भूकंप के खतरे से निपटने व सुरक्षा के लिए जरूरी है कि ऐसे उपाय किए जाएं, जिससे नुकसान कम से कम हो और जान-माल की हानि से भी बचा जा सके
भूकंप कब आएगा, कितनी तीव्रता का आएगा और कहां आएगा, इसकी सटीक जानकारी देने में विज्ञान अभी सक्षम नहीं है। सिर्फ इतना ही बताया जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील या अतिसंवेदनशील है। पहाड़ी प्रदेश हिमाचल भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में शामिल है। इस लिहाज से अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी है कि भूकंप के खतरे से निपटने के लिए ऐसे उपाय किए जाएं, ताकि नुकसान कम से कम हो और कीमती जानों की हानि भी न ङोलनी पड़े। हिमाचल में बार-बार कांप रही जमीन लोगों को चौकन्ना कर रही है कि प्रकृति के साथ बिना वजह छेड़छाड़ न की जाए। बुधवार देर रात भी चंबा जिले में भूकंप के हल्के झटकों से लोगों में दहशत फैल गई। जिला में पिछले दो महीने में चार भूकंप के झटके महसूस किए जा चुके हैं। बात अगर प्रदेश की करें तो पिछले छह महीने से लगातार भूकंप ने लोगों में दहशत भरी है। सुखद है कि इनमें जान-माल की हानि तो नहीं हुई, लेकिन बड़े झटके की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। यह सही है कि मौतें भूकंप के कारण नहीं बल्कि मलबे से होती हैं। प्रदेश में जिस तरह बेतरतीब निर्माण हो रहे हैं और पहाड़ों को काटकर मकान बनाए जा रहे हैं, उन्हें सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। दुर्भाग्य से यहां यदि अधिक तीव्रता का झटका आया तो मलबे के ढेर अवश्य लगेंगे और जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है। प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों शिमला, मनाली व मैक्लोडगंज समेत अन्य स्थलों में जनसंख्या घनत्व बढ़ने के कारण जमीन ही कम होने लगी है। भूगर्भ वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी देते रहे हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों की बनावट ऐसी नहीं है कि यहां बहुमंजिला भवन खड़े किए जाएं। हैरानी की बात है कि इसका मर्म नहीं समझा जा रहा। लोग आपदा से डरते तो हैं, लेकिन नदी-नालों के किनारे या पहाड़ों पर घर बनाने से नहीं हिचकते। भूकंपरोधी तकनीक से भवन बनाने को भी अधिकतर लोग प्राथमिकता नहीं देते। आपदा को कोसने से बेहतर विकल्प है कि ऐसी नौबत ही न आने दी जाए कि नुकसान की आशंका रहे। जब तक प्रदेश का हर व्यक्ति पूर्व आपदा प्रबंधन का महत्व नहीं समङोगा तब तक चिंता की लकीरें माथे से नहीं मिटेंगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]