25 सालों के बाद थिएटर पहुंचेगी ओम दर-बदर
कमल स्वरूप की फिल्म 'ओम दर-ब-दर' 1988 में सेंसर हुई थी। उसके बाद यह विदेशी फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की जाती रही। देश में इस फिल्म के सीमित प्रदर्शन हुए। निर्माण के 25 सालों के बाद एनएफडीसी और पीवीआर के संयुक्त प्रयास से यह सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। एनएफडीसी ने इस फिल्म की डिजिटल रीस्टोरिंग की है।
कमल स्वरूप की फिल्म 'ओम दर-ब-दर' 1988 में सेंसर हुई थी। उसके बाद यह विदेशी फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की जाती रही। देश में इस फिल्म के सीमित प्रदर्शन हुए। निर्माण के 25 सालों के बाद एनएफडीसी और पीवीआर के संयुक्त प्रयास से यह सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। एनएफडीसी ने इस फिल्म की डिजिटल रीस्टोरिंग की है।
'घासी राम कोतवाल', 'अरविंद देसाई की अजीब दास्तान', 'तरंग' और 'गांधी' में विभिन्न निर्देशकों के सहायक रहे कमल स्वरूप मूलत: अजमेर, राजस्थान के हैं। उनकी इस फिल्म में अजमेर के अनेक गैरपेशेवर कलाकारों के साथ ललित तिवारी, अनिता कंवर, गोपी देसाई और आदित्य लाखिया ने अभिनय किया है। साहित्य प्रेमी कमल स्वरूप मानते हैं कि अपने समाज के साहित्य से संपन्न होने के बाद ही कोई फिल्मकार मौलिक और नई बात कह सकता है। ऐसा ही प्रयास उन्होंने अपनी फिल्म में किया है।
(अजय ब्रहा्रात्मज)
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