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कैराना लोकसभा सीट: जाट और मुस्लिम तय करते हैं कैराना की किस्‍मत, इस बार है कड़ा चुनावी संघर्ष

मुस्लिम और जाट बाहुल्‍य इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित जनता अक्‍सर गलत साबित करती रही है।

By NiteshEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 06:19 PM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2019 08:00 AM (IST)
कैराना लोकसभा सीट: जाट और मुस्लिम तय करते हैं कैराना की किस्‍मत, इस बार है कड़ा चुनावी संघर्ष
कैराना लोकसभा सीट: जाट और मुस्लिम तय करते हैं कैराना की किस्‍मत, इस बार है कड़ा चुनावी संघर्ष

नई दिल्ली (जेएनएन)। कैराना संसदीय सीट के लिए 18 मार्च (सोमवार) से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। परंपरागत रूप से रालोद के लिए खास रही इस सीट पर इस बार भी कांटे का मुकाबला है। मुस्लिम और जाट बाहुल्‍य इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित जनता अक्‍सर गलत साबित करती रही है। यही वजह है कि 2014 में यहां से जीते भाजपा के हुकुम देव सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में रालोद की प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने भाजपा को शिकस्‍त दे दी। यहां हम कैराना लोकसभा क्षेत्र की पूरी चुनावी और राजनीतिक तस्‍वीर आपके सामने पेश कर रहे हैं-

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के साथ हुए चुनावी गठबंधन में रालोद के हिस्‍से में यह सीट गई है। यहां पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है।

दो बार से अधिक नहीं मिली किसी को जीत

कैराना लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां पर कोई भी दल दो बार से ज्‍यादा लगातार जीत हासिल नहीं कर सका है। मुस्लिम और जाट बाहुल्‍य इस निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित जनता अक्‍सर गलत साबित करती रही है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि इस सीट पर किसी भी दल का कभी भी वर्चस्‍व नहीं रहा है। यहां की जनता हर बार परिवर्तन कर काबिज दल को बाहर कर देती है। यह सिलसिला पहले लोकसभा चुनाव से चला आ रहा है।

यहां पर कांग्रेस की लहर के बावजूद पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्‍याशी ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को हराया था। बाद में यहां जनता दल के प्रत्‍याशी ने लगातार दो बार 1989 और 1991 में जीत हासिल की, लेकिन तीसरी बार वह जीत नहीं सके। इसी तरह यह कारनामा अजीत सिंह चौधरी की पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल ने 1999 और 2004 में कर दिखाया, लेकिन वह भी तीसरी बार लगातार जीत हासिल नहीं कर सके। अब तक भाजपा, बसपा और सपा, जनता पार्टी सेक्‍युलर ने इस लोकसभा सीट पर सिर्फ एक-एक बार ही जीत दर्ज की है।

जब नहीं चली कांग्रेस की लहर, निर्दलीय ने चटाई धूल

देश के लिए तीसरी बार हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अस्तित्व में आई कैराना लोकसभा सीट जाट और मुस्लिम समुदाय बाहुल्य होने के चलते कड़े चुनावी मुकाबलों की गवाह रही है। 1962 में जब देश भर में कांग्रेस की लहर चल रही थी, तब यहां से कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। 1962 में पहली बार इस लोकसभा सीट पर हुए मतदान में निर्दलीय उम्मीदवार यशपाल सिंह ने उस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस के दिग्गज नेता अजीत प्रसाद जैन को हराया था। यशपाल को 134574 लाख वोट मिले, जबकि अजीत को 81140 वोट मिल थे। गौरतलब है कि अजीत प्रसाद जैन 1951 में सहारनपुर लोकसभा सीट से सांसद रह चुके थे।

1967 में जातीय समीकरण ने खिलाया गुल

1967 में जब चौथी लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कराए गए, तब कैराना सीट पर दूसरी बार संसदीय चुनाव हुआ। देश भर में वर्चस्व कायम रखने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर यहां से अजीत प्रसाद जैन को चुनाव मैदान में उतारा। उनके सामने संयुक्‍त सोशलिस्ट पार्टी ने जीए खान को प्रत्याशी बनाया। दोनों नेताओं के बीच कड़ा संघर्ष हुआ। जीए खान ने 76415 वोट पाकर जीत हासिल की। अजीत को 74750 वोट मिले। दोनों के बीच हार का अंतर दो हजार से भी कम वोटों का रहा।

