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फिल्म रिव्यू: एक्स - पास्ट इज प्रेजेंट (3 स्टार)

यह फिल्म रोचक प्रयोग से कुछ ज्यादा है। इसमें 11 फिल्ममेकर्स ने एक ही विषय में दिलचस्पी दिखाई है। उम्रदराज फिल्ममेकर रजत कपूर कमिटमेंट से भयभीत है। उन्हें रहस्यमयी तौर पर 'के' कहा जाता है। वो अपने आपको एक ऐसा आर्टिस्ट मानते हैं जो कहीं से भागा हुआ है। उसका

By Tilak RajEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2015 07:49 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2015 10:42 AM (IST)
फिल्म रिव्यू: एक्स - पास्ट इज प्रेजेंट (3 स्टार)

प्रमुख कलाकारः रजत कपूर, अंशुमन झा
निर्देशकः अभिनव शिव तिवारी, अनु मेनन और 9 अन्य
स्टारः 3

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यह फिल्म रोचक प्रयोग से कुछ ज्यादा है। इसमें 11 फिल्ममेकर्स ने एक ही विषय में दिलचस्पी दिखाई है। उम्रदराज फिल्ममेकर रजत कपूर कमिटमेंट से भयभीत है। उन्हें रहस्यमयी तौर पर 'के' कहा जाता है। वो अपने आपको एक ऐसा आर्टिस्ट मानते हैं जो कहीं से भागा हुआ है। उसका जीवन ही कुछ ऐसा है जिसमें कई परतें हैं।

कई कहानियां गुत्थमगुत्था है। अपने जीवन के बीच 'के' की मुलाकात एक यंग वुमन से होती है जिसका नाम है आस्था (अदिती चेंगप्पा)। यह मुलाकात एक बार में होती है। वो बहुत ही सादगी से 'के' को उसी के पुराने जीवन में ले जाती है जहां कई महिलाएं उसके जीवन में आई हैं। यहां कई बार दिल भी टूटा, निराशा भी हुई एक प्रक्रिया सी चलती रही जो दायरों को तोड़ती और असुरक्षा को बढाती नजर आईं। इस सेगमेंट का निर्देशन सुधीश कामत ने किया है।

फिल्म की खासियत यह है कि एक ही व्यक्तित्व के कई पहलू यहां देखने को मिलते हैं। यहां आपको कविता और नाटक दोनों का ही अनुभव करने को मिलेगा। इसका निर्देशन प्रतीम डी गुप्ता ने किया है। नौजवान 'के' के जीवन में कई प्रेम कहानियां हैं। वो कई तरह के अनुभव करता है। इस 'के' का किरदार अंशुमन झा ने निभाया है। वो एकाएक आकर्षित हो जाता है तमिल बोलने वाली लड़की 'बेल्ले' से। यह किरदार स्वरा भास्कर ने निभाया है।

इसके बाद उसकी एक और गर्लफ्रेंड सामने आती हैं जिसका किरदार हुमा कुरैशी ने निभाया है। वो भी अपनी दायरे को तोड़ती हुई आगे बढ़ती है। इस सेगमेंट का निर्देशन राजा सेन ने किया है। इसके बाद सामने आती हैं 'के' की एग्रेसिव पत्नी। वो अपने झूठे और मक्कार पति से पीछा छुड़ाना चाहती है। इस सेगमेंट का निर्देशन राजश्री ओझा ने किया है। इसके बाद 'के' एकाएक मैड की ओर आकर्षित हो जाता है। इस सेगमेंट का निर्देशित क्यू ने किया है।

फिल्म की नियमितता एकाएक खो सी जाती है। सिनेमेटोग्राफर्स और उनकी स्टाइल को धन्यवाद। वो आपकी आंखों को वो सूकून दिलवाते हैं जिससे आप यह देख पाने में कामयाब होते हैं। साथ ही यह एक बढ़िया प्रयास भी है जहां एक कहानी से दूसरी कहानी में लाने की बात की गई है। दुर्भाग्य से यहां भी एक बात है जो बार-बार परेशान करती हैं वो यह कि कैमरा अकारण ही घूम-फिरकर महिलाओं के शरीर पर ही अटका हुआ दिखता है।

कपूर ने अपना रोल अच्छा किया है। महिलाओं के लिए ज्यादा कहना मुश्किल है क्योंकि कुछ ही समय के लिए स्क्रीन पर नजर आई हैं। हुमा, राधिका और स्वरा ने अपने रोल संभाले हैं। एक नए अनुभव के लिए यह फिल्म अच्छी है।

शुभा शेट्टी साहा

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