बेरोजगारी बड़ी समस्या बनकर देश में उभरी है, जिसने कई अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है। अपराध बढ़े हैं, आत्महत्या के ग्राफ में वृद्धि हुई है व नशे के मकड़जाल में भी भी लोग जकड़े जा चुके हैं। इस समस्या से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल भी अछूता नहीं है। मौजूदा समय में प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों का आंकड़ा नौ लाख से अधिक है। करीब 71 लाख की आबादी में से नौ लाख लोगों का बेरोजगार होना समस्या की गंभीरता को दर्शाता है, लेकिन प्रदेश सरकार का बेरोजगारों को भत्ता देने का फैसला कुछ हद तक युवाओं को राहत तो दे सकता है लेकिन लंबे समय तक इस तरह भत्ता देने से कोई लाभ नजर नहीं आता है। बेरोजगारी का एक पहलू यह भी है कि अभी भी लोगों में सरकारी नौकरी का मोह छूटा नहीं है। बैंक में क्लर्क का पद हो या प्रदेश विश्वविद्यालय में माली का, हजारों की संख्या में आवेदन आते हैं। इनमें पीएचडी या अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी आवेदकों की कतार में शामिल होते हैं। यह जानते हुए भी कि जिस पद के लिए आवेदन किया जा रहा है, वे उसकी न्यूनतम योग्यता से कहीं अधिक काबिल हैं। नतीजतन कई बार ऐसे लोगों को रोजगार मिल जाता है और जो पात्र है, वे खाली हाथ रह जाते हैं। निजी क्षेत्र में रोजगार मिलने पर भी रोजगार कार्यालयों से नाम इसलिए नहीं कटवाया जाता ताकि सरकारी नौकरी मिलने के अवसर हाथ से निकल न जाएं। दूसरा पहलू यह है कि स्थिति अभी भी आदर्श नहीं है। निजी क्षेत्र में बड़ी संख्या में युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार काम और वेतन नहीं मिल पा रहा। सरकार ने प्रदेश में स्थापित होने वाले उद्योगों में हिमाचल के 70 फीसद लोगों को रखने की शर्त लगाई है, लेकिन मुख्य पदों पर कंपनियां हिमाचल के लोगों को बहुत कम तरजीह देती हैं। केंद्र व प्रदेश की सरकारें समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं, जिनका लाभ युवा उठा सकते हैं। प्रदेश में कौशल विकास विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार भी युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में लगाने का प्रयास है। वैसे भी युवाओं को समझना होगा कि सरकारी नौकरी के पीछे भागकर बेरोजगार रहने में उनका भला होने वाला नहीं है। रोजगार भत्ता भी युवाओं के भविष्य को नहीं संवार सकता है। जरूरी है कि युवा किसी कौशल के जरिये अपने भविष्य की तस्वीर बनाएं।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]