फिल्म रिव्यू: जानिसार (1.5 स्टार)
मुजफ्फर अली की ‘गमन’, ’आगमन’ और ‘उमराव जान’ जैसी उल्लेखनीय फिल्मों के मुरीद के लिए ‘जानिसार’ गहरे अवसाद का सबब बनती है। मुजफ्फर अली अपनी अदा और खूबसूरती के साथ इस फिल्म में भी मौजूद हैं, लेकिन वह जादू उनसे छूट गया है जिसे सिनेमा कहते हैं। इस बार वे
अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार: इमरान अब्बास, पर्निया कुरैशी
निर्देशक: मुजफ्फर अली
स्टार: 1.5
मुजफ्फर अली की ‘गमन’, ’आगमन’ और ‘उमराव जान’ जैसी उल्लेखनीय फिल्मों के मुरीद के लिए ‘जानिसार’ गहरे अवसाद का सबब बनती है। मुजफ्फर अली अपनी अदा और खूबसूरती के साथ इस फिल्म में भी मौजूद हैं, लेकिन वह जादू उनसे छूट गया है जिसे सिनेमा कहते हैं। इस बार वे बुरी तरह से चूके हैं।
‘जानिसार’ 1877 की कहानी है। एक देशभक्त तवायफ और एक राजकुमार की इस प्रेमकहानी में तब का समय और समाज रख गया है। मुजफ्फर अली पीरियड गड़ने में माहिर हैं। वे इस फिल्म में भी सफल हैं। कमी है तो उनके मुख्य किरदारों के गठन में और उन्हें निभा रहे कलाकार इमरान अब्बास और पर्निया कुरैशी भी कमजोर हैं। वे मौजूद कहानी भी ढंग से अभिव्यक्त नहीं कर पाते। एक भूमिका स्वयं मुजफ्फर अली ने निभाई है। वे खुद भी प्रभाव नहीं छोड़ पाते। सहयोगी कलाकारों में अनेक शौकिया कलाकार हैं, जो फिल्म को और भी बेअसर करते हैं।
अगर हम फिल्म के बजाय इस फिल्म की तस्वीरें देखें और उनकी प्रदर्शनी में शामिल हों तो ज्यादा आनंदित हो सकते हैं। सब कुछ बहुत ही खूबसूरती से संजोया गया है। स्थिर और स्टिल में यह खूबसूरती बरकरार रहती।
चलते-फिरते ही उनकी कमियां नजर आने लगती हैं। दूसरे फिल्म की कथा भी इतनी दमदार नहीं है कि वह बांधे रख सके।
अफसोस कर सकते हैं और यह सवाल पूछ सकते हैं कि मुजफ्फर अली ने यह फिल्म क्यों बनाई? वे अवश्य कुछ कहना और दिखाना चाहते होंगे। दिखाने में वे सफल रहे, लेकिन कहने में वे असफल रहे।
अवधिः 125 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com