हरियाणा सरकार चुकाएगी बिजली कंपनियों का 25 हजार करोड़ का कर्ज
हरियाणा सरकार ने बिजली के दामों में बढ़ोतरी की ठीकरा पिछली हुड्डा सरकार और उसके कार्यकाल में बने हरियाणा विद्युत नियामक आयोग पर फोड़ा है। सरकार राज्य के बिजली निगमों के करीब 25 हजार करोड़ रुपये का कर्ज अपने खाते में ट्रांसफर करेगी, जिससे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा सरकार ने बिजली के दामों में बढ़ोतरी की ठीकरा पिछली हुड्डा सरकार और उसके कार्यकाल में बने हरियाणा विद्युत नियामक आयोग पर फोड़ा है। सरकार राज्य के बिजली निगमों के करीब 25 हजार करोड़ रुपये का कर्ज अपने खाते में ट्रांसफर करेगी, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और दाम सस्ते होने का रास्ता खुलेगा।
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प्रदेश सरकार ने सफाई दी है कि बिजली की दरें एवं फ्यूल सरचार्ज सरकार द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता। हरियाणा विद्युत नियामक आयोग (एचईआरसी) द्वारा यह दरें तय होती हैं, जो वैधानिक संस्था है। स्वतंत्र उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा एचईआरसी के सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
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मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मीडिया सलाहकार अमित आर्य ने सरकार की ओर से कहा कि सरकार या बिजली निगमों का कोई प्रतिनिधि एचईआरसी में नहीं है। आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्तियां पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में की गई थी। भाजपा सरकार ने मार्च, 2015 में बिजली विभाग के घाटे पर श्वेत पत्र जारी किया था, जिसमें बिजली कंपनियों के सही आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे।
श्वेत पत्र के अनुसार पिछले 10 साल में बिजली उत्पादन निगम के घाटे में 500 प्रतिशत और कर्ज में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उत्तर तथा दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण निगम के घाटे में 2600 प्रतिशत और इनके कर्ज भार में 1900 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
बिजली निगमों का 2004-05 में 1,030 करोड़ रुपये घाटा था, जो वर्ष2013-14 में बढ़कर 26,912 करोड़ रुपये हो गया। घाटे में यह बढ़ोतरी 2600 प्रतिशत है। अमित आर्य के अनुसार इन निगमों का कर्जभार 31 मार्च, 2004 को 1,458 करोड़ रुपये था, जो 31 मार्च, 2014 को बढ़कर 28,199 करोड़ रुपये हो गया। कर्जभार में यह वृद्धि 1900 प्रतिशत है।
उनके अनुसार, यह सारा ऋण बोझ पिछली सरकार के कार्यकाल का है, जिसकी बदौलत उपभोक्ताओं पर एक रुपया 20 पैसे प्रति यूनिट केवल उपरोक्त ऋण के ब्याज के रूप में ही चुकाना पड़ रहा है। पिछली सरकार ने बिजली कंपनियों के 7366 करोड़ रुपये का कर्जा अपने ऊपर लेने का फैसला किया था। इसे कैबिनेट से भी 29 मार्च, 2013 को स्वीकृति दिलाई गई थी, किंतु पिछली सरकार द्वारा उस पैसे की कभी भरपाई नहीं की गई।
अब भाजपा सरकार ने यह फैसला लिया कि बिजली कंपनियों का बकाया ऋण भार स्वयं वहन करेगी। इसके लिए केंद्र सरकार से सैद्धांतिक स्वीकृति ली गई। बिजली कंपनियों के मध्यावधि एवं दीर्घावधि कर्जे के 25,000 करोड़ रुपये सरकार अपने खाते में ले लेगी। इससे बिजली कंपनियों का ऋण भार कम हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ता को जाएगा, जिससे बिजली की दरों में कमी आ जाएगी।
सरकार की दलीलें
- मई 2015 में बिजली दरों में 8.51 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछली सरकार द्वारा वर्ष 2015-16 में बिजली दरों में 15 प्रतिशत की वृद्धि का फैसला किया गया था। इसकी सैद्धांतिक स्वीकृति भी तत्कालीन सरकार द्वारा 29 मार्च, 2013 को मंत्रिमंडल की बैठक में ले ली गई थी। वर्तमान में इसके बावजूद केवल 8.51 प्रतिशत की वृद्धि ही की गई।
- विपक्ष का यह आरोप गलत है कि इस साल पहली बार फ्यूल सरचार्ज लगाया गया, जबकि वर्ष 2012-13 में 58 पैसे प्रति यूनिट तथा 2013-14 में 34 पैसे प्रति यूनिट फ्यूल सरचार्ज लगाया गया था, जबकि अब आयोग ने 37 पैसे प्रति यूनिट फ्यूल सरचार्ज लगाया है।
...ताकि भविष्य में नहीं आए कोई परेशानी
- वर्ष 2009 में आर-एपीडीआरपी के तहत कंप्यूटराइजेशन प्रणाली को अपनाया जाना था, जिसके तहत सभी उपभोक्ताओं के सही रीडिंग एवं बिलिंग व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाना था। केंद्र सरकार द्वारा 221 करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाना था, लेकिन पिछली सरकार द्वारा पूरे कार्यकाल में इसे लागू नहीं किया गया। यह व्यवस्था समय पर लागू हो जाती तो बिजली के बिलों की ढेर सारी परेशानियां समाप्त हो जाती।
- उपभोक्ताओं को दो या तीन किस्तों में अपने बिजली के बिल अदा करने की सुविधा दी गई है। लघु उद्योगों में जहां केवीएएच मीटर नहीं लगे हैं वहां पर बिलिंग 0.9 पावर फैक्टर के आधार पर की गई है। लघु उद्योगों को पॉवर फैक्टर को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए समुचित कैपेस्टर लगाने में सहायता की जा रही है।
- बिजली के बिल जारी करने से पहले बिलिंग एजेंसी द्वारा जारी रिपोर्ट की संबंधित एसडीओ द्वारा जांच करने की हिदायतें जारी की गई हैं ताकि बिलों में किसी भी तरह की अनियमितता न रहे।