गंभीर मुद्दे को छूती हुई फिल्म है 'जल'
अभिनेता पूरब कोहली पिछले सोलह सालों से फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हैं और अब तक उनके अभिनय को अच्छी खासी पहचान भी मिली है, लेकिन अब वह पूर्णतया कॉमर्शियल काम करना चाहते हैं। इसी कड़ी में उनकी सोलो फिल्म 'जल' भी रिलीज हो रही है। फिल्म के बारे में पूरब कहत
मुंबई। अभिनेता पूरब कोहली पिछले सोलह सालों से फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हैं और अब तक उनके अभिनय को अच्छी खासी पहचान भी मिली है, लेकिन अब वह पूर्णतया कॉमर्शियल काम करना चाहते हैं। इसी कड़ी में उनकी सोलो फिल्म 'जल' भी रिलीज हो रही है।
फिल्म के बारे में पूरब कहते हैं, 'जल मेरी अब तक की सबसे अलग फिल्म है। मेरी जितनी भी फिल्में आपने देखी है उनमें मैं शहरी युवा के किरदार में अधिकतर देखा गया हूं, लेकिन पहली बार मैं गुजरात के कच्छ के गांव के एक लड़के के किरदार में नजर आऊंगा। फिल्म में मेरा नाम बुक्का है, जो अपने गांव के पानी के लिए लड़ता है, क्योंकि पड़ोसी गांव में पानी का कुआं नहीं है। इस किरदार में ढलने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। सबसे मुश्किल कच्छ की बोली थी, जो मुझे सीखनी पड़ी। हमारे संवाद कोच वहीं कच्छ के थे। उनके साथ मैंने कई बार प्रशिक्षण लिया ताकि संवादों में कोई कमी न रह जाए। करीब तीन महीने लगे अपने किरदार में उतरने में।
फिल्म के निर्देशक गिरीश मलिक को मैं पिछले कई सालों से जानता हूं। कॅरियर के आरंभिक दौर में मैंने साल 2000 के आस-पास उनके साथ एक टीवी शो किया था संघर्ष। जिसका प्रसारण जीटीवी पर हुआ था। उसके बाद से मैं टीवी की दुनिया में वीजे, एंकर और अभिनेता के तौर पर बिजी रहा। इतने सालों के काम के दरम्यान मुझे जो फिल्में भी ऑफर हुई वे मेरे प्रारंभिक काम को देखकर ही असाइन की गई थी। मैं काम करता और लोग कहते अच्छा किया है लेकिन फिर मुझे काम ढूंढ़ना पड़ता। फिल्म 'आवारापन' में मेरा किरदार महज तीन या चार सीन का था, लेकिन पब्लिक ने उसे नोटिस किया।
मैं बहुत दिनों से उसी तरह के किरदार की तलाश में था, लेकिन वैसा किरदार नहीं मिल पा रहा था। 2011 में जब गिरीश ने मुझे वो किरदार सुनाया तो मैंने तुरंत हां कर दी। मुझे लगा कि ये काम मैं अगर अच्छे से कर ले गया, तो मेरे लिए एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार होगा। मैं आपको सही-सही बताऊं तो अब मुझे कॉमर्शियल काम ही करना है, क्योंकि अब मुझे अपनी पहुंच बढ़ानी है। फिर भले ही वो मल्टीस्टारर फिल्में ही क्यों न हों।'
(दुर्गेश सिंह)