1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोकी और जातीय समीकरण का लाभ लेने के लिए मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट थमाया। इसका नतीजा भी कांग्रेस के लिए खुशियां लेकर आया। कांग्रेस उम्मीदवार शफकत जंग ने 162276 लाख वोट हासिल किए, जबकि भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी गयूर अलीखान को 89510 वोट के साथ हार का सामना करना पड़ा।

आपातकाल ने कांग्रेस को दिया था जोर का झटका

कैराना सीट पर 1977 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बेहद खराब रहा। यहां से तत्कालीन सांसद शफकत जंग अपनी सीट नहीं बचा सके। उन्हें लोकदल के प्रत्याशी चंदन सिंह ने करारी शिकस्त दी। चंदन को 242500 लाख वोट हासिल हुए, जबकि कांग्रेस के शफकत को 95642 वोट ही मिले। 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी सेक्यूलर की नेता गायत्री देवी ने 203242 लाख वोटों के साथ विजेता बनीं।

कांग्रेस इंदिरा के प्रत्याशी नारायण सिंह 143761 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। 1984 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी अख्तर हसन 236904 वोटों के साथ विजेता बने। लोकदल प्रत्याशी श्याम सिंह 138355 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।

1989 में जनता दल ने की फतह

1989 का लोकसभा चुनाव इस सीट से जनता दल प्रत्याशी हरपाल सिंह ने 306119 लाख वोटों के साथ जीता। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेता बशीर अहमद 184290 लाख वोट पाकर हार गए। जनता दल ने 1991 का चुनाव भी इस सीट से अपने नाम किया। हालांकि 1996 में कैराना सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। इस बार सपा नेता मुनव्वर हसन ने 184636 लाख मत पाकर जीत दर्ज की, जबकि दूसरे नंबर पर रहे भाजपा नेता उदयवीर सिंह को 174614 मतों से ही संतोष करना पड़ा।

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा की लहर चली। इस तरह दो बार से हार का सामना कर रही भाजपा ने कैराना सीट अपने नाम की। यहां से उसके प्रत्याशी वीरेंद्र वर्मा के जीत मिली और सपा नेता मुनव्‍वर हसन को हार का सामना करना पड़ा।

इस बार रालोद ने भाजपा से लिया बदला

1999 में 13वीं लोकसभा के लिए हुए मतदान में कैराना लोकसभा क्षेत्र की जनता ने राष्‍ट्रीय लोकदल पर विश्‍वास जताया और उसके प्रत्‍याशी आमिर आलम 206345 लाख वोट पाकर विजेता बने। दूसरे नंबर पर यहां से बीजेपी के निरंजन सिंह मलिक रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी राष्‍ट्रीय लोकदल ने अपना जादू कायम रखा और उसकी अनुराधा शर्मा को भारी मतों से जीत मिली। रालोद की जीत का यह सिलसिला ज्‍यादा दिनों तक नहीं चल सका। 2009 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने सेंध लगाते हुए सीट रालोद से यह सीट हथिया ली।

बसपा प्रत्‍याशी तबस्‍सुम बेगम ने 283259 लाख वोट पाकर विजेता बनीं। दूसरे नंबर पर 124802 लाख वोट पाकर सपा नेता साजन मसूद रहे। कांग्रेस तीसरा और भाजपा को चौथा स्‍थान हासिल हुआ। 2014 में भाजपा ने यहां पलटी मारी और कैराना लोकसभा सीट पर कब्‍जा जमाया। यहां से भाजपा नेता हुकुम देव सिंह ने भारी मतों से जी‍त हासिल की। उनका असमय निधन होने के बाद यहां हुए उप चुनाव में भाजपा ने यह सीट गंवा दी। यहां से सपा और रालोद की गठबंधन प्रत्‍याशी तबस्‍सुम हसन ने फिर जीत हासिल की।

कैराना नहीं कर्णपुरी है प्राचीन नाम

कैराना उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बिगड़कर किराना नाम से जाना गया और फिर कैराना हो गया। मुजफ़्फ़रनगर से करीब 50 किलोमीटर पश्चिम में हरियाणा पानीपत से सटा यमुना नदी के पास बसा कैराना राजनीतिक पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल का घर भी माना जाता है। यहां मुस्लिम और जाट मतदाताओं की संख्‍या अधिक है। हालांकि यह जातिगत आंकड़ा हर बार एक जैसा चुनावी फैसले नहीं करता है। इस लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली से कैराना की दूरी करीब 103 किलोमीटर है।


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