Move to Jagran APP

इक्विटी में निवेश के अनुशासन का पालन जरूरी

हम पिछले कुछ वर्षो में पैदा हुई नकारात्मकता व कुंठा को पीछे छोड़ने को तैयार हो रहे हैं और बेहतर भविष्य की तरफ उम्मीद बांधे देख रहे हैं। आम चुनाव के जो नतीजे आए हैं, वे जनता की आर्थिक विकास व प्रगति की उम्मीदों को परिलक्षित करते हैं। विकास की समाजवादी नेहरू सोच के चलते ऐतिहासिक

By Edited By: Published: Sun, 15 Jun 2014 07:15 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jun 2014 03:10 PM (IST)

हम पिछले कुछ वर्षो में पैदा हुई नकारात्मकता व कुंठा को पीछे छोड़ने को तैयार हो रहे हैं और बेहतर भविष्य की तरफ उम्मीद बांधे देख रहे हैं। आम चुनाव के जो नतीजे आए हैं, वे जनता की आर्थिक विकास व प्रगति की उम्मीदों को परिलक्षित करते हैं।

loksabha election banner

विकास की समाजवादी नेहरू सोच के चलते ऐतिहासिक तौर पर भारत आर्थिक सुधार के मामले में हिचकता रहा। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था के जिन क्षेत्रों को नियंत्रण से मुक्त किया गया, उनमे तेज रफ्तार से विकास हुआ। इन क्षेत्रों में न केवल विश्व स्तरीय कंपनियों का निर्माण हुआ, बल्कि नौकरियां भी पैदा हुई। लेकिन पिछले दो वर्षो में सुधारों के अभाव व आर्थिक कुप्रबंधन के चलते विकास की कहानी पिछड़ती गई और विकास दर नौ से लुढ़क कर पांच फीसद पर आ गई। भारत में तेजी से बढ़ रही कामगारों की संख्या को देखते हुए विकास की तेज रफ्तार बेहद जरूरी है। युवा वर्ग की नाराजगी की एक बड़ी वजह भी यही रही कि सरकार रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में नाकाम रही। भारत में साल 2004-05 से लेकर 2009-10 के पांच साल में नए रोजगार के अवसर पैदा ही नहीं हो पाए। यह देखते हुए कि अगले बीस साल में हम हर रोज 30,000 लोगों को कामगारों की श्रेणी में शामिल करेंगे, यह स्थिति एकदम अस्वीकार्य है।

पहली बार कोई चुनाव विकास व प्रगति के मुद्दे पर लड़ा और जीता गया है। सही नीतियों से अगले तीन चार साल में देश की विकास दर को आठ फीसद के स्तर पर लाया जा सकता है। पिछले दो-तीन साल की चुनौतियों के बाद अब अर्थव्यवस्था के कारकों में बदलाव व स्थिरता के संकेत मिल रहे हैं। रिजर्व बैंक महंगाई को रोकने के लिए कटिबद्ध है। निर्यात में सुधार के साथ रुपये की विनिमय दर भी स्थिर है।

मंदी के दौर में कंपनियों के मुनाफे में भी तेजी से कमी आई थी। अर्थव्यवस्था में सुधार से कंपनियों के खाते भी सुधरेंगे व इक्विटी बाजार में तेजी के नए दौर की जगह बनेगी। बाजार में इन बदलावों के संकेत भी दिखने लगे हैं। बाजार इस साल अपने क्षेत्र में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब रहे हैं। विदेशी निवेशकों का प्रवाह बना हुआ है, और अब संकेत घरेलू निवेशकों के बाजार की तरफ लौटने के मिल रहे हैं। ये निवेशक पिछले पांच साल से बाजार से अपना पैसा निकाल रहे थे।

बाजार में प्रवेश का क्या यह उचित समय है?

बाजार में अचानक आई तेजी से स्वाभाविक तौर पर चिंताएं भी उभरती हैं कि शायद वे बाजार में प्रवेश से चूक गए हैं। लेकिन उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि शेयर बाजार की मौजूदा चाल उस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद आई है, जहां सूचकांक 2010 की ऊंचाई को भी पार नहीं कर पा रहा था। हमारा मानना है कि यह बुल मार्केट की शुरुआत है, और बाजार के मौजूदा स्तर भी निवेश के बेहतर अवसर साबित होंगे। कई कंपनियों के शेयरों ने तो बाजार की इस तेजी में अभी पूरी तरह हिस्सा ही नहीं लिया है। बीएसई 200 सूचकांक के 50 फीसद से ज्यादा शेयर अपने उच्चतम स्तर से बीस फीसद से भी ज्यादा नीचे चल रहे हैं।

बुल मार्केट की इस शुरुआत को ध्यान में रखते हुए किसी भी निवेशक को बेहद धीरज के साथ सिस्टेमैटिक आधार पर निवेश करना चाहिए। इसके लिए निवेश के अनुशासन का पालन जरूरी है। मौकों का लाभ उठाएं। हमने देखा है कि निवेश का दायरा बढ़ा कर ही शेयर बाजार के जोखिम को कम किया जा सकता है। इसलिए दीर्घकाल के लिए निवेश करें और रोजाना होने वाली गतिविधियों पर नजर रखें।

पंकज मुरारका

हेड ऑफ इक्विटी

एक्सिस म्यूचुअल फंड

पढ़ें: सकारात्मक सोचें, इक्विटी में करें निवेश


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.