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चुनावों के साथ चलती और थमती रही अयोध्या में राम मंदिर की भी यात्रा

राम मंदिर का मुद्दा सियासत की लड़ाई में वो कहानी बन चुका है, जिसे समय समय पर राजनीतिक दल गरमाते रहते है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sun, 29 Jan 2017 12:54 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2017 10:00 AM (IST)
चुनावों के साथ चलती और थमती रही अयोध्या में राम मंदिर की भी यात्रा
चुनावों के साथ चलती और थमती रही अयोध्या में राम मंदिर की भी यात्रा

नई दिल्ली(जेएनएन)। अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा हर बार आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में खास तौर पर उछलता है। 1980 और 90 के दशक में भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए ही देशभर में अपनी पकड़ मजबूत की, तो विपक्षी पार्टियों ने भी भाजपा का डर दिखाकर वोटों की फसल काटी है। यहां पढ़ें अयोध्या मसले का चुनावी सफर...

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अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राममंदिर को लेकर पहला विवाद 1853 में सामने आया था। लेकिन अंग्रेजों के शासन में इस मुद्दे पर कुछ खास नहीं हुआ। कहा जाता है कि 1949 में गुपचुप तरीके से मंदिर के अंदर भगवान राम की मूर्ति रख दी गई थी और यह भी दावा किया गया कि यहां भगवान राम अपने-आप अवतरित हो गए हैं। जिसके बाद दोनों पक्षों की ओर से यह मामला कोर्ट में चला गया।

राम मंदिर के लिए आंदोलन

हिन्दू अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली मानते हैं और साल 1984 में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए एक आंदोलन हुआ। हिन्दू संगठन राम मंदिर बनाने के मुद्दे पर इकट्ठा हुए और उन्होंने राम जन्मभूमि में भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए एक कमेटी गठित की।

साल 1986 में जिला जज ने करीब 5 दशक तक बंद रहने के बाद बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने का आदेश दिया और हिन्दुओं को इस विवादित स्थल पर पूजा की इजाजत दे दी। इसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ और उन्होंने इस स्थान पर हिन्दुओं को पूजा की इजाजत देने पर आपत्ति जतायी।

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विहिप की घोषणा, राजनीति में तूफान

अयोध्या मसले की असली राजनीतिक यात्रा साल 1989 में तब शुरू हुई जब फरवरी में विश्व हिन्दू परिषद ने घोषणा की कि अयोध्या की विवादित भूमि पर भगवान राम के विशाल मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी। इसी साल नवंबर माह में विहिप ने गृहमंत्री बूटा सिंह और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की मौजूदगी में विवादित ढांचे के पास ही मंदिर की आधारशिला रख भी दी। इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक झड़पें भी शुरू हो गईं।


राम मंदिर के लिए रथ यात्रा

1990 में वीपी सिंह भाजपा के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बने। बता दें कि भाजपा को ताजा चुनावों में 58 सीटें मिली थीं, जो उनके पिछले चुनाव में मिली 2 सीटों से काफी ज्यादा थीं। उस समय के भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने तब विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के वास्ते समर्थन जुटाने के लिए देशभर में रथयात्रा की।

23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। अब कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर देश के अगले प्रधानमंत्री बने। 30 अक्टूबर 1990 को उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के निर्देश पर पुलिस के राममंदिर निर्माण के लिए आयोजित रथ यात्रा में शामिल कई समर्थकों को गोली मार दी। उनके शवों को वहां से बहने वाली सरयू नदीं में फेंक दिया गया।


लीज पर 2.77 एकड़ जमीन


1991 के चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में लौटी और भाजपा प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरकर आयी। यही नहीं भाजपा मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी सत्ता में आ गई। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। राज्य सरकार ने अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और उसे रामजन्मभूमि न्यास ट्रस्ट को लीज पर दे दिया। उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल के आसपास किसी तरह के स्थायी निर्माण पर रोक लगा दी।

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1992 में विवादित ढांचा जमींदोज

मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने खुले तौर पर राममंदिर आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन केंद्र सरकार ने भी अयोध्या में बढ़ते तनाव को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

