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राज्य में बिजली चोरी के लिए खस्ताहाल ढांचा और विभागीय उदासीनता भी काफी हद तक जिम्मेदार है, सरकारी विभागों की देनदारी भी करोड़ों में है
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जम्मू-कश्मीर में बिजली की बढ़ती चोरी इस दृष्टि से चिंताजनक है कि केंद्र से उधारी में ली जा रही बिजली के एवज में उतना राजस्व का भुगतान नहीं हो पा रहा है जितने की बिजली खरीदी जा रही है। दुख की बात यह है कि राज्य बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है और सब्सिडी में केंद्र से मिलने वाली बिजली का खर्चा भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। अब यह खर्चा पांच हजार करोड़ से अधिक पहुंच गया है। राज्य में बिजली का खस्ताहाल ढांचा और विभागीय उदासीनता भी काफी हद तक बिजली की चोरी के लिए जिम्मेदार है। राज्य के उप मुख्यमंत्री ने हाल ही में विधानसभा में बिजली विभाग की ग्रांट पेश करते हुए बताया कि सरकार पर सात हजार करोड़ रुपये की देनदारी है और यह देनदारी उनकी सरकार को विरासत में मिली है। अगर यह देनदारी विरासत में मिली तो गठबंधन सरकार बने करीब दो साल होने जा रहे हैं। क्या सरकार ने इस घाटे को कम किया? विडंबना यह है कि सरकारी विभागों की देनदारी भी करोड़ों में है। यह देनदारी ही पूर कर ली जाए तो बिजली विभाग के वित्तीय घाटे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। अगर सरकार चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है तो यह अच्छा कदम है। बिजली की देनदारी खत्म के लिए पच्चीस सौ करोड़ रुपये का कम ब्याज पर केंद्र से कर्जा लेने से भी कर्जा कम हो जाएगा। लेकिन जब तक बिजली की चोरी नहीं रोकी जा सकती तब तक घाटे पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। घाटा साल दर साल बढ़ता ही जाएगा। बिजली चोरी का अंदाजा इस बात से भी लग जाता है कि राज्य में 28 लाख राशन कार्डधारक हैं, जबकि सोलह लाख बिजली कनेक्शन है। राज्य में 61 फीसद बिजली चोरी हो रही है। शहर और उसके बाहरी क्षेत्रों में मीटर लगने के बाद न तो बिजली खपत में कमी आई और न ही राजस्व वसूली में बढ़ोतरी हुई। इसका एक बड़ा कारण बिजली का खस्ताहाल ढांचा भी है। जिससे ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन के नुकसान को भी कम करने की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि ग्रांट के दौरान बिजली मंत्री ने राज्य के इक्कीस जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों को दीन दयाल उपाध्याय योजना से जोडऩे की बात की। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति बेहतर होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]