पानीपत के ऐतिहासिक गुरुद्वारा पहली पातशाही के भवन पुनरोद्धार के दौरान पांच लोगों की मौत मानसून पूर्व चेतावनी की तरह है। भीड़भाड़ वाले जिस स्थान पर हादसा हुआ है, उसके बारे में सभी यही आह भर रहे हैं कि ईश्वरीय कृपा से आंकड़ा इतना कम रहा। जिस गली में दिन भर पांच सौ से एक हजार लोगों का जमावड़ा रहता हो और साठ फीट तक की ऊंचाई से पचास से डेढ़ सौ किलोग्र्राम के पत्थर गिरे हों, आंकड़ा सही में बहुत कम है। इसमें दो राय नहीं कि श्रद्धा और सहभागिता भारतीय संस्कृति की ताकत है। स्थानीय लोगों ने जाति और धर्म की सीमाएं तोड़ते हुए लगातार दो दिन सेवा कार्य में भागीदारी की। रमजान के महीने में रोजा रख रहे बीस से अधिक मुसलमानों की सहरी भी गुरुद्वारे में सेवा के दौरान हुई और इफ्तार भी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल के जवानों के साथ-साथ विभिन्न सरकारी, अद्र्ध सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं-संगठनों के प्रतिनिधि दो दिन लगातार जुटे रहे। नींद की झपकी भी नहीं ली जैसे मलबे में कोई अपना दबा हो।
इन सकारात्मक पहलुओं के साथ कटु सत्य यह भी है कि निर्माण कार्य के लिए पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। सरकारी व्यवस्था हिम्मत नहीं दिखा सकी कि जीटी रोड के किनारे पिछले छह महीने से चल रहे इस कार्य के बारे में पड़ताल कर सके। यहां भी आस्था ही आड़े आई। यह पूरे देश की समस्या है। मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे के नाम पर सरकारी जमीन पर कब्जा और अवैध निर्माण के अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे। पूरे देश में जगह-जगह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश इसके आगे बौने पड़ जाते हैं। अबतक सामने आए कारणों में सीवर व्यवस्था का खराब होना और जमीन के नीचे दलदल जैसी स्थिति भी हादसे की मुख्य वजहों में से एक है। परंपरा के अनुसार जांच कमेटी गठित कर दी गई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खुद संवेदना जताने पहुंचे और मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए राहत की घोषणा भी कर दी। हादसे की जद में आए आसपास के दुकानदारों की बात छोड़ दें तो जीटी रोड पर जीवन कुछ दिनों में सामान्य हो जाएगा। विचारणीय विषय तो यह है कि ऐसे हादसे नहीं होने देने के व्यवस्थागत तंत्र को प्रभावशाली कैसे बनाया जाए?

[  स्थानीय संपादकीय : हरियाणा  ]