सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए 21 दिनों की जो अंतरिम जमानत दी, उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। उन्हें जेल से बाहर आने की विशेष सुविधा केवल इसलिए दी गई, ताकि वह चुनाव प्रचार कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देते हुए कुछ शर्तें लगाई हैं। वह मुख्यमंत्री कार्यालय और सचिवालय नहीं जा सकेंगे। जिस मामले में जेल में हैं, उस पर कुछ नहीं बोलेंगे और गवाहों से संपर्क करने की कोशिश नहीं करेंगे। उन्हें चुनाव प्रचार खत्म होते ही फिर से जेल में लौटना होगा। इसका अर्थ तो यही है कि सुप्रीम कोर्ट उन पर लगे आरोपों को गंभीर मान रहा है या फिर फिलहाल उन्हें निर्दोष मानकर नहीं चल रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने चाहे जिस आधार पर यह पाया हो कि केजरीवाल को चुनाव प्रचार की सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन क्या किसी नेता की ओर से चुनाव प्रचार करना मौलिक या संवैधानिक अधिकार है? यदि है तो क्या वह अन्य नेताओं और खासकर ऐसे नेताओं को भी मिलेगा, जो अपने दल या संगठन के प्रमुख या वरिष्ठ नेता हैं? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई छोटे-छोटे दलों के नेता दागी किस्म के हैं। क्या अब उन्हें वैसी ही सुविधा मिला करेगी, जैसी केजरीवाल को मिली?

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय की यह दलील ठुकरा दी कि केजरीवाल को जमानत से एक खराब नजीर कायम होगी, क्योंकि देश में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं और कल को खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह भी इसी आधार पर जमानत मांग सकता है। सुप्रीम कोर्ट की नजर में अमृतपाल का मामला केजरीवाल के मामले से अलग है, लेकिन क्या इससे अमृतपाल जैसे लोग अदालत का दरवाजा खटखटाना बंद कर देंगे? प्रश्न यह भी है कि जिस आधार पर केजरीवाल को जमानत मिली, क्या उसी आधार पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी मिलेगी?

हाई कोर्ट की ओर से अपनी जमानत याचिका खारिज किए जाने पर वह सुप्रीम कोर्ट गए थे, जहां उनसे अगले सप्ताह आने को कहा गया। हो सकता है कि उन्हें भी राहत मिल जाए, लेकिन तब तक तो झारखंड की कुछ सीटों पर मतदान हो जाएगा। क्या उनका दोष यह है कि उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के पहले त्यागपत्र दे दिया और जेल से सरकार चलाने की जिद नहीं पकड़ी? न्याय समानता के सिद्धांत की मांग करता है। केजरीवाल को मिली जमानत इसलिए भी सवाल खड़ा करने वाली है कि अतीत में कई प्रमुख नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए जमानत नहीं मिली। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केजरीवाल को चुनाव के मौके पर इसलिए जेल जाना पड़ा और शराब घोटाले में उनकी गिरफ्तारी पर सुनवाई इस कारण नहीं हो सकी, क्योंकि वह कई महीनों तक प्रवर्तन निदेशालय के समन की अनदेखी करते रहे।