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सिक्स पैक एब्स के बिना भी मशहूर हुए 'महाभारत' के किरदार, बोले नितीश भारद्वाज

मोहेंजो-दारो में रितिक रोशन के चाचा का रोल निभा रहे हैं नितीश भारद्वाज। कई साल बाद वो पर्दे पर लौटे थे। नितीश ने अपने 'वनवास' के दौरान कई काम किए।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 27 Jul 2016 06:10 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jul 2016 06:58 PM (IST)

मुंबई। बड़े और छोटे पर्दे पर कृष्ण के किरदार कई एक्टर्स ने निभाए हैं, लेकिन जो पहचान और सम्मान नितीश भारद्वाज को मिला, वो दूसरे किसी कृष्ण को नहीं मिल सका। कई साल बाद नितीश एक बार फिर खबरों में हैं। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म "मोहेंजो-दारो" में वो बेहद अहम् भूमिका में हैं। पेश है अनुप्रिया वर्मा से उनकी खास बातचीत।

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मोहेंजो-दारो से जुड़ना कैसे हुआ ?

आशुतोष गोवारिकर का एक बोल्ड डिसीजन कि नितीश भारद्वाज से बिल्कुल हटकर अभिनय कराना है। इसलिए लिया निर्णय कि करूंगा ये फिल्म। फिल्म में मैं दुर्जन का किरदार निभा रहा हूँ, जो शरमन का चाचा है। अनाथ शरमन को बड़ा किया। दुर्जन की अपनी कहानी है, जो मोहेंजो-दारो के लिये महत्वपूर्ण कहानी है। फिल्म में रहस्यमय पात्र बन जाता है मेरा किरदार।

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आशुतोष ने जब इस किरदार के बारे में बताया, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या थी?

नहीं मैं शॉक्ड तो नहीं था, क्योंकि मैं आशुतोष को ३० सालों से जानता हूँ। वर्ष 1985 से जानता हूं। हम उस वक़्त से अच्छे दोस्त हैं, जब वो कुछ नहीं थे, और मैं भी कुछ नहीं था। हमने साथ-साथ संघर्ष शुरू किया था। एक दूसरे की क्षमता क्या है, वह तो एक निर्देशक के तौर पर खुद को साबित कर चुके हैं। लेकिन मैं अभिनेता के रूप में क्या-क्या कर सकता हूँ। वह थिएटर के माध्यम से वह तब देख चुके हैं। उनको मुझमे विश्वास था। तो मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने मेरे लिए ऐसा किरदार लिखा। और मैं शॉक्ड नहीं था। आशुतोष से यह उपेक्षित है। वह अनयूजुअल कास्टिंग करें। इस तरह की फिल्म हिंदी सिनेमा को चाहिए। इस फिल्म का अनुभव हमेशा खास रहेगा। क्योंकि आशुतोष ने पूरे सेट, पूरे माहौल को क्रियेट करने की कोशिश की है। और दर्शक उस दौर को महसूस करेंगे।

आपने कहा कि अवकाश के बाद फिर से काम शुरू किया है। इस अवकाश की कोई खास वजह रही?

मेरी बहुत सारी हॉबीज हैं। फोटोग्राफी है , थिएटर है। फिर मैंने राजनीति भी की। राजनीति को मेरी हॉबी ही मान लीजिये। जब समाज सेवा करनी चाही थी। सच कहूं तो उलझ गए थे। इसके बाद मैं अपनी फिल्म के निर्माण में जुट गया था। फीचर फिल्म बनायीं। मराठी फिल्म। तीन साल लग गए। चूंकि एक फिल्म में काफी वक़्त लगता है। अब मेरी दूसरी फिल्म की कहानी पर काम चल रहा है। मैं भी पीरियड फिल्म करना चाहता हूँ। क्योंकि जो कहानी है। वह मॉडर्न कहानी नहीं है। उस कहानी को किसी पीरियड में रखना होगा। उसकी ही तयारी हो रही है। क्योंकि मेरा इंटरेस्ट बहुत सारी चीजों में है। तो मैं काफी बंटा हुआ था। लेकिन अब मैंने तय किया हैं , पूरी तरह से फिल्म में अभिनय पर ध्यान दूंगा। अब मुझे सिनेमा ही करना है। भले ही कितने भी माइथोलॉजिकल शोज बने, लेकिन कृष्ण का जो पात्र आपने निभाया आज भी लोगों के जेहेन में कृष्ण का वह किरदार लोगों को याद है।

आपको क्या वजह लगती कि दर्शक आज भी वह किरदार भूले नहीं हैं?

