Move to Jagran APP

मोहब्बत की इंतहा है मांझी का काम - केतन मेहता

दशरथ माझी के जीवन पर आधारित ‘माझी-द माउंटेनमैन’ एक आम आदमी की बायोपिक है, जिसने अपने प्रेम के लिए लगातार 22 साल तक पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। इस फिल्म के निर्देशक केतन मेहता से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत के अंश

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2015 12:06 PM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2015 12:21 PM (IST)
मोहब्बत की इंतहा है मांझी का काम - केतन मेहता

दशरथ माझी के जीवन पर आधारित ‘माझी-द माउंटेनमैन’ एक आम आदमी की बायोपिक है, जिसने अपने प्रेम के लिए लगातार 22 साल तक पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। इस फिल्म के निर्देशक केतन मेहता से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत के अंश...

loksabha election banner

रणबीर-दीपिका की पार्टी में पहुंचकर कट्रीना ने किया 'तमाशा'

माझी को किस रूप में प्रेजेंट करने जा रहे हैं?
माझी हमारे देश के सुपरमैन हैं। वह एक फैंटेसी फिगर हैं। उन्हें आप रियललाइफ सुपरहीरो कह सकते हैं। ‘माझी’ आवेशपूर्ण प्रेमकहानी है। विजय की प्रेरक कहानी है। एक तरफ इश्क की दीवानगी है और दूसरी तरफ कुछ कर गुजरने का जुनून है। इनके बीच पहाड़ काटकर रास्ता बनाने की जिद है। नामुमकिन को मुमकिन बनाने का जज्बा है। यह बहुत ही पावरफुल कहानी है।

आपके जीवन में माझी कैसे आए?
2007 में उनके देहांत के बाद अखबारों और पत्रिकाओं में उनके बारे में अनेक लेख छपे। हम हिंदुस्तानियों की पुरानी आदत है कि किसी के मरने के बाद ही हम उसका महत्व समझ पाते हैं। उनसे संबंधित लेख पढ़ने के बाद उनका जीवन दिल को छू गया। मुझे लगा कि उनकी कहानी पर फिल्म बनाकर लोगों से शेयर करना चाहिए।

उनकी किस बात ने प्रभावित किया?
मुझे उनके जोश ने प्रभावित किया था। हिम्मत से जूझने और हार न मानने के जोश ने मुझे प्रेरित किया। मैंने फिल्म में उसी जोश को रखा है। उनका जीवन गजब की प्रेमकहानी भी है। उन्होंने पहाड़ क्यों काटा। यह तो मोहब्बत की इंतेहा है कि कोई 22 सालों तक पहाड़ काटता रहे। मनुष्य की इच्छाशक्ति की जीत की कहानी है यह।


हिंदी फिल्मों में बिहार किसी हिंसक जगह के रूप में पेश किया जाता रहा है और यहां की कहानियां मुख्य रूप से अपराधों से जुड़ी रही है। आप उसी भूमि से एक प्रेमकहानी ला रहे हैं?
सच कहें तो बिहार में कहानियों की खान है। वहां हर तरह की कहानियां हैं। माझी की कहानी पूरी दुनिया के लिए प्रेरक है। उनकी जिंदगी में दूसरा कोई काम ही नहीं था। अपने काम के एवज में उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं था।

आपने वास्तविक लोकेशन पर ही शूटिंग की?
...और कहीं इसे किया भी नहीं जा सकता था। वहां पहुंचने पर पहाड़ देखने के बाद यकीन ही नहीं हुआ कि कोई इंसान ऐसा मुश्किल काम भी कर सकता है। जिंदगी में पहले मुझे ऐसा ताज्जुब नहीं हुआ था। हमने गया को बेस कैंप बनाया। डेढ़ घंटे की चढ़ाई के बाद हम पहाड़ पर पहुंचते थे। जिस मुश्किल काम को उन्होंने 1960 से 1982 के बीच 22 सालों में पूरा किया, वहां सड़क बनाने में सरकार को 30 साल लग गए। वे अपनी जिंदगी में ही बाबा बन चुके थे। वे बोरा पहनते थे, इसलिए उन्हें बोरी बाबा कहा जाता था। वह लिविंग लिजेंड बन गए थे।

आपने इतनी बायोपिक फिल्में की हैं। माझी की कहानी किस तरह से अलग है?
मैंने धुन के पक्के व्यक्तियों की बायोपिक पर ही काम किया है। मैं स्वयं भी एक धुन में लगा हूं। आर्ट और कॉमर्शियल सिनेमा के बीच की दीवार तोड़ने में लगा हूं। किसी की जिंदगी को दो घंटों में बताने के लिए जरूरी है कि उसका केंद्रीय विचार होना चाहिए। ‘सरदार’ में देश का जन्म था। ‘मंगल पांडे’ में देश की आजादी थी। ‘माझी’ में पैशन और ऑब्सेशन है। असंभव को संभव बनाने की प्रेमकहानी है।

माझी की प्रेमकहानी में सामुदायिकता है। उन्होंने अपने समुदाय के लिए कुछ किया। संभवत: उनके काम में भी उद्देश्य था कि भविष्य में किसी के प्रिय की मृत्यु उनकी बीवी फगुनिया की तरह नहीं हो?
बिल्कुल...उन्होंने कुछ ऐसा किया कि अपने दुख से बाहर निकलकर पूरे गांव के बारे में सोचा। माझी के जीवन प्रसंगों को कहानी का रूप देने में वद्र्धराज स्वामी और स्थानीय लेखक शैवाल से मदद मिली। कुछ पत्रकारों ने भी मदद की। उनके जीवन के बारे में छिटपुट रूप में ढेर सारी सामग्रियां थीं लेकिन उन्हें कहानी का रूप देना जरूरी था।

कलाकारों के चुनाव के बारे में क्या कहेंगे?
नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने दौर के उम्दा अभिनेता हैं। उन्होंने बहुत अच्छा परफॉर्म किया है। भारतीय सिनेमा में ऐसा बेहतरीन अभिनय कम देखने को मिला है। फगुनिया के किरदार के लिए मैं अनेक अभिनेत्रियों से मिला। मुझे जमीनी और नाजुक मिजाज की लड़की चाहिए थी। राधिका आप्टे से मिलते ही लगा कि यही फगुनिया हो सकती है।

आपकी फिल्मों में खुरदुरा यथार्थ रहता है। ‘माझी’ में आपकी यह खूबी बरकरार रहेगी न?
बिल्कुल रहेगी। मेरी ‘मिर्च मसाला’ की याद आ सकती है। हम सभी एक लंबे सफर के बाद यहां पहुंचे हैं। सभी की अपनी लड़ाई है। सिनेमा इतना पावरफुल मीडियम है कि कहीं कुछ और करने का मन ही नहीं करता। अभी सिनेमा अच्छे दौर में चल रहा है। मैं काफी उम्मीद रखता हूं। अगले पांच सालों में हिंदी सिनेमा इंटरनेशनल स्तर तक पहुंच जाएगा। तकनीकी रूप से हमने बहुत उन्नति की है। रायटर-डायरेक्टर नए आइडिया लेकर आ रहे हैं। सबसे अच्छी बात है कि नई ऑडियंस भी आ गई है।

20 साल पूरे होने पर जापान में दिखाई जाएगी डीडीएलजे


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.