Exclusive: 'एक विलेन', जो हीरो को पीटकर बटोरता था तालियां!
सुभाष को हमेशा से यह ग़लफहमी थी कि वो हीरो मैटेरियल हैं, जबकि वो नहीं थे। लेकिन शत्रुघ्न में वह सब कुछ था जो एक हीरो में होना चहिये।
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने दौर में ना सिर्फ़ दिलचस्प किरदार निभाए, बल्कि उस ज़माने में उनकी ऑफस्क्रीन इमेज भी हमेशा लोकप्रिय और चर्चित रही है।
मशहूर फ़िल्म क्रिटिक रऊफ अहमद शत्रुघ्न सिन्हा की पुरानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा के संवाद ख़ामोश ने इसलिए लोगों के ज़हन में जगह बना ली, क्योंकि खुद शत्रुघ्न इस तरह के वन लाइनर बोलना पसंद करते थे। रऊफ बताते हैं कि एक बार जब वो उनसे एक मैगज़ीन के इंटरव्यू के सिलसिले में मिलने गए थे, तो ख़ुद शत्रुघ्न ने ही उन्हें कहा कि इस आर्टिकल की हैडिंग हीरो से ज़ीरो कर दो, उन्हें इस तरह की चीज़ें पसंद आती थीं। उन्हें राइम में बात करने की आदत थी। शत्रुघ्न सिन्हा ने पहले विलेन के रूप में अच्छी पहचान बना ली थी, उसके बाद वो हीरो बने।
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रऊफ़ बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा का ऐसा जलवा था कि जब वो पर्दे पर विलेन बनकर हीरो को पीटते थे तो तालियां उनके लिए बजती थीं। 1972 में आई फ़िल्म 'भाई हो तो ऐसा' में ऐसा ही हुआ। फ़िल्म के हीरो जीतेंद्र थे, लेकिन क्लाइमेक्स में जब भी शत्रु जीतू को मारते, तो तालियां बज उठतीं थीं।
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शत्रुघ्न सिन्हा के हीरो बनने के बीज वहीं से पड़ गए थे। रऊफ़ आगे बताते हैं कि सुभाष घई और शत्रु काफी क़रीबी मित्र थे। सुभाष को हमेशा से यह ग़लफहमी थी कि वो हीरो मैटेरियल हैं, जबकि वो नहीं थे। लेकिन शत्रुघ्न में वह सब कुछ था जो एक हीरो में होना चहिये। एक दिलचस्प बात यह हुई थी कि शत्रुघ्न क्रिकेट के फ़ैन थे तो उस दौर की फ़िल्मों के नाम में वो इसलिए उस दौर के सबसे लोकप्रिय क्रिकेटर का नाम चुन लिया करते थे।
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उस दौर में ऑल्विन कालीचरण काफी फेमस क्रिकेटर थे। सो, उन्होंने अपनी पहली हीरो वाली फ़िल्म का नाम कालीचरण रखा था। फिर उनकी एक फ़िल्म का नाम विश्वनाथ था। उस फ़िल्म का नाम भी गुंडप्पा विश्वनाथ के नाम पर रखा गया था। रऊफ़ का मानना है कि शत्रुघ्न को दिलचस्प चीज़ें करने में मज़ा आता था। शत्रुघ्न की ये दोनों फिल्में सुभाष घई ने ही निर्देशित की थीं।