सच तो यह है कि अब भी पंजाब में हजारों मेडिकल स्टोर ऐसे हैं जो कि नियमों को दरकिनार कर लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते हुए अपना धंधा चलाए हुए हैं।
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स्वास्थ्य विभाग के अधीन आती राज्य दवा नियंत्रक इकाई ने बिना पर्ची दवाइयां बेचने वाले मेडिकल स्टोर्स पर देर से ही सही लेकिन शिकंजा कसकर एक अच्छी शुरुआत की है। राज्य में स्थिति यह है कि एक तो बहुत से मेडिकल स्टोर किसी दूसरे के नाम पर लाइसेंस लेकर चल रहे हैं ऊपर से इनमें बहुत सी ऐसी दवाइयां, जो कि जीवन के लिए खतरा भी उत्पन्न कर सकती हैं, बिना किसी चिकित्सक की पर्ची के धड़ल्ले से बेची जा रही हैं। इनमें यदि हम नशीली दवाइयों की बिक्री का भी जिक्र कर दें तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कास्मेटिक एवं दवा नियंत्रण अधिनियम 1945 के तहत जीवन रक्षक दवाएं, जो कि शेड्यूल एच वन में आती हैं, उन्हें बिना चिकित्सकीय परामर्श के नहीं दिया जा सकता। पिछले दिनों राज्य की दवा नियंत्रक शाखा की विभिन्न टीमों ने योजनाबद्ध तरीके से राज्य की करीब सात सौ दवा की दुकानों पर दबिश दी। इनमें से एक सौ पांच दवा विक्रेताओं को कास्टमेटिक एवं ड्रग्स अधिनियम के तहत आते नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया है। तीन मेडिकल स्टोर मालिकों के लाइसेंस भी रद किए गए हैं। हालांकि यह विभाग की एक छोटी सी कार्रवाई है। सच तो यह है कि अब भी पंजाब में हजारों मेडिकल स्टोर ऐसे हैं जो कि नियमों को दरकिनार कर लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते हुए अपना धंधा चलाए हुए हैं। नियमानुसार चिकित्सकों को भी पर्ची पर साल्ट का नाम लिखने की हिदायत का प्रावधान है परंतु राज्यभर में शायद ही कोई ऐसा चिकित्सालय मिले जहां पर चिकित्सक पर्ची पर बीमारी का पता चलने पर उसे ठीक करने के लिए साल्ट का नाम लिखता हो। चिकित्सकों द्वारा साल्ट का नाम न लिखने की वजह से ही आज देश में दो तरह की कंपनियों स्टैंडर्ड हाउस और जेनरिक के नाम पर दवाइयां बिक रही हैं और आमजन कंपनियों के इस गोरखधंधे में लुट रहा है। विभाग व सरकार से अपेक्षा है कि वह इसे भी सख्ती से लागू करवाए कि चिकित्सक किसी कंपनी की दवा लिखने के बजाए साल्ट का नाम लिखें और इसे भी सुनिश्चित करवाए कि जिस भी मेडिकल स्टोर से दवा दी जा रही है उसका लाइसेंस होल्डर उस वक्त दुकान पर ही उपलब्ध हो।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]