झारखंड में प्रत्याशियों से भितरघात करने वालों की कुंडली खंगालेगी पार्टियां, होगी कार्रवाई
Lok Sabha Elections 2019. झारखंड के प्रमुख राजनीतिक दल पार्टी विरोधियों की कुंडली खंगालेंगे। इनकी जांच के लिए बनी कमेटी तफ्तीश के बाद जांच रिपोर्ट सौंपेगी।
रांची, प्रदीप सिंह। राजनीति में स्थायी दोस्ती या दुश्मनी संभव नहीं। यहां समय देखकर पासा फेंका जाता है, ताकि विरोधी चारों खाने चित हो जाए। झारखंड के चुनावी महासमर में भी तमाम दलों ने ऐसे कटु अनुभव किए, जब पार्टी लाइन से इतर जाकर अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ दल के नेताओं ने ही भितरघात किया। इसमें कुछेक खुलकर सामने आए तो ज्यादातर भीतर ही भीतर जड़ें खोदते रहे, ताकि भविष्य की राजनीति में वे कामयाब हो सकें। ऐसे तमाम पार्टी विरोधी तत्वों की कुंडली प्रमुख राजनीतिक दल खंगालेंगे। ऐसे लोगों की जांच के लिए बनी अंदरूनी कमेटी तफ्तीश के बाद जांच रिपोर्ट सौंपेगी।
आरोप में सत्यता पाए जाने के बाद ऐसे नेताजी दल से निकाल बाहर किए जाएंगे। फिलहाल, इसकी अंदरूनी प्रक्रिया चल रही है। हर संसदीय क्षेत्र से चुनाव के दौरान और बाद में भी ऐसे शिकायतों की भरमार है, जिसमें दलीय प्रत्याशी के विरोध में जाकर काम करने के आरोप हैं। फिलहाल, इन शिकायतों की फेहरिश्त तैयार की जा रही है। धीरे-धीरे सत्यता सामने आने के बाद पार्टियां अपने स्तर से कार्रवाई करेंगी।
हो चुकी पहले दौर की कार्रवाई
बागी तेवर अपनाने वाले नेताओं के खिलाफ पहले दौर की कार्रवाई की जा चुकी है। रांची संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे रामटहल चौधरी को जब भाजपा ने टिकट नहीं थमाया तो वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाए। टिकट की घोषणा होने के पूर्व ही उनके तेवर गर्म थे। शायद उन्हें इसका अहसास हो गया था कि राष्ट्रीय स्तर पर टिकट के लिए भाजपा ने जो मानक बनाया है उसमें वे खरे नहीं उतर रहे हैं। टिकट बंटवारे के पहले ही उन्होंने हर हाल में चुनाव लडऩे की घोषणा कर डाली। नतीजतन पार्टी ने उन्हें निकाल बाहर किया। उनके पुत्र भी दलीय अनुशासन भंग करने के आरोप में निकाले गए।
उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा में बगावत का बिगुल मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल ने फूंका। पटेल गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩा चाहते थे। जब उन्हें अधिकृत प्रत्याशी नहीं घोषित किया गया तो उनके तेवर बदल गए। उन्होंने संगठन के शीर्ष नेताओं पर निशाना साधने में जरा भी देर नहीं की। वे लगातार भाजपा और आजसू के मंच पर नजर आने लगे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जमकर गुणगान किया। तत्काल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन्हें छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। झामुमो ने निचले स्तर पर भी कुछ कार्रवाई वैसे नेताओं पर की जो दलीय अनुशासन के विपरीत चुनाव से पूर्व सक्रिय थे।
शुरुआत में दिखाए बगावती तेवर
कांग्रेस के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी गोड्डा संसदीय सीट से टिकट चाहते थे। उन्होंने इसके लिए रांची-दिल्ली एक कर दिया। उनके पुत्र विधायक डॉ. इरफान अंसारी ने भी पूरा जोर लगाया। आरंभ से पिता-पुत्र इस कवायद में लगे रहे कि किसी हाल में टिकट हासिल किया जाए। नेताओं के दरबार में हाजिरी से लेकर प्रेशर पालिटिक्स तक का सहारा लिया। इतना तक प्रचारित किया गया कि कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने की स्थिति में वे निर्दलीय या राजद के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने नामांकन पत्र भी खरीद लिया। उनकी पुत्री के भी चुनाव लड़ने की अफवाह उड़ी।
इतना सब कुछ करने के बावजूद गोड्डा संसदीय सीट पर कांग्र्रेस ने प्रत्याशी नहीं दिया। यह सीट तालमेल के तहत झाविमो को दे दी गई। इससे फुरकान अंसारी कुछ दिन खफा रहे लेकिन अंत में उन्होंने परिस्थितियों से समझौता कर लिया। उनके पुत्र भी चुनाव के दौरान विपक्षी महागठबंधन के पक्ष में सक्रिय रहे। उधर, गिरिडीह से टिकट नहीं मिलने से भाजपा के सांसद रहे रविंद्र पांडेय भी नाराज थे। आरंभ में उन्होंने इसे सार्वजनिक भी किया। कयास लगाया जा रहा था कि वे किसी अन्य दल से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन अंतत: उन्होंने इससे परहेज किया।
एक्शन के डर से भी चुप्पी
प्रमुख पार्टियों में खुलकर बगावत करने से कड़ाई से एक्शन तय है। इस वजह से कई नेताओं ने चुप्पी साध ली। अंत-अंत तक उन्होंने इसका दिखावा भी किया कि वे पार्टी के निर्णय के साथ हैं, लेकिन उनके काम करने का तरीका उत्साहजनक नहीं था। ऐसे नेता पार्टियों के रडार पर हैं, जिन्होंने दिखावे के लिए साथ तो दिया लेकिन अपने समर्थकों को विरोध की मुहिम में लगाए रखा।
कड़िया मुंडा ने दिखाई दरियादिली
दलीय प्रतिबद्धता एक झटके में खत्म नहीं होती। यह विचारों की मजबूत डोर से बंधी होती है। संगठन अपनी योजना के मुताबिक समय पर कार्यकर्ताओं की भूमिका तय करता है। जहां एक ओर टिकट नहीं मिलने पर कई नेताओं ने दल और दिल बदलने में एक सेकेंड नहीं लगाया, वहीं लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और खूंटी संसदीय क्षेत्र के पर्याय कड़िया मुंडा ने अद्भुत मिसाल कायम की। राजनीति में शुचिता के पर्याय कडिय़ा मुंडा ने इसे सहज और स्वाभाविक तौर पर लिया। यही नहीं, आगे बढ़कर नए नेतृत्व के लिए बाहें फैलाई। खूंटी से भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन मुंडा के पक्ष में उन्होने पूरी सक्रियता से अभियान चलाया। वे लगातार क्षेत्र का भ्रमण करते रहे और कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया।
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