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वीमेन्स डे पर इन्हें सलाम जिन्होंने डिसेबल्ड होने के बावजूद किया देश का नाम

इस वीमेन्स डे हम याद कर रहे हैं उन महिलाओं को जो शारीरिक रुप से विकलांग होने के बावजूद भी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 02:43 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 02:11 PM (IST)
वीमेन्स डे पर इन्हें सलाम जिन्होंने डिसेबल्ड होने के बावजूद किया देश का नाम
वीमेन्स डे पर इन्हें सलाम जिन्होंने डिसेबल्ड होने के बावजूद किया देश का नाम

विकलांगता महज दिमाग की एक उपज है, ये इन महिलाओं ने साबित कर दिखाया है। अपनी स्ट्रांग विल पावर से  इन्होंने ये साबित कर दिया है कि विकलांगता उनके राह में कभी रोड़ा नहीं बन सकीं। उन्होंने इसे कभी अपनी लाइफ में हावी नहीं होने दिया। आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं इंडिया की पांच ऐसी ही सक्सेसफुल वीमेन्स से जो शारीरिक रुप से विकलांग हैं लेकिन अपनी लाइफ में पूरी तरह से सफल हैं औऱ देश दुनिया में नाम कमा रही हैं। न ही सिर्फ स्पोर्ट्स में बल्कि एंटरटेनमेंट सेक्टर में भी सफल रुप में सक्रिय हैं। उन्होंने खुद को इतना हिम्मती बनाया कि वे किसी भी चीज से पीछे नहीं हटीं और सारे चैलेंजे को हंसकर स्वीकार कर आगे बढ़ती चली गईं। शारीरिक रुप से विकलांग होने के बावजूद ये आज लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं।आज वीमेन्स डे के अवसर पर हम इन पर प्राउड फील करते हैं, और उन्हें सल्यूट करते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में कौन हैं वे-

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सुधा चंद्रन
फेमस इंडियन एक्ट्रेस और क्लासिकल डांसर जो आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। केरल में जन्मी 50 वर्षीय ये एक्ट्रेस जब 16 बरस की थीं तभी उनका एक्सीडेंट हो गया था और उनका एक पैर डैमेज हो गया। ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर की लापरवाही के कारण उनका ये पैर और भी डैमेज हो गया और संक्रमित हो गया। उनका एक पैर पूरी तरह से खराब हो चुका था। उन्होंने अपनी विकलांगता को जयपुरी फुट की मदद से सही किया और इसेक बाद भी वे इंडिया की सबसे ज्यादा लोकप्रिय क्लासिकल डांसर बन गईं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी परफॉर्मेंस देकर वे विश्व भर में लोकप्रिय हो गईं। इन सबसे अलावा वे इंडियन टेलीविजन का भी एक जाना पहचाना नाम हैं। उन्होंने काफी सारे अवॉर्ड अपने नाम किये हैं। हमें उन पर गर्व है।

प्रीति श्रीनिवासन


तमिलनाडु अंडर 19 क्रिकेट टीम की कैप्टन प्रीति श्रीनिवासन भी शारीरिक रुप से विकलांग हैं। स्विमिंग के दौरान उनके गर्दन से नीचे का हिस्सा पैरालाइज्ड हो गया। लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी यात्रा यहीं समाप्त नहीं की। वे इसके बाद अपनी संस्था सोलफ्री के द्वारा दूसरों को प्रेरित करने का काम शुरु कर दिया। वे खास तौर पर विकलांग लड़कियों के लिए एक प्रेरणा और एक उम्मीद के तौर पर उभर कर निकलीं। वे अपने जैसी लड़कियों को उम्मीद की किरण दिखाकर उनके लाइफ को और आसान बनाया। उन्हें उनके लाइफ की जरुरत की सुविधायें उपलब्ध कराने में उनकी मदद कर रही हैं।

अरुणिमा सिन्हा


चलती ट्रेन से लुटेरों के द्वारा बाहर फेंक दिये जाने के कारण उन्होंने अपना एक पैर खो दिया। दो साल बाद वे विकलांग होकर भी माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली पहली महिला बनीं। वे हमेशा से ही खुद को बेचारी कहलाना पसंद नहीं करती थीं। जब लोग उन्हें दया की नजर से उन्हें देखते थे और उन्हें विकलांग कहते थे तो उन्हें ये बिल्कुल पसंद नहीं आता था। लेकिन उन्होंने ये साबित कर दिया कि जब दृढ़ इच्छा शक्ति हो और कुछ करने की क्षमता एक स्ट्रॉंग बॉडी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। कृत्रिम पैरों के बावजूद उन्होंने सभी चुनौतियों का सामना किया और सफलता का एक इतिहास रचा।

साधना धाड़


हड्डियों की भयंकर बीमारी से जूझ रही 57 वर्षीय धाड़ ने 12 साल के उम्र में ही सुनने की क्षमता खो दी थीं। लेकिन इसके बावजूद आज वे पेंटिंग के क्षेत्र में काफी फेमस हैं। इसके लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा वे स्टेट लेवल और नेशनल लेवल पर पेंटिंग और फोटोग्राफी के लिए काफी सारे अवॉर्ड जीत चुकी हैं। अब वे स्टुडेंट्स के अपने घर पर ही फोटोग्राफी और पेंटिंग की क्लास देती हैं। इन सबसे अलावा वे एक सोशल वर्कर भी हैं जो अलग अलग संस्था के साथ मिलकर विकलांग बच्चों के वेलफेयर के लिए काम करती हैं।

मलाथी कृष्णामूर्ति होला


इंटरनेशनल लेवल की पैरा एथलीट जो छोटी उम्र में ही पूरी तरह से पैरालाईज्ड हो गई थीं। दो सालों तक लगातार इलेक्ट्रिक शॉक से फिर उनके शरीर के उपरी हिस्से में थोड़ी जान आईं। लेकिन उनके शरीर का निचला हिस्सा वैसा ही रहा। लेकिन ऐसे में भी उन्होंने खेलों में हिस्सा लेना नहीं छोड़ा और आज वे पैरा ओलंपिक में हिस्सा भी लेकर 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड जीत चुकी हैं। वे अब तक लगभग 300 मेडल जीत चुकी हैं। इन सबसे अलावा उन्हे अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। वे रुरल एरिया से आने वाले विकलांग बच्चों की मदद के लिए मथरु फाउंडेशन के लिए आज भी दौड़ती हैं।

दीपा मलिक


दीपा मलिक भारत की पहली ऐसी डिसेबल्ड महिला हैं जो ओलंपिक में मेडल जीत कर आई हैं। 2016 में हुए रियो पैराओलंपिक में शॉट पुट गेम में दीपा ने सिल्वर मेडल जीत कर देश का नाम बढ़ाया। इसके पहले भी उन्हें 2012 में 42 वर्ष की उम्र में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा भी आज वे भारत सरकार द्वारा चलाए जाने वाले 12वें पंचवर्षीय योजना की टीम की सदस्य भी हैं। इसमें वे स्पोर्ट्स और फिजिकल एजुकेशन का सेक्टर देखती हैं। उन्हें खेल मंत्रालय की तरफ से योजना आयोग द्वारा इसके लिए चुना गया।

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