फिल्म रिव्यू : ऐसा ये जहां (2 स्टार)
मेकर्स ने फिल्म की रिलीज के पहले यह माहौल बनाया था कि यह पहली ऐसी फिल्म है जो निष्पक्ष तौर पर बनाई गई है। मेकर्स ने इस बात को मजबूती से रखने के लिए सौ पौधे लगाने का लक्ष्य भी रखा था। इसका मकसद पर्यावरण को बचाना था। यह कहानी
प्रमुख कलाकार: पलाश सेन, ईरा दुबे, किमस्लीन खोलियो, यशपाल शर्मा
निर्देशक: बिस्वजीत बोरा
संगीतकार निर्देशक: पलाश सेन - यूफोरिया
स्टार: 2
मेकर्स ने फिल्म की रिलीज के पहले यह माहौल बनाया था कि यह पहली ऐसी फिल्म है जो निष्पक्ष तौर पर बनाई गई है। मेकर्स ने इस बात को मजबूती से रखने के लिए सौ पौधे लगाने का लक्ष्य भी रखा था। इसका मकसद पर्यावरण को बचाना था। यह कहानी है असम की। यहां की विजुअल ट्रीट आपको फिल्म में मिलती है। फिल्म का संदेश स्पष्ट है। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाइए। पेड़ बचाइए। फिल्म खत्म होने तक यह संदेश आप तक पहुंचे या न पहुंचे मगर हां आप एक ट्रिप असम को लेकर जरूर प्लान करेंगे।
डॉक्टर से म्यूजिशियन बने और फिर एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले पलाश सेन लंबे अंतराल के बाद स्क्रीन पर नजर आए हैं। उन्होंने एक असमिया आदमी का कैरेक्टर निभाया है। जो चूहे-बिल्ली की दौड़ भाग के कारण असम से मुंबई की ओर रुख करता है। मगर प्लास्टिक बैग्स, गंदगी, खराब माहौल उसे अपने घर की याद दिलाता है। दूसरी तरफ उसकी बीवी जिसका किरदार ईरा दुबे ने निभाया है। वो बहुत ही महत्वाकांक्षी है। अपने सपनों को पूरा कर हाईफाई लाइफ स्टाइल जीना चाहती है।
यह एक ऐसी कहानी है जिससे हर मुंबईकर अपने आपको जुड़ा महसूस करेगा। ऐसा कपल जो देश के किसी भी कोने से यहां आता है अपने सपनों को पूरा करने के लिए। पलाश फिल्म में अच्छे लगे हैं। एक्टिंग भी ठीक की है। ईरा ने फनी ढंग से काम किया है। असमिया लड़की किमस्लीन खोल ने नैसर्गिक अभिनय किया है। यशपाल शर्मा ने नेगेटिव रोल से परे गांव के व्यक्ति की भूमिका निभाई है। किरदारों का वर्गीकरण सटीक है। बावजूद इसके फिल्म कई मौकों पर डाक्यूमेंट्री सी लगती है। इस मोड़ से दूर रहने के लिए ही शायद ईरा के कैरेक्टर को फनी टच दिया गया है।
हरियाली की बात के साथ ही फिल्म में नॉर्थ ईस्ट के लोगों की परेशानियों के बारे में भी बात की गई है। एक तरफ पैरेन्ट्स अपने बच्चों को ग्लैमर वर्ल्ड की ओर धकेल रहे हैं तो दूसरी तरफ भाषा एक बैरियर के रुप में सामने आ रही है। प्रिषा ने पलाश के बच्चे का किरदार निभाया है। वो किसी भी असमिया व्यक्ति से ज्यादा हिन्दी जानती हैं। वो अपने पिता को 'देता' बुलाती है जो कि असमिया भाषा में 'पिता' को कहते हैं। मगर हिन्दी में तो इसका मतलब कुछ देना होता है।
यह फिल्म अच्छे मकसद से बनाई गई है। कहानी और किरदार भी ठीक है। मगर 'बजरंगी भाईजान' और 'बाहुबली' पहले से ही बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रहे हैं। जल्द ही 'मसान' भी अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराएगी। ऐसे में इस फिल्म के लिए दर्शक जुटेंगे यह एक चुनौती ही होगी।