Lok Sabha Election 2019: लोहरदगा में बड़ा मुद्दा, पेयजल के लिए कब तक तरसेगी बड़ी आबादी
Lok Sabha Election 2019. लोहरदगा में हर साल पानी के लिए मचता है कोहराम किसी का नहीं जाता है ध्यान। शहर की बढ़ती आबादी के हिसाब से पेयजल संसाधनों की उपलब्धता नहीं।
लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। Lok Sabha Election 2019 - लोहरदगा जिले में पेयजल संकट एक गंभीर मुद्दा है। विशेषकर शहरी क्षेत्र में बढ़ती आबादी के बावजूद पानी का इंतजाम कर पाना बेहद मुश्किल साबित हो चुका है। शहर की आधी आबादी को आज तक शुद्ध पेजयल उपलब्ध नहीं है। बावजूद पेयजल की समस्या कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है।
नेताओं ने कभी भी इस समस्या को समस्या समझा ही नहीं। लोहरदगा जिले में हर साल आबादी में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो रही है। उसके मुकाबले पेयजल के संसाधन कम होते जा रहे हैं। कोयल और शंख नदी के भरोसे लोहरदगा शहरी क्षेत्र में पेयजल व्यवस्था निर्भर करती है।वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक लोहरदगा शहर की आबादी 57411 थी। जबकि आवास की संख्या 11102 है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन 8 सालों में आबादी में कितनी बढ़ोतरी हुई होगी।
वह भी तब जब लोहरदगा जिले की आबादी का वृद्धि दर 26 प्रतिशत है। गांव से लोग उठकर शहर में आकर बस रहे हैं। आज शहर में मात्र 26 सौ जलापूर्ति कनेक्शन हैं। शहर है कि उनके लिए मुसीबतों को और भी बढ़ा रहा है। पेयजल की व्यवस्था समस्या को लेकर नेताओं ने कभी भी इसे चुनावी मुद्दा बनाना जरूरी नहीं समझा। नेता चुनाव प्रचार के दौरान आम मतदाताओं के घर पर रुक कर पानी जरूर पीते हैं, परंतु वह पानी एक आम आदमी कैसे जुगाड़ कर पाता है इस बात को ना तो कभी उन्होंने जानने की कोशिश की और ना ही समस्या के हल को लेकर कोई पहल ही हो पाई।
लोहरदगा शहरी क्षेत्र के लिए तो कम से कम यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। इस मुद्दे को लेकर गंभीरता दिखाने की बजाय राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र से ही इसे बाहर कर रखा है। लोहरदगा शहरी क्षेत्र में नियमित जलापूर्ति को लेकर शंख और कोयल नदी में 4 इंटेक वेल का निर्माण कार्य चल रहा है। यह भी स्पष्ट करने की जरूरत है कि सिर्फ इंटेक वेल का निर्माण होने से जलापूर्ति की समस्या हल नहीं हो सकती है।
आज भी शहर में मात्र तीन जल मीनार के भरोसे ही जलापूर्ति होती है। यदि जल मीनारों को नहीं बढ़ाया गया, साथ ही नए क्षेत्रों में पाइप लाइन बिछाकर जल आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गई तो यह समस्या हल हो ही नहीं सकती है। इसके लिए करोड़ों की योजनाओं की दरकार है। जब नेता इस समस्या को कोई समस्या समझते ही नहीं उनके लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं तो फिर इन योजनाओं का क्रियान्वयन भला होगा कैसे। आने वाले चुनाव में शहर की जनता नेताओं से यह सवाल जरूर पूछेगी। शायद नेताओं के लिए इस सवाल का जवाब दे पाना काफी मुश्किल होगा।