मंडावली इलाके में चेन झपटने आए बाइक सवार दो बदमाशों से जिस तरह सीआइएसएफ की महिला कांस्टेबल ने लोहा लिया, वह वाकई प्रशंसनीय है। महिला कांस्टेबल के साहस के आगे बदमाश ऐसे पस्त हुए कि उन्हें बाइक वहीं छोड़कर भागना पड़ गया। अगर महिलाएं बदमाशों से लोहा लेने को तैयार हो जाएं तो उन्हें भागने को मजबूर कर सकती हैं। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की एक बड़ी वजह उनका खुद पर विश्वास का कम होना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस महिला कांस्टेबल से दिल्ली की सभी महिलाएं सीख लेंगी। हालांकि इस घटना का एक दुखद पहलू यह भी है कि वहां उपस्थित भीड़ तमाशबीन रही। 1आंकड़ों पर निगाह डालें तो दिल्ली में महिला अपराध का ग्राफ थमने का नाम नहीं ले रहा है। दुष्कर्म की घटनाओं का सालाना आंकड़ा दो हजार तक जा पहुंचा है। छेड़छाड़ की घटनाओं की संख्या चार हजार के करीब पहुंच गई है। नि:संदेह इसके लिए पुलिस तो दोषी है ही, राजनीतिक स्तर पर दृढ़ इच्छाशक्ति का भी अभाव साफ नजर आता है। तमाम वादों के बावजूद दिल्ली पुलिस में आज भी महिलाकर्मियों की संख्या महज सात फीसद है। इनमें भी एक तिहाई डेस्क ड्यूटी कर रही हैं। महिला सुरक्षा के इंतजाम कितने नाकाफी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि थानों में महिला डेस्क कहीं है तो कहीं नहीं। जहां है वहां 24 घंटे महिला पुलिसकर्मी उपलब्ध नहीं होती। यह भी सच है कि सिर्फ पुलिस के भरोसे बैठे रहने से भी हालात कभी नहीं सुधरने वाले। हम सभी को अपनी जिम्मेदारी तय करनी होगी। आज भी बेटे-बेटियों में भेदभाव जारी है। सरेआम लड़कियों पर फब्तियां कस दी जाती हैं, उनसे छेड़छाड़ की जाती है और लोग तमाशबीन बनकर खड़े रहते हैं। अपनी बहू-बेटी को लेकर हम सतर्क रहते हैं मगर दूसरे की बहू-बेटी को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। इसी सोच और मानसिकता का नतीजा हैं ऐसी घटनाएं। एक आम नागरिक को भी अपनी और महिलाओं की सुरक्षा के लिए अलर्ट रहना चाहिए। कहीं भी कुछ गलत हो रहा हो तो अपने पराये का फर्क किए बगैर उसका विरोध करना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि आज जो दूसरे के साथ हो रहा है, कल आपके साथ भी हो सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]