वस्तु एवं सेवाकर यानी जीएसटी के रूप में सबसे बड़े कर सुधार पर अमल की तैयारी के बीच उद्योग-व्यापार जगत के साथ आम लोगों में थोड़ा-बहुत संशय होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे अपुष्ट सूचनाओं पर यकीन करें अथवा अपने को समस्याग्रस्त बताकर विरोध के रास्ते पर जाते दिखें। यह विचित्र है कि जहां कई कंपनियां अपने माल को सस्ते दर पर बेचने के लिए ग्र्राहकों को लुभाने में लगी हुई हैं वहीं उद्योग-व्यापार से जुड़े कई संगठन ऐसे भी हैं जो विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। गत दिवस ही देश के कुछ शहरों में कपड़ा, अनाज आदि व्यापारियों ने जीएसटी में कथित खामियों का उल्लेख करके विरोध दिवस मनाया। कहीं-कहीं तो दुकानें भी बंद रखी गईं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती किकुछ लोग यह माहौल बनाने में लगे हुए हैं कि एक जुलाई से जीएसटी पर अमल संभव नहीं। वे इसके लिए तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं। शायद यही वजह रही कि राजस्व सचिव को यह स्पष्ट करना पड़ा कि जीएसटी के अमल में देरी की बातें महज अफवाह हैं और कर सुधार की यह नई व्यवस्था एक जुलाई से ही लागू होगी। यह आश्चर्यजनक है कि उनके स्पष्टीकरण की जरूरत इसके बावजूद पड़ी कि चंद दिनों पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कह चुके थे कि जीएसटी में विलंब की कहीं कोई वजह नहीं। उनकी इस राय से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि जीएसटी को किसी भी तारीख से लागू किया जाए, कुछ लोग यह शिकायत करेंगे ही कि वे इस नई व्यवस्था को अपनाने के लिए तैयार नहीं अथवा पूरी तैयारी नहीं कर पाए हैं।
सभी को और विशेष रूप से उद्योग-व्यापार जगत को यह समझने की जरूरत है कि प्रत्येक नई व्यवस्था के क्रियान्वयन के समय प्रारंभ में कुछ समस्याएं आती ही हैं। वे इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि वैट पर अमल के दौरान भी कुछ दिनों तक समस्याओं से दो-चार होना पड़ा था। जीएसटी तो कर सुधार की कहीं बड़ी व्यवस्था है। उसके अमल में कुछ न कुछ परेशानी आएगी ही, लेकिन उससे बचने का तरीका यह है कि जो समस्याएं हैं उन्हें लेकर संबंधित तंत्र से संपर्क-संवाद किया जाए। सरकार ने इसके लिए 18 कार्यकारी समूह भी गठित कर दिए हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बनाए गए इन समूहों में केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों के भी अधिकारी हैं। इन कार्यकारी समूहों की कार्यप्रणाली से परिचित होने के साथ ही उद्योग-व्यापार जगत को जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक की भी प्रतीक्षा करनी चाहिए जिसमें बचे-खुचे मसलों पर आम राय बनाने की कोशिश होगी। उम्मीद है कि पश्चिम बंगाल सरीखे राज्यों की आनाकानी के बावजूद इन लंबित मसलों पर सहमति कायम होगी। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार और साथ ही जीएसटी काउंसिल यह देखे कि अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बनाए गए कार्यकारी समूह छोटे उद्यमियों और व्यापारियों तक अपनी पहुंच बनाने और उनकी समस्याओं एवं आशंकाओं को दूर करने में सफल रहें। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उद्योग-व्यापार जगत के लिए उपयोगी समस्त सूचनाएं उन तक समय रहते सही तरह पहुंच जाएं। यह काम जितनी जल्दी हो जाए, बेहतर।

[ मुख्य संपादकीय ]