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Lok Sabha Election 2019: आधी आबादी के लिए 33 दूर की कौड़ी, 10% सीट भी देने को तैयार नहीं

Lok Sabha Election 2019. भाजपा कांग्रेस और झामुमो जैसे बड़े दलों ने भी महिलाओं की अनदेखी की है। 33 फीसद तो दूर राजनीतिक दल 10 फीसद महिलाओं को भी नहीं देते मौका।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 12:16 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: आधी आबादी के लिए 33 दूर की कौड़ी, 10% सीट भी देने को तैयार नहीं
Lok Sabha Election 2019: आधी आबादी के लिए 33 दूर की कौड़ी, 10% सीट भी देने को तैयार नहीं

रांची, राज्य ब्यूरो। आधी आबादी को पूरे अधिकार के दावे भी होते हैं और वादे भी, लेकिन हकीकत ठीक इसके विपरीत है। यह कहना कि राजनीतिक दलों के एजेंडे में महिला सशक्तिकरण सिर्फ चुनावी जुमला बनकर रह गया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चुनावी घोषणा पत्र में बड़े-बड़े दावे करने वाले दल महिलाओं के अधिकार को लेकर कितने गंभीर है, टिकट बंटवारे के साथ ही यह स्पष्ट हो जाता है। कहने को आजादी के बाद से ही महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की बात होती रही है, परंतु किसी भी राजनीतिक दल में 33 तो दूर 10 फीसद भी महिलाओं की भी भागीदारी नहीं है।

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लोकसभा चुनाव 2014 इसकी बानगी है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दल तथा झामुमो जैसे क्षेत्रीय दलों ने एक भी महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा था। सवाल यह कि जब पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण की व्यवस्था प्रभावी हो सकती है तो विधानसभा और लोकसभा में क्यों नहीं? अगर हम राजनीति के आइने से इतर भी देखें तो समाज में महिलाओं को आज भी बराबरी का दर्जा नहीं मिल सका, जबकि कई मौकों पर यह स्पष्ट हो चुका है कि वह पुरुषों से कतई कमजोर नहीं है।

झारखंड में महिलाओं की मौजूदा स्थिति की बात करें तो आज भी उनकी 65 फीसद आबादी खून की कमी की समस्या से जूझ रही है। भ्रूण हत्याओं का दौर आज भी नहीं थमा है। डायन-बिसाही के नाम राज्य गठन के बाद 1744 महिलाएं मार डाली गईं। रोजी-रोटी की तलाश में आज भी झारखंड से सालाना लगभग 10 हजार महिलाओं का पलायन बाहर के प्रदेशों में हो रहा है। हर दिन औसतन चार महिलाओं के साथ यहां दुष्कर्म हो रहा है। ये ऐसे आंकड़े है, जो या तो सरकार के दस्तावेज में दर्ज है या फिर गैर सरकारी संगठनों के सर्वे पर आधारित है। इससे इतर ऐसे हजारों मामले हैं जो लोकलाज और नाना प्रकार के कानूनी पचड़े की वजह से सामने नहीं आते। दुर्भाग्य यह कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर वोट मांगने वालों के एजेंडे में ये मुद्दे कभी शामिल नहीं होते। 

गांव की सरकार में है 56 फीसद भागीदारी
राज्य सरकार ने पंचायत चुनाव की 50 फीसद सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित क्या की, महिलाओं ने दिखाया कि वे कितनी काबिल हैं। गांव की सरकार में इनकी भागीदारी 56 फीसद है। यह दर्शाता है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वे सिर्फ घर ही नहीं, समाज और देश को भी संवार सकती हैं। लातेहार की सुनीता देवी की बात करें तो बतौर मास्टर ट्रेनर उसने 1600 महिलाओं को राजमिस्त्री का प्रशिक्षण दिया।

पुरुषों के समकक्ष इस अद्वितीय कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आठ मार्च को उसे नारी शक्ति सम्मान से नवाजा। झारखंड के घोर उग्रवाद प्रभावित जिलों में शामिल गुमला के रायडीह प्रखंड की बात करें तो पोल्ट्री की नींव रखने वाली 14 महिलाओं का कुनबा आज बढ़कर 4,269 हो गया है। आज महिलाओं का यह समूह 8886.36 एमटी अंडे का का उत्पादन कर रही है। सालाना कारोबार की बात करें तो यह 6330.1 लाख को पार कर गई है। 

परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। महिलाओं का उदय अब सबला नारी के रूप में हो रहा है। जल, थल और नभ सबमें उनका प्रभुत्व कायम हो रहा है। वह शिक्षित हो रही हैं, जागरूक हो रही हैं। ऐसे में उन्हें हाशिये पर नहीं रखा जा सकता। उनमें राजनीतिक चेतना भी आई है। सरकारें भी तेजी से उन्हें आगे बढ़ा रही हैं। सरकारी कार्यालयों, स्कूल-कालेजों, बोर्ड-निगमों से लेकर विधानसभा से लेकर राज्यसभा तक में उनका दबदबा है।

झारखंड की ही बात करें तो आज गांव की सरकार में उनकी 56 फीसद भागीदारी है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिल रहा है। हां इतना जरूर है कि उन्हें और मौका मिलना चाहिए। मेरा मानना है कि बदलते वक्त के साथ यह तस्वीर भी बदलेगी। सरकार ने महिलाओं को हर स्तर पर सशक्त बनाने की कोशिश की है। अलग से महिला बजट इसकी बानगी है। जहां तक महिलाओं के साथ दुष्कर्म और अत्याचार की बात है, डायन बिसाही अथवा पलायन का मामला है, इस पर नियंत्रण अकेले सरकार के बूते नहीं है। समाज के हर तबके को इस मामले में अपनी भूमिका निभानी होगी। कल्याणी शरण, अध्यक्ष, झारखंड राज्य महिला आयोग। 

महिलाएं घर चला सकती हैं तो देश भी चला सकती हैं। हर क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व हो। आधी आबादी है तो 50 फीसद आरक्षण भी मिले। समाज में उनकी बराबर की भागीदारी से ही परिवार, समाज और देश की तस्वीर बदलेगी। निश्चित तौर पर इसे चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए। रिंकी झा, केंद्रीय प्रवक्ता, झाविमो। 

समाज में महिलाओं की आधी भागीदारी है तो उन्हें उसके समतुल्य अधिकार भी मिलना चाहिए। हर पार्टी के चुनावी एजेंडे में इसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए। महिलाओं को जहां भी मौका मिला है, उसने अपना सौ फीसद दिया है। समाज और देश के हालात बदलने के लिए उन्हें हर क्षेत्र में आरक्षण मिलना चाहिए। शीला सिंह, नेत्री, प्रदेश जदयू। 

महिलाओं को समाज में बराबरी की हिस्सेदारी मिले, यह वर्तमान की मांग है। हर क्षेत्र में उन्हें कम से कम 33 फीसद आरक्षण मिले, ताकि वह ग्रामसभा से लेकर संसद तक अपना परचम लहरा सके। आधी आबादी को पूरा अधिकार मिले, इसे हर हाल में चुनावी मुद्दा बनाए जाने की जरूरत है। गुंजन सिंह, अध्यक्ष, महिला कांग्रेस, झारखंड प्रदेश। 

महिलाओं को हर क्षेत्र में आरक्षण मिलना चाहिए, चाहे वह राजनीति ही क्यों न हो। अगर उन्हें समुचित अवसर मिले तो वे जल, थल, नभ, कहीं भी अपना परचम लहरा सकती हैं। लेकिन विडंबना यह है कि समाज का मौजूदा ढांचा, अभी भी बहुत मामले में उन्हें पुरुषों के समकक्ष खड़ा होने की इजाजत नहीं देता।  ऋतु कुमार, अध्यक्ष, एडवोकेट एसोसिएशन, झारखंड हाईकोर्ट। 

तथाकथित सभ्य समाज में आज भी महिलाएं कई स्तरों पर प्रताडि़त हैं। जिस दिन समाज के हर क्षेत्र में उनकी बराबरी की दावेदारी होगी, बहुत हद तक समस्याएं दूर हो जाएंगी। समाज के हर वर्ग को इस दिशा में आगे बढऩा होगा। दुर्भाग्य यह कि इतना महत्वपूर्ण मसला राजनीतिक दलों के एजेंडे से शामिल नहीं होता। पूनम टोप्पो अध्यक्ष, आशा।


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