यूपी विधानसभा चुनाव 2017 : मुसीबतों का ‘तिराहा’ लापता हो गए उद्योग
फुटपाथ से लेकर सड़कों तक अतिक्रमण है। गांव के पक्के रास्ते अब कच्ची पगडंडियों का रूप ले चुके हैं। बिजली के आने जाने का समय कागजों में भले है, लेकिन गांव में नहीं है।
संजय कुशवाहा, इलाहाबाद। अतिक्रमण, गड्ढों में समाती सड़क, बिजली संकट सोरांव विधानसभा क्षेत्र की बदनाम निशानियां हैं। आलू व सब्जी उत्पादन के रूप में क्षेत्र की पहचान तो है, लेकिन सुविधा के लिहाज से मंडियां वह मुकाम नहीं हासिल कर पाईं, जिसकी वह हकदार थीं। मुख्य सड़क से लेकर लिंक मार्गो तक अतिक्रमण ने विकास के पहिये का बोल्ट ही मानो खोल रखा है। शायद यही वजह है कि उद्योग के मामले में क्षेत्र पिछड़ा है। मऊआइमा में एक कताई मिल थी, जो छह वषों से बंद पड़ी है। बिजली, पानी तो कई गांवों के लिए नैसर्गिक समस्या जैसी है।
यहां से निकले हाईवे - इलाहाबाद-सुल्तानपुर राजमार्ग और हंडिया-कोखराज राजमार्ग
इलाहाबाद-सुल्तानपुर राजमार्ग पर स्थित सोरांव कस्बा देखने में तो विकसित लगता है, लेकिन अंदर झांकते ही बदरंग तस्वीर से सामना हो जाता है। लिंक मागोर्ं की बिखरी गिट्टियां विकास की बदरंग कहानी बयां कर देती हैं। सोरांव-कल्याणपुर मार्ग, सिकंदरा-दांदूपुर मार्ग, मऊआइमा से तिलई मार्ग, बांका-जलालपुर मार्ग के साथ ही मुख्य मार्ग भी क्षतिग्रस्त है। इसमें से मुख्य मार्ग की मरम्मत ही कभी कभार हो जाती है, लेकिन लिंक मार्ग बदतर हैं। क्षेत्र के लोगों की मानें तो नेता आते जाते रहे, लेकिन सड़कों की बदहाली पर उनकी नजरें इनायत कभी नहीं हुई। सोरांव क्षेत्र में अतिक्रमण की समस्या लाइलाज हो गई है। पहले लोगों ने मुख्य मार्ग की पटरी पर कब्जा किया फिर सड़क तक जा पहुंचे। नतीजा चौड़ी सड़कें सिकुड़ गईं और जाम ने अपना दायरा बढ़ा लिया। लिंक मार्गो की गर्दन अतिक्रमण ने दबा रखी है।
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आपूर्ति के दावों को लगा विद्युत करंट
बिजली व्यवस्था बेपटरी है। रोस्टर तो 18 घंटे का है, पर बिजली मिलती है आठ से दस घंटे। अब कुछ ऐसे गांव की तस्वीर लिखते हैं जहां विद्युतीकरण में लापरवाही बरती गई है। खुशहालपुर लकड़ी व बांस के खंभों के सहारे रोशन है। ग्रामीणों के सारे प्रयास बांस के खंभों पर लटके नजर आते हैं। कुंसुगुर-गारापुर गांव को हनुमानगंज पावर हाउस से बिजली मिलती है। बस, गनीमत यह रहे कि यहां का ट्रांसफार्मर फुंके नहीं, वर्ना महीने भर का अंधेरा तय है। हाजीगंज जैसे कई और गांव ऐसी ही दुश्वारियों में उलङो हैं।
ये जो शिवगढ़ सब्जी मंडी है न..
सोरांव क्षेत्र सब्जियों के लिए भी जाना जाता है। आलू की खेती यहां बड़े पैमाने पर की जाती है। यही कारण है कि यहां तीन किलोमीटर के दायरे में 14 कोल्ड स्टोरेज हैं। प्रदेश की बड़ी सब्जी मंडियों में गिनी जाती है यहां की शिवगढ़ मंडी। सब्जी व्यापारियों की मानें तो यहां से मंडी समिति को अच्छा खासा राजस्व मिलता है, इसके बाद भी यहां की बदहाली दूर करने की कोशिश नहीं की गई। गर्मी में पानी के लिए किसानों को भटकना पड़ता है। गंदगी यहां के दुकानदारों के लिए अभिशाप बन चुकी है।
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भला हो हैंडपंप व कुओं का, वर्ना..
क्षेत्र के डेढ़ दर्जन गांव पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं। खासकर गर्मी के दिनों में यहां पानी का अकाल पड़ जाता है। अरैया, अमानगंज, कंचनपुर, गधियानी सहित कई गांव में केवल हैंडपंप व कुएं ही ग्रामीणों का सहारा हैं। हैंडपंप खराब होने पर पानी के लिए मारामारी मचनी तय रहती है।
कहते हैं ये
फुटपाथ से लेकर सड़कों तक अतिक्रमण है। गांव के पक्के रास्ते अब कच्ची पगडंडियों का रूप ले चुके हैं। बिजली के आने जाने का समय कागजों में भले है, लेकिन गांव में नहीं है। आएदिन होने वाली वारदातें कानून-व्यवस्था की असल तस्वीर दिखा देती हैं, इस सबसे निपटना आसान नजर नहीं आता।
एसके सिंह, महामंत्री सोरांव तहसील बार एसोसिएशन
मुख्य मार्ग तो क्षतिग्रस्त है ही, गांव जाने वाले संपर्क मार्गो में भी ज्यादा जान नहीं बची है। लोग परेशान हैं और शासन प्रशासन में बैठे लोग हैं कि अपनी धुन में ही मगन हैं। कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लोग दुआ करते हैं कि बारिश न हो, वर्ना वह घर में ही कैद रह जाएंगे। इन बिन्दुओं पर ग्रामीणों ने कई बार प्रशासनिक अधिकारियों व नेताओं से शिकायत की पर कुछ न हुआ।
एके गुप्ता, समाजसेवी, सोरांव
सोरांव शहर से सटा कस्बा है, लेकिन शहर जैसी तस्वीर कस्बे में नजर नहीं आती। न पीने का शुद्ध पानी न ही साफ-सफाई की व्यवस्था सुदृढ़ है। सड़कें खराब हैं तो अतिक्रमण की समस्या ने विकास को रोक रखा है। आए दिन यहां जाम लगता है। यह हाल सड़कों के साथ ही लिंक मागोर्ं का भी है, बावजूद इसके ध्यान नहीं दिया जा रहा।
हरिप्रताप मौर्य, व्यापारी, मऊआइमा
क्षेत्र में क्षतिग्रस्त सड़कों अतिक्रमण ने परेशान कर रखा है। अतिक्रमण के कारण प्रमुख कस्बाई बाजारों में जाम की समस्या बनी रहती है। बिजली भी रोस्टर के मुताबिक नहीं मिलती। बिजली न आने से विद्यार्थियों को रात में पढ़ने में दिक्कत होती है। नलकूप की मोटर जल जाए तो वह एक महीने बाद ही बदली जाती है। शिकायत के बाद भी न तो अधिकारी सुनते हैं न ही नेता।
कृपाशंकर, अकारीपुर