साल 1992 में कल्याण सिंह ने कारसेवकों की विवादित स्थल तक पहुंच आसान बनाने के लिए उनका समर्थन किया और कारसेवकों पर गोली नहीं चलाने का भरोसा दिया। यही नहीं उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वहां केंद्रीय बलों को भेजने का भी विरोध किया। इसी साल जुलाई में वहां हजारों कारसेवक जमा हो गए और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद कार्य रोक दिया गया।

अब गृहमंत्री की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और विहिप के नेताओं के बीच बैठकों का दौर शुरू हो गया। 30 अक्टूबर को विहिप की धर्म संसद ने दिल्ली में कहा कि बातचीत विफल हो गई है और अब कारसेवक 6 दिसंबर से अपने मिशन पर आगे बढ़ेंगे। केंद्र सरकार ने विवादित स्थल के आसपास केंद्रीय बलों को लगाने के बारे में सोचा लेकिन बाद में ऐसा नहीं किया।

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में इकट्ठा हुए करीब 2 लाख कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया। इसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क गए। इस घटना के 10 दिन बाद 16 दिसंबर को नरसिम्हा राव की केंद्रीय सरकार ने जस्टिस लिब्राहन की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की।

इस घटना के बाद भाजपा को लगातार जन समर्थन मिला और उसने कई राज्यों में सरकार बनाने के साथ ही केंद्र में भी अपनी स्थिति मजबूत कर ली। राम मंदिर के नाम पर ही 1996 और 1999 में भाजपा अपने अन्य सहयोगी दलों के साथ केंद्र की सत्ता तक भी पहुंच गई। इसके बाद हर चुनाव में भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का वादा किया

साल 2001 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा-एनडीए की सरकार थी और विहिप ने एक बार फिर राम मंदिर बनाने के अपने पुराने संकल्प को दोहराया। इससे अयोध्या के साथ ही देशभर में माहौल गरमा गया।


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27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में 58 कारसेवकों की एक ट्रेन बोगी में आग लगने के कारण मौत हो गई। यह कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे और माना गया कि यह 6 दिसंबर 1992 का बदला लिया गया था। इसके बाद गुजरात भर में दंगे फैल गए और 2000 से ज्यादा लोगों की जान गई। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात दंगों के दौरान वहां के मुख्यमंत्री थे।

साल 2003 में न्यायालय ने एक सर्वे करने का आदेश दिया, ताकि पता किया जा सके कि विवादित स्थल पर राम मंदिर था या नहीं। इसी साल अगस्त में सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं। हालांकि मुसलमानों ने इन सबूतों को नकार दिया।

नवंबर 2004 में उत्तर प्रदेश की एक कोर्ट ने कहा, विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को दोषमुक्त किए जाने के फैसले को फिर से रिव्यू किया जाना चाहिए। बाबरी मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद गठित लिब्राहन आयोग ने पूरे 17 साल बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में रखी। हालांकि इसकी जांच को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया।

इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला

30 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित भूमि पर अपने फैसले में इसे तीन हिस्सों में बांट दिया। कोर्ट ने कहा, इसका एक हिस्सा राम लल्ला को दिया जाए, जिसे हिन्दू महासभा रिप्रजेंट कर रही थी, 1 हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और एक हिस्सा निरमोही अखाड़े को दिया जाए। हालांकि किसी भी पक्ष को यह फैसला पसंद नहीं आया और मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी।

साल 2014 के आम चुनाव और अब 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर राम मंदिर का मुद्दा उठाया है। हालांकि भाजपा अब अपने पुराने रुख से अलग हटकर संवैधानिक तरीके से राम मंदिर बनाने की बात करने लगी है।

सियासत में फंसा राम मंदिर मामला

राममंदिर मामले का भाजपा ने जितना दोहन किया है उतना ही उसके विरोधी दलों ने भी किया है। विपक्षी दल भी अल्पसंख्यकों को भाजपा का डर दिखाकर उनके वोट हासिल करते रहे हैं। भाजपा अगर राम मंदिर की बात नहीं भी करती है तो विपक्षी दल किसी न किसी बहाने अल्पसंख्यकों में उसका खौफ पैदा करके वोटों का ध्रुवीकरण करते रहे हैं।

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