---विकास के नाम पर ठेके-पट्टों में दलाली, सरकारी नौकरियों की नीलामी, जातीय आधार पर अनुकंपा या उपेक्षा, पुलिस से अधिक अपराधियों से न्याय की लालसा ने अवसाद के रूप में जीवन शैली का रूप ले लिया था। ----भारतीय जनता पार्टी के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने से साफ है कि उस पर इस बार सभी तबकों ने उस पर भरोसा किया है। आपातकाल के बाद 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी को 425 सदस्यों वाले सदन में 352 सीटें मिली थीं। उसके बाद पहली बार किसी दल को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई है। अब भावी सरकार से लोगों की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। सबका साथ, सबका विकास के नारे के साथ बनने वाली नई सरकार को अपने इस नारे पर खरा उतरने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। उसके हर कार्य की समीक्षा होगी। एक-एक फैसले को कसौटी पर कसा जाएगा। पिछली सरकारों के दौरान जो अच्छा-बुरा कामकाज हुआ उससे इस सरकार के कार्य की तुलना होगी। नई सरकार के लिए बहुत तेजी से काम निपटाने होंगे और प्रदेश की जनता को यह अहसास दिलाना होगा कि वही उसकी सच्ची हितैषी है। चूंकि 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और उन्हें जीतने के लिए भाजपा को अपनी राह आसान बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। चूंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है, ऐसे में यहां सरकार द्वारा किये गये अच्छे कामकाज से उसको यह लक्ष्य साधने में आसानी रहेगी। पिछली सरकार के कार्यकाल में कानून व्यवस्था, विकास कार्यों, रोजगार सृजन, भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर जनता काफी निराश रही। डेढ़ दशक से प्रदेश की जनता भय और भ्रष्टाचार के बीच जीने को ही नियति मान चुकी थी। विकास के नाम पर ठेके-पट्टों में दलाली, सरकारी नौकरियों की नीलामी, जातीय आधार पर अनुकंपा या उपेक्षा, पुलिस से अधिक अपराधियों से न्याय की लालसा ने अवसाद के रूप में जीवन शैली का रूप ले लिया था। सबसे विकट स्थिति तो महिलाओं की रही। सांझ ढलने तक यदि घर की बेटी नहीं लौटी तो आशंकाएं घेरने लगती थीं। यही वजह है कि जीत के अन्य कारकों के अलावा न गुंडाराज न भ्रष्टाचार-अबकी बार भाजपा सरकार का नारा लोगों को उम्मीद बंधा गया। भाजपा सरकार के सामने इस अपेक्षा पर खरे उतरने की चुनौती अब पहली प्राथमिकता होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]