इसमें संदेह है कि वित्तीय धोखाधड़ी में इस्तेमाल होने वाले 1.58 लाख फोन नंबर बंद करने के कदम से साइबर अपराधियों के हौसले पस्त होंगे। आशंका यही है कि वे झूठी सूचना या लालच देकर ऑनलाइन ठगी करने के लिए किसी अन्य नाम से फिर से सिम नंबर हासिल कर सकते हैं। ध्यान रहे कि सरकार को दूसरे के नाम पर चलाए जाने वाले 30 लाख से अधिक फोन नंबर ब्लाक भी करने पड़े हैं। आखिर इसकी क्या गारंटी कि ऑनलाइन धोखाधड़ी करने वाले फर्जी या चोरी के दस्तावेजों से फिर सिम हासिल नहीं कर पाएंगे?

यदि टेलीकाम कंपनियां साइबर धोखाधड़ी में लिप्त संदिग्ध हजारों फोन नंबरों की जांच कर रही हैं तो इसका मतलब है कि अपराधी छल-कपट से सिम हासिल करने में समर्थ हैं। साइबर अपराधी लोगों को गुमराह करके ही ठगी नहीं कर रहे, बल्कि वे उन्हें ब्लैकमेल अथवा धमकाकर उनसे वसूली भी कर रहे हैं।

ऑनलाइन ठगों के गिरोह देश के कई हिस्सों में पनप चुके हैं और वे बढ़ते ही जा रहे हैं। इसका मतलब है कि उन पर लगाम लगाने और उन्हें दंडित करने के तौर-तरीके कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि साइबर अपराधी साइबर अपराध रोकने वाले तंत्र से दो हाथ आगे हैं।

समस्या केवल इतनी ही नहीं है कि साइबर अपराधी मोबाइल फोन और ईमेल के जरिये धोखाधड़ी कर रहे हैं या फिर फर्जी काल सेंटर चला रहे हैं। समस्या यह भी है कि वे कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती भी बन रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली और एनसीआर के कई स्कूलों में बम रखे होने की झूठी सूचना देकर हड़कंप पैदा कर दिया गया।

पुलिस इस मामले की जांच कर ही रही थी कि अहमदाबाद के स्कूलों को भी इसी तरह की झूठी सूचना देकर डराया गया। माना जा रहा है कि यह शरारत विदेश में बैठे अपराधियों ने की। यदि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उनका पता-ठिकाना खोज भी लें तो उनके खिलाफ कार्रवाई करना कठिन है। यदि इस तरह के अपराधी किसी ऐसे देश में हों, जिसके भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध न हों तो उनके खिलाफ कुछ कर पाना असंभव सा हो जाता है।

यह एक तथ्य है कि करीब दो साल पहले दिल्ली के एम्स के सिस्टम को हैक कर अस्पताल प्रशासन और मरीजों को परेशान और उगाही करने की कोशिश करने वाले अपराधियों के खिलाफ कुछ नही किया जा सका। स्पष्ट है कि ऑनलाइन ठगी, ब्लैकमेलिंग, हैकिंग आदि साइबर अपराधों से निपटने के लिए भारत सरकार को और अधिक कड़े एवं प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।

अभी तो स्थिति यह है कि तमाम शिकायतों के बाद भी लोगों को स्पैम काल से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। डिजिटल क्रांति के इस दौर में साइबर अपराधियों को बच निकलने का मौका न देने वाले ठोस उपाय अनिवार्य हो चुके हैं।