एक तो टीवी का सिनेरियो बदल गया है। उस दूरदर्शन को कोई नहीं देखता। भले ही वह कितने भी आंकड़े गिना लें. लेकिन कोई नहीं देखता। 50 चैनल है। जहाँ क्वांटिटी बढ़ जाती है। तो ऑडिएंस बढ़ जाता है। जब आप लार्जर देन लाइफ किरदार निभा रहे हैं.महाकाव्य है। रामायण और महाभारत। यह देश के रोम रोम में है. हर बच्चा जानता है। अब कैरेक्टर, डायलॉग पर काम नहीं हो रहा है। अब सिर्फ विज्युअल इफेक्ट्स पर अधिक काम हो रहा है। सेट डिज़ाइन, विज्युअल इफेक्ट्स कॉम्प्लीमेंट्री चीजें हैं। कहानी पर ध्यान देना जरुरी है। हमलोग तो सौभाग्यशाली हैं कि हमें राही मासूम रजा जैसे संवाद लेखक के साथ काम करने का मौका मिला। महाभारत के सारे किरदार स्ट्रांग हुए क्योंकि उनके लिए संवाद में बात थी। उनकी महारथ थी शब्दों में। वे नहीं होते तो हम भी नहीं होते। मैं तो आज के मेकर्स को कहना चाहता हूं की क्वालिटी में समझौता न करें। सिक्स पैक्स ऐब्स ये सब सेकेंडरी चीजें हैं। हमने से किसी के नहीं थे सिक्स पैक्स, फिर भी लोगों का प्यार मिला न।

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आपने जब कहा कि आप फिल्मों में आना चाहते हैं तो परिवार की क्या प्रतिक्रिया थी?

पिताजी ने कहा कि हमने सुना है वहां कोई गॉड फादर नहीं होता , तुम संघर्ष करना चाहते हो तो करो. मेरे पिताजी ने भी परिवार की परंपरा बदली थी। हमारा परिवार पंडिताई करता था। लेकिन पापा ने वकालत को चुना। ऐसे में मेरे परिवार से कोई सिनेमा था नहीं तो मेरे परिवार के नयी चीज ही थी। नानाजी आइएएस अवसर थे.

पहला ब्रेक कैसे मिला ?

मैं मुम्बई दूरदर्शन तब (बंबई ) में न्यूज़ रीडर था। उसको देख कर मुझे सई परांजपे ने मुझे अपने नाटक में लिया। वहां से मुझे मराठी फिल्म मिली। धीरे- धीरे वही से रास्ते बने। तो स्क्रीन पर मैं न्यूज़ रीडर की वजह से आया।

सिनेमा कितना बदला है ?

फिल्म इंडस्ट्री का दायित्व है कि वह मनोरंजन के साथ- साथ वह भी दे , जो ऑडियंस की डिमांड है। शुरुआती दौर में पहले सिर्फ धार्मिक फिल्में बनी। फिर सामाजिक फिल्में बनी। समाज का आईना तो है ही सिनेमा। लेकिन उससे अलग भी देना पड़ता है। मेरा मानना है कि अभी बॉलीवुड में सबसे अच्छा समय है। हर तरह की फिल्म बन रही। कपूर एंड संस बन रही तो मदारी भी बन रही है। समाज की सोच बदल चुकी है। अब के दौर में हर तरह का सिनेमा बनाना आसान है और इसलिए बन भी। पहले हीरोइन ओरिएंटेड फिल्में कम चलती थीं, अब हर तरह की फिल्में चल रही हैं। अब कंगना की फिल्में चल रही हैं। प्रियंका , दीपिका सभी अच्छा काम कर रही हैं।

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कैसा लगा था जब पहली बार महसूस किया कि आपको लोकप्रियता मिल गयी है ?

हां , धारावाहिक महाभारत का वह दौर था। जब मैं शूटिंग के लिए निकला अपनी बिल्डिंग में। अपनी गाड़ी के पास गया. तब तो ड्राइवर भी नहीं रखा था। खुद ही ड्राइव करता था। वहां बहुत सारे ऑटो रिक्शा वाले आये थे। तो मुझे लगा किसी के घर आये होंगे। लेकिन सभी आये और सभी आकर मुझसे मिले। मेरे ऑटोग्राफ्स लिए। मुझे फूल दिया। गुलदस्ता दिया। मैंने पूछा यहाँ किसके घर आये हो। तो सभी ने हम आपके घर आये हैं। आपसे ही मिलने आये हैं। हम देखने आये हैं कि कृष्ण जी कहां रहते हैं। उनसे मिलकर पहली बार लगा कि मेरी साधना सफल हुई।

अभिनेता के रूप में कृष्ण की छवि में ही लोग आपको याद रखना चाहते हैं. कभी इस बात का अफ़सोस होता?

नहीं , मैं अभिनेता के रूप में संतुष्ट हूं। और हर किरदार निभाने के लिए सक्षम हूं। दर्शक की मर्जी के सामने एक्टर कुछ नहीं कर सकता। वह जो चाहें , जैसे चाहें याद रखें।


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