बिहार को सिर्फ विवादग्रस्त प्रदेश मानने वालों को यह जानकारी चौंका सकती है कि पिछले वित्तीय वर्ष में राज्य की विकास दर 10.32 फीसद रही। यह शानदार उपलब्धि है जिस पर राज्य सरकार के अलावा आम-ओ-खास लोग गर्व कर सकते हैं। इससे पिछले वर्ष यह दर सिर्फ 7.2 फीसद थी। वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास दर में तीव्र उछाल की कई वजहें होंगी लेकिन कृषि सेक्टर में शानदार परफॉरमेंस को इसकी अहम वजह माना जा रहा है। यह उम्मीदों को परवान चढ़ाने वाला संकेत है क्योंकि बिहार कृषि प्रधान राज्य है जहां बेहतरीन भूमि और श्रमशक्ति के चलते विकास की अपार संभावनाएं हैं। राज्य की विकास दर के ये संकेत ऐसे समय मिल रहे हैं जब केंद्र और राज्य सरकार किसानों की आय दोगुना करने का रोडमैप तैयार कर रही हैं। पिछले साल कृषि सेक्टर में अच्छी परफॉरमेंस के पीछे बेहतर मानसून मुख्य वजह रहा है। यह सर्वाधिक उपयुक्त समय है जब राज्य के नीति निर्धारकों को विचार करना चाहिए कि कई अन्य सेक्टरों के मुकाबले कृषि सेक्टर किस हद तक उनकी प्राथमिकता में था। कोई भी जंग जीतने के लिए अपने सबसे मजबूत अस्त्र पर भरोसा करना चाहिए। बिहार की ताकत इसकी बेहतरीन कृषि भूमि और असाधारण श्रमशक्ति है। सरकार को चाहिए कि वह अपना जोर कृषि सेक्टर पर लगाए ताकि राज्य तेजी से विकास की राह पर चले। सबसे जरूरी बात है, किसानों का मनोबल बढ़ाना। विषम परिस्थितियों ने किसानों को जर्जर और दिशाहीन बना दिया है। उन्हें फसलों के लिए न तो समय पर इनपुट मिलता है और न उपज का लाभकारी मूल्य। अधिसंख्य किसान सूदखोरों के ऋण जंजाल में इस तरह फंसे हुए हैं कि क्रय केंद्र पहुंचने से पहले ही बिचौलिए उनकी उपज हड़प लेते हैं। किसानों की अन्य समस्याओं पर भी गौर किया जाना चाहिए। वे अन्नदाता हैं। किसान नितांत प्रतिकूल परिस्थितियों में राज्य की विकास दर दहाई अंक में पहुंचा सकते हैं तो साधन-सहायता मिलने पर वे क्या चमत्कार कर सकते हैं, आसानी से समझा जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]