फिल्म रिव्यू : सुरखाब (2.5 स्टार)
अच्छे विषय पर बनी हुई फिल्म अंत में आते-आते भटक जाती है। इसी कारण कमजोर पड़ती दिखाई देती है।
कास्ट - बरखा मदान, निशांत बहल, सुमित सूरी
निर्देशक - संजय तेलरेजा
सुरखाब उन फिल्मों में शुमार है जिन्हें छोटा बजट होने के बावजूद आप अच्छी फिल्मों में शामिल कर सकते हैं। कारण कि सही मुद्दों को सही तरीके से डील किया गया है। बाद में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए इसे सुरक्षित सांचे में ढ़ालने की कोशिश की गई है। फिल्म बहुत ही गंभीरता के साथ शुरू होती है। कनाडा में अवैध रूप से रह रहे निवासियों के गायब होने और अप्रत्याक्षित तौर पर रहने की बात की जाती है। कहानी की शुरूआत अच्छी है। जीत (बरखा मदान) प्लान बनाती है कि वो अपने भाई परगट (निशांत बहल) से मिलने जाएगी। उससे वो सालों से नहीं मिली है। इस बीच उसके भतीजे कुलदीप (सुमित सुरी) का दूसरा प्लान होता है।
जीत किस तरह से कनाडा पहुंचती है इस बात से कहानी में दर्शक बंधा रहता है। इस दौरान दोनों की मां की मजबूरी को भी दिखाया गया है। इसके बाद परगट एकाएक किडनैप हो जाता है। फिर जीत पर जिम्मेदारी होती है कि किसी भी तरह से परगट को छुड़ाकर ले आए। यहां आकर कहानी कमजोर पड़ जाती है।
जीत कनाडा में अपनी परेशानियों का सामना किस तरह से करती हैं इसमें कुछ थ्रिल नजर आता है। मगर साथ ही निराशानजक भी है कारण कुछ बातें अविश्वसनीय सी लगती है। इस पूरे मसले में अवैधानिक तौर पर रहना और जाने का मसला कहीं खोकर रह जाता है।
बावजूद इसके स्टार कास्ट ने अपने स्तर पर अच्छा काम किया है। मगर फिल्म और भी अच्छी बन सकती थी।