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    फिल्म रिव्यू: ऑल इज वेल (2.5 स्टार)

    By Monika SharmaEdited By:
    Updated: Fri, 21 Aug 2015 03:32 PM (IST)

    समाज, देश-दुनिया व हर पीढ़ी हर दौर में एक क्राइसिस से गुजरती है। हमारी फिल्में उससे उपजे खालीपन को भरने वाली कहानियां पेश करती हैं। ऑल इज वेल' भी वह ...और पढ़ें

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    अमित कर्ण
    प्रमुख कलाकार: अभिषेक बच्चन, असिन, ऋषि कपूर, सुप्रिया पाठक
    निर्देशक: उमेश शुक्ला
    संगीत निर्देशकः हिमेश रेशमिया
    स्टार: 2.5

    समाज, देश-दुनिया व हर पीढ़ी हर दौर में एक क्राइसिस से गुजरती है। हमारी फिल्में उससे उपजे खालीपन को भरने वाली कहानियां पेश करती हैं। ऑल इज वेल' भी वह प्रयास करती है। मौजूदा दौर में जहां परिवार का सुख भाग-दौड़ भरी जिंदगी की मार झेल रहे लोगों की जिंदगी से विलुप्त हो रहा है, यह फिल्म लोगों को उस ओर ले जाने की चेष्टा करती है। वह प्रयत्न श्रवण कुमार की परिजन भक्ति, चाणक्य का कर्ज में डूबे पिता को लेकर दर्शन के आधुनिक विवेचन के जरिए किया गया है।

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    फिल्म के निर्देशक उमेश शुक्ला हैं, जो इससे पहले 'ओह माय गॉड' दे चुके हैं। वहां उन्होंने धार्मिक आंडबरों पर प्रहार किया था। उनका तार्किक व नवीन विश्लेषण कर लीक से हटकर फिल्म दी थी, जिसे लोगों ने स्वीकारा भी था। उमेश ने अपनी उस ताकत का प्रदर्शन इस फिल्म के जरिए भी करना चाहा है, लेकिन लचर कहानी व पटकथा ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया है। फिल्म में रांडा बर्न की विश्व प्रसिद्ध व बेस्ट सेलिंग किताब 'द सीक्रेट' के जिंदगी के प्रति सकारात्मक नजरिए की भी पैरोकारी है पर उसका गहरा असर छोड़ पाने में फिल्म की क्रिएटिव टीम नाकाम रही है।

    बहरहाल, कथा के मूल में इंदर भल्ला का टूटा हुआ परिवार है। उसके मां-पिता का प्रेम विवाह है, पर आर्थिक तंगी के चलते घर में सुख-शांति नहीं है। कलह का निवास है। रोज झगड़े होते हैं। उनके चलते इंदर भल्ला का शादी जैसी व्यवस्था से भरोसा उठ चुका है। इतना ही नहीं उसका बाप उसके सपनों के दरम्यान भी सबसे बड़ा अड़चन बन खड़ा है। नतीजतन जिंदगी के कड़वे सच से दूर भागने के लिए इंदर भल्ला हकीकत व अपने परिवार की दुनिया को छोड़ सपनों के पीछे भाग जाता है। वह दौड़ उसे परदेस ले आती है। बाद में विलेन चीमा व एक हद तक अपनी प्रेमिका निम्मी के चलते वह फिर से अपने परिजनों के पास लौटता है। उसे पता लगता है कि उसका पिता कर्ज में डूबा हुआ है। मां अल्जाइमर से पीडित है। लिहाजा वह अपने बिखरे हुए परिवार को समेटने की कवायद में लग जाता है। आखिरकार अपने पिता को लेकर कड़वाहट और शादी व प्रतिबद्धता को लेकर सबकी गिरहें खुलने लगती हैं।

    उमेश शुक्ला ने अपनी बात कहने के लिए सफर को जरिया चुना है। इंदर भल्ला का परिवार सफर पर जाता है और तब एक-दूसरे को लेकर गलतफहमियां दूर होती हैं। रोड ट्रिप वाली फिल्मों में दर्शकों को बांधने की चुनौती अधिकाधिक रहती है। घटनाक्रमों का समुचित तालमेल न हो तो दर्शकों पर फिल्म की पकड़ ढीली होने लगती है। इस फिल्म के संग भी दुर्भाग्य से वही हुआ है। फिल्म का एक बड़ा हिस्सा एकरस व एक आयामी रह गया है। कसी हुई पटकथा की कसक दूसरे हाफ में भी खलती है और सार्थक संदेश व उम्दा मनोरंजन की खुराक नहीं मिलती है।

    अदाकारी के मोर्चे पर मोहम्मद जीशान अय्यूब ने बाजी मारी है। चीमा को उन्होंने बेहतर ढंग से निभाया है। चीमा की लाउडनेस, माइंडलेस व्यवहार को उन्होंने पर्दे पर जीवंत किया है। ऋषि कपूर, अभिषेक बच्चन व असिन ने अपनी भूमिकाओं के संग न्याय किया है। इंदर भल्ला के अहंवादी और खडूस पिता की भूमिका में ऋषि कपूर असरदार लगे हैं। असिन ने तीन साल के ब्रेक के बाद वापसी की है, पर पंजाबी युवती निम्मी के चुलबुलेपन और अति आशावादी रवैये को पर्दे पर उभार नहीं सकी हैं। उनके किरदार में जरूरत से ज्यादा ठहराव रह गया।सुप्रिया पाठक इंदर भल्ला की मां बनी हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा फिल्म में जाया हुई है। हां, फिल्म के गाने कर्णप्रिय हैं। उमेश शुक्ला ने अपनी लकी मैस्कट सोनाक्षी सिन्हा पर डांस नंबर फिल्माया है। फिल्म के आखिर में पार्टी सॉन्ग अच्छा बन पड़ा है।

    अवधिः 127 मिनट

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