार, हमारी रिसर्च से यह बात सामने आयी है कि डिप्रेशन के चलते हृदय रोग होने का खतरा उतना ही अधिक हो सकता है, जितना कोलेस्ट्रॉल स्तर के बढ़ने और मोटापे से होता है।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल, सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट
चेयरमैन-मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट, नोएडा
तीन प्रकार के लक्षण
डिप्रेशन के लक्षणों को तीन भागों में विभाजित करते हैं ...
1. जैविक (बॉयोलॉजिकल): जैसे नींद का न आना या अत्यधिक आना, भूख न लगना, शरीर में थकान या व दर्द महसूस होना। इसके अलावा कामेच्छा में कमी महसूस करना और बात-बात पर गुस्सा आना।
2. कॉग्निटिव सिम्पटम: विचारों में नकारात्मक सोच की बदली छा जाना, स्वयं को हालात के सामने असमर्थ महसूस करना।
3. समाज से अलग-थलग: व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से कतराता है। इसी तरह वह अपने व्यवसाय से संबंधित जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करता है।
युवा वर्ग भी चपेट में
इन दिनों उम्रदराज और वयस्क व्यक्तियों के अलावा युवा वर्ग भी डिप्रेशन की गिरफ्त में तेजी से आ रहा है। इसका कारण यह है कि युवकों को अपने कॅरियर में स्थापित होने के लिए कड़ी प्रतिस्पद्र्धा का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा वह कम वक्त में कामयाबियों की सीढ़ियां तेजी से चढ़ना चाहते हैं। उनमें धैर्य नहीं होता और जब वे अपने जीवन व कॅरियर से संबंधित पहले से ही तयशुदा लक्ष्यों (टार्गेट्स) को पूरा नहीं कर पाते, तब उनके दिलोदिमाग में हताशा व कुंठा घर कर जाती है। यही कारण है। युवावर्ग में डिप्रेशन की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। सकारात्मक सोच, अपनी कार्यक्षमता और स्थिति के अनुसार व्यावहारिक लक्ष्यों को निर्धारित करने से इस समस्या का समाधान संभव है।
समस्या का समाधान
अगर समस्या है, तो उसका समाधान भी है। याद रखें, डिप्रेशन लाइलाज रोग नहींहै। इसलिए इससे घबराने की जरूरत नहीं है। डिप्रेशन से ग्रस्त अनेक व्यक्तियों को डिप्रेशनरोधक दवाओं (एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन्स) से लाभ मिल जाता है। डिप्रेशन के इलाज में साइको-एजूकेशन का अपना विशेष महत्व है। इसके अंतर्गत रोगी और उसके परिजनों को रोग के कारणों व उसके इलाज के बारे में समझाया जाता है। इसके बाद सपोर्टिव ट्रीटमेंट यानी रोगी के परिजनों के सहयोग की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस रोग के इलाज में कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी सर्वाधिक कारगर साबित होती है। इस थेरेपी की मान्यता है कि हमारे विचार, भावनाएं और व्यवहार आपस में संबंधित हैं। इस थेरेपी के अंतर्गत विभिन्न मनोचिकित्सकीय विधियों के जरिये और काउंसलिंग के माध्यम से रोगी के दिमाग को सकारात्मक विचारों की ओर मोड़ा जाता है। ये सकारात्मक विचार ही कालांतर में मरीज को स्वस्थ बना देते हैं।
डॉ. गौरव गुप्ता, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, नई दिल्ली
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