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-इस वित्तीय वर्ष में वाणिज्यकर विभाग ने 62 दिन तक वसूली ही नहीं की। करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि के बाद विभाग की नींद खुली।
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झारखंड में राजस्व संग्रह करने वाले विभाग अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इससे वित्तीय अनुशासनहीनता बढऩे का खतरा है जिसका खामियाजा राज्य को उठाना पड़ सकता है। सरकारी खजाने पर भी इसका असर पड़ता दिख रहा है। राजस्व वसूली से संबंधित विभागों की कमजोरी प्रदेश की खस्ताहाली को बढ़ाएगी जिसका प्रभाव राज्य की विकास योजनाओं पर पड़ेगा। विभागों की खामियां भी इसे लेकर उजागर हो रही हैं। वाणिज्यकर विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष में 62 दिन तक वसूली ही नहीं की। चेकपोस्ट पर तैनात पदाधिकारियों को वापसी का फरमान सुनाया गया। जब करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हुई तो विभाग की नींद खुली। अब इस मसले को लेकर एक-दूसरे पर दोषारोपण की कवायद चल रही है। इस प्रकरण में यह गौण हो गया है कि किसके आदेश से अधिकारियों ने चेकपोस्ट से वसूली पर रोक लगाने का आदेश दिया। सिर्फ मौखिक आदेश पर कामकाज रोकना भी अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को चिन्हित किया जाना चाहिए। यह भी आश्चर्यजनक है कि इतना बड़ा फैसला लेने के पूर्व वित्त विभाग का मंतव्य तक नहीं लिया गया। एक ओर जहां पड़ोसी राज्य पूरी सख्ती से सीमा पर कर की वसूली करते हैं वहीं झारखंड इस मामले में अपेक्षाकृत पीछे हैं। कुछ स्थानों पर समेकित चेकपोस्ट बनकर तैयार हैं लेकिन कामकाज आरंभ नहीं हुआ है। यह कवायद पिछले कई वर्षों से चल रही है। समेकित चेकपोस्ट बनाने में काफी राशि खर्च हुई है जो जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा है। अगर चेकपोस्ट से वसूली आरंभ नहीं हुई तो इसके निर्माण पर राशि क्यों खर्च की गई, यह एक बड़ा सवाल है। कुछ ऐसा ही हाल खनन विभाग का भी है। पूर्व के मुकाबले राजस्व की वसूली में कमी आई है जो चिंता का सबब बन सकता है। वाणिज्यकर, बिक्रीकर, परिवहन, उत्पाद आदि महत्वपूर्ण राजस्व वसूली वाले विभाग हैं। हर वित्तीय वर्ष में इन विभागों की वसूली का वार्षिक लक्ष्य तय किया जाता है लेकिन अपेक्षा से कम वसूली होना और वसूली को मनमाने तरीके से रोकने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता। वित्तीय वर्ष समाप्त होने वाला है। इस परिस्थिति में राजस्व वसूली में उछाल की बहुत ज्यादा गुंजाइश भी नहीं है लेकिन यह आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सबक है कि राजस्व वसूली वाले विभागों की जिम्मेदारी तय की जाए और उसका सख्ती से पालन भी हो। राज्य में